जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control Law) को लेकर देश भर में अब एक नई बहस शुरू हो गई है. हालांकि पीएम मोदी भी इसे आवश्यक बता चुके हैं. अभी कुछ दिन पहले जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control Law) की मांग को लेकर मेरठ में ‘समाधान मार्च’ निकाला गया था. तीन दिवसीय पदयात्रा की अगुवाई केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, सांसद राजेंद्र अग्रवाल और स्वामी यतीन्द्रानंद गिरी ने की थी. अगर बात करें इस कानून की तो देश के कई राज्यों में टू चाइल्ड पॉलिसी लागू है. आइए जानें उन राज्यों के बारे में...
- असमः असम की सर्बानंद सोनोवाल सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए फैसला किया है कि एक जनवरी 2021 के बाद दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्तियों को कोई सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी.
- ओडिशा: दो से अधिक बच्चे वालों को अरबन लोकल बॉडी इलेक्शन लड़ने की इजाजत नहीं है.
- बिहार: यहां भी टू चाइल्ड पॉलिसी है, लेकिन सिर्फ नगर पालिका चुनावों तक सीमित है.
- उत्तराखंड: उत्तराखंड में टू चाइल्ड पॉलिसी है, लेकिन यहां भी सिर्फ नगर पालिका चुनावों तक सीमित है.
- महाराष्ट्र: जिन लोगों के दो से अधिक बच्चे हैं उन्हें ग्राम पंचायत और नगर पालिका के चुनाव लड़ने पर रोक है. महाराष्ट्र सिविल सर्विसेस रूल्स ऑफ 2005 के अनुसार तो ऐसे शख्स को राज्य सरकार में कोई पद भी नहीं मिल सकता है. ऐसी महिलाओं को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के फायदों से भी बेदखल कर दिया जाता है.
- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना: 1994 में पंचायती राज एक्ट ने एक शख्स पर चुनाव लड़ने से सिर्फ इसीलिए रोक लगा दी थी, क्योंकि उसके दो से अधिक बच्चे थे.
- राजस्थान: राजस्थान पंचायती एक्ट 1994 के अनुसार राजस्थान में अगर किसी के दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माना जाता है. दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को सिर्फ तभी चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाती है, अगर उसके पहले के दो बच्चों में से कोई दिव्यांग हो.
- गुजरात: लोकल अथॉरिटीज एक्ट को 2005 में बदल दिया गया था. दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को पंचायतों के चुनाव और नगर पालिका के चुनावों में लड़ने की इजाजत नहीं होगी.
- मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़: यहां पर 2001 में ही टू चाइल्ड पॉलिसी के तहत सरकारी नौकरियों और स्थानीय चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी. हालांकि, सरकारी नौकरियों और ज्यूडिशियल सेवाओं में अभी भी टू चाइल्ड पॉलिसी लागू है. 2005 में दोनों ही राज्यों ने चुनाव से पहले फैसला उलट दिया, क्योंकि शिकायत मिली थी कि ये विधानसभा और लोकसभा चुनाव में लागू नहीं है.