साल 2002 में 27 दिसंबर को संयुक्त राज्य अमेरिका (US) में पहले मानव क्लोन ईव के जन्म का दावा किया गया था. इस घटना ने तब मेडिकल जगत में काफी चर्चाओं और बहसों को आगे बढ़ाया था. इस घटना ने 19 साल बाद भी लोगों की दिलचस्पी कम नहीं होने दिया है. मानव क्लोन पर भले ही दुनिया के कई देशों में पूरी तरह प्रतिबंध या नियमन हो मगर इस ओर शोध में कोई भी विकसित या विकाससील देश पीछे नहीं रहना चाहता. वहीं जब-तब स्टेम सेल, क्लोन वगैरह का जिक्र मेडिकल क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय बहसों को आकर्षित करता है.
अमेरिका में साल 2002 में क्लोनेड कंपनी की निदेशक ब्रिगिट बोसलिए पहली मानव क्लोन ईव के सिजेरियन से जन्म की घोषणा की थी. बोसलिए ने कहा था कि ईव नाम की क्लोन की हुई बच्ची तकनीक के क्षेत्र के लिए एक करिश्मा है. दावे से पूरी दुनिया हैरत में पड़ गई थी. इस नई खोज से संतान की चाहत रखने वाला और इस काम में असमर्थ हर परिवार अपनी उम्मीदों को साकार होते देख रहा था. क्लोनेड या उनके जैसे वैज्ञानिक संस्थाओं की मानें तो इस तकनीक के विकास से चिकित्सा के क्षेत्र को बल मिलेगा. दावा किया जाता है कि इसकी सफलता से कैंसर जैसी बीमारी का भी स्थाई इलाज मिल जायेगा, क्योंकि तब हम जान चुके होंगे कि शरीर की कोशिकाओं को नियंत्रित किया जा सकता है.
क्लोनेड के दावों की हुई तीखी आलोचना
वहीं, इटली के जैव वैज्ञानिक सेवेरिनो एंटीनोरी की नजरों में उनकी प्रतिद्वंद्वी ब्रिगिट बोसलिए अच्छी जैववैज्ञानिक होने के बावजूद पागलपन दिखा रही थीं. क्योंकि उनके पीछे रायलियनवादी पंथ था जो इस अतिवादी कल्पना में यकीन करते हैं कि पृथ्वी पर मानव समेत सभी प्राणी अंतरिक्ष के बुद्धिमान प्राणियों द्वारा क्लोन किए गए हैं. वेटिकन सिटी में अपना फर्टिलिटी क्लीनिक चलाने वाले और आज की तारीख में 6,600 दंपतियों को मानव क्लोनिंग से संतान दिलाने का अनुबंध कर चुके एंटीनोरी मेडिकल जगत में खुद विवादित रहे हैं. कैथोलिक चर्च से वह एडोल्फ हिटलर की उपाधि पा चुके हैं.
क्या हो सकता है मानव क्लोन का बुरा असर
दूसरी ओर स्कॉटलैंड के रोसलिन इंस्टीट्यूट के ईयन विलमट भी क्लोनेड के दावे को ठीक नहीं मानते. विलमट ने डॉली क्लोन बनाकर एक नया कीर्तिमान बनाया था. विलमट के मुताबिक लोगों ने सुअर के क्लोन बनाने का दावा किया है, पर क्या उन्हें किसी ने देखा है? बंदरों के क्लोन के भी दावे हुए, पर क्या उन्हें किसी ने देखा? विलमट ने क्लोनेड के दावे को नकारते और सफलता पर संदेह के साथ कहा था कि अगर ऐसा है तो क्लोनेड को सबूत देने चाहिए, जो नहीं है. हैदराबाद में भारत के सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मोलिक्यूलर बायोलोजी के निदेशक भी क्लोनिंग को सही नहीं मानते. उनके अनुसार इसका सबसे बड़ा बुरा असर यह हो सकता है कि लोग एक ही व्यक्ति के कई क्लोन बना सकते हैं. हालांकि, इलाज के लिए नियंत्रित छूट को लेकर उन्होंने सहमति जाहिर की.
मानव क्लोनिंग की संभावना को ऐसे मिली ताकत
इटली के सेवेरिनो एंटीनोरी ने 1980 के दशक में सबजोनल इन्सेमिनेशन (सूजी) तकनीक का आविष्कार करके नि:संतानों में नई आशा का संचार किया था. उन्होंने ही साल 1994 में माय इंपॉसिबिल चिल्ड्रेन नामक किताब लिखकर मानव की क्लोनिंग होने की संभावना जताई थी. जनवरी, 2001 में उन्होंने पानाइओटिस जावोस के साथ यह घोषणा की थी कि वैज्ञानिकों की उनकी टीम ही जनवरी या फरवरी, 2003 में दुनिया का पहला मानव क्लोन पैदा करेगा या अस्तित्व में ला सकेगा. उसी समय क्लोनेड कंपनी ने भी दावा किया था कि उनकी कंपनी ने एक अमेरिकी दंपति की मृत बच्ची का क्लोन बनाने का अनुबंध किया है. वही दुनिया के पहले मानव क्लोन को सबके सामने लाएगी. ईव के जन्म की घोषणा करके क्लोनेड ने अपने वादे को ही पूरा किया था.
उतार-चढ़ावों से भरा मानव क्लोनिंग का रास्ता
साल 1997 में स्कॉटलैंड के रोलिन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक प्रो. इयान विल्मट ने न्यूक्लियर ट्रांसफर तकनीक के जरिए पहले क्लोन जीव - डॉली भेड़ के जरिए मानव की क्लोनिंग का रास्ता बनाया था. लगातार 277 परीक्षणों की असफलता के बाद पैदा हुई क्लोन भेड़ डॉली का उदाहरण मानव क्लोनिंग की डगर को बेहद मुश्किल बना रहा था, लेकिन विज्ञान की प्राथमिक मांग तो गलतियों के दोहराव और पुन: कोशिश के संकल्प से जुड़ी है. मानव क्लोनिंग को ईश्वर की भूमिका में खुद को ढालने की कोशिश की तरह देखकर कई नैतिक सवाल भी खड़े हो गए थे. जापान, भारत और अनेक पश्चिमी मुल्कों में भारी विरोध और प्रतिबंधों के बीच अभियान गोपनीयता के आवरण में ढक गया. डॉली भेड़ में गठिया रोग और तेजी से बुढ़ापा आने के साथ ही आसामायिक मौत की खबरों ने मानव क्लोनिंग में जुटे वैज्ञानिकों को परेशान जरूर किया, लेकिन वे इसमें डटे रहे. उनकी कोशिशों का ही परिणाम 'ईव' के रूप में सामने आया था. डॉली के जन्म के लिए अपनाई गई -सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर की तकनीक ही क्लोन मानव का सपना साकार करने में सफल रही है.
क्या है विवादित रायलियनवादी पंथ
मानव क्लोनिंग के दावे के साथ ही रायलियनवादी पंथ भी चर्चा के दायरे में आता है. कंपनी- क्लोनेड के पीछे खड़ा रायलियनवादी पंथ पश्चिम के उन अतिवादी पंथों में एक है, जो विज्ञान के साथ-साथ कुछ उन मान्यताओं पर रूढ़ हैं, जिन्हें मानने में किसी भी समाज को परेशानी हो सकती है. एक फ्रांसीसी पत्रकार द्वारा सन् 1973 में स्थापित रायलियनवादी पंथ उड़न तश्तरियों और बाह्य अंतरिक्ष के बुद्धिमान प्राणियों से संपर्क में विश्वास की धारणाओं के चलते पहले से ही चर्चित रहा है. इस पंथ के दावे के मुताबिक 84 देशों में इसके 55 हजार से ज्यादा सदस्य हैं. रायलियन पंथ से जुड़े वैज्ञानिकों ने साल 1997 में बहामास में क्लोनेड की स्थापना इसी मकसद से की थी कि वह दुनिया में सबसे पहले क्लोन मानव के विचार को हकीकत में तब्दील कर दिखाएगा.
मानव क्लोन मामले में चिकित्सा जगत की उपलब्धियां
अमेरिका के जीव वैज्ञानिकों ने 16 मई 2013 को पहली बार व्यस्क लोगों की त्वचा की कोशिकाओं से पहली बार मानव भ्रूण क्लोन बनाने में सफलता प्राप्त करने का दावा किया था. न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों की यह उपलब्धि वैयक्तिक भ्रूण स्टेम सेल के निर्माण की दिशा में मील का पत्थर साबित होनेवाली थी. वैज्ञानिकों का दावा था है कि उन्होंने व्यस्क मानव कोशिकाओं की सहायता से दुनिया का प्रथम मानव क्लोन भ्रूण तैयार किया है. उन्होंने कहा कि इस क्लोन भ्रूण से भ्रूण स्टेम सेल निकाले जा सकते हैं, जिसे ब्लास्टो किस्ट कहते हैं. बोस्टन चिल्ड्रेंस अस्पताल के डॉ. जॉर्ज क्यू डाले ने कहा था कि क्लोनिंग के जरिए मरीज विशेष के लिए स्टेम सेल लाइन विकसित करने के आखिरी मकसद को हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
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साल 2021 में जापान में स्टेम सेल से अनोखा इलाज
पहले ये माना जा रहा था कि कोशिकाएं बनने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही इलाज के लिए बनाए जाने वाले कृत्रिम भ्रूण का विकास रुक जाता है. स्टेम सेल खुद को शरीर की किसी भी कोशिका में ढाल सकते हैं. इस साल यानी 2021 जापान के डॉक्टरों को एक नवजात शिशु में एम्ब्रियोनिक स्टेम सेल से निकाली गईं लिवर की कोशिकाओं के प्रतिरोपण में सफलता मिल गई. दुनिया में पहली बार हुए इस तरह के लिवर सेल ट्रांसप्लांट ने जानलेवा बीमारियों में नवजात बच्चों के इलाज के नए विकल्पों को लेकर उम्मीद जगा दी है. दरअसल, इस बच्चे को यूरिया साइकिल डिसऑर्डर था. इसमें लिवर जहरीली अमोनिया को तोड़कर शरीर से बाहर नहीं निकाल पाता है.
HIGHLIGHTS
- 27 दिसंबर 2002 को अमेरिका में पहले मानव क्लोन ईव के जन्म का दावा
- स्कॉटलैंड के रोसलिन इंस्टीट्यूट के ईयन विलमट ने बनाया था भेड़ का क्लोन डॉली
- 1994 में लिखी 'माय इंपॉसिबिल चिल्ड्रेन' किताब में मानव की क्लोनिंग की संभावना