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MP- महाराष्ट्र के बाद क्या झारखंड? गैर- BJP दल गंवा रहे अपनों का भरोसा

इन राजनीतिक घटनाक्रमों को देखकर बड़ा सवाल उभर कर सामने खड़ा हो गया है कि क्या गैर बीजेपी दलों (Non-BJP Parties) में अपनों का भरोसा कम हो रहा है? 

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Keshav Kumar
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क्या गैर बीजेपी दलों में अपनों का भरोसा कम हो रहा है?( Photo Credit : News Nation)

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कर्नाटक और मध्य प्रदेश में तख्तापलट जैसी सियासी मुश्किल में घिरे महाराष्ट्र ( Maharshatra Political Crisis ) राज्य के बाद कयास लगाए जाने लगे हैं कि ऐसी हालत से झारखंड भी दो-चार हो सकता है. राजस्थान में भी बीते साल ऐसी ही नौबत के बाद गहलोत सरकार बाल-बाल बची थी. वहीं पंजाब में सत्तारूढ़ पार्टी ने अपनों की नाराजगी के चलते चुनाव में बुरी तरह शर्मसार होकर सरकार गंवा दी. इन राजनीतिक घटनाक्रमों को देखकर बड़ा सवाल उभर कर सामने खड़ा हो गया है कि क्या गैर बीजेपी दलों (Non-BJP Parties) में अपनों का भरोसा कम हो रहा है? 

राज्यों में सत्ता के खेल के लिए गैर-बीजेपी दल बार-बार केंद्र में सत्तासीन बीजेपी पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग, डर और लालच का आरोप लगाते रहते हैं, मगर इनको कोई वजन नहीं मिल पाता. ईवीएम में छेड़खानी के आरोप जैसे ही इसको भी मुख्यधारा में गंभीरता से नहीं लिया जाता. इसके उलट विपक्षी दलों पर रणनीतिक विफलता, अंदरूनी गुटबाजी और कमजोर नेतृत्व का ठीकरा ही फोड़ा जाता है. 

मध्य प्रदेश में गई कांग्रेस की कमलनाथ सरकार

सबसे पहले सत्तारूढ़ पार्टी में गुटबाजी की भेंट चढ़ी मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार की बात करते हैं. मध्य प्रदेश कांग्रेस में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया का अलग-अलग खेमा था. सिंधिया के खिलाफ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह एकजुट हो जाते थे. इसके मारे सिंधिया के लोग सरकार और संगठन में अहम जिम्मेदारी से वंचित रह जाते थे. सिंधिया गुट के लोगों की आलाकमान भी लगातार अनदेखी कर रहा था. इसके बाद सिंधिया गुट बाजी पलटने के लिए मौके का इंतजार कर रहा था. 

ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत का असर

मध्यप्रदेश में सिंधिया की बगावत के बाद मध्य प्रदेश में राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा मैदान में उतरे थे, लेकिन सिंधिया अपने समर्थकों के साथ पार्टी छोड़कर बीजेपी में जाने मन बना चुके थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी में शामिल होने से पहले अपने ट्विटर बायो से कांग्रेस का नाम भी हटा दिया था. साल 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 विधायकों ने कमलनाथ सरकार में बगावत की. बीजेपी ने इस मौके को बहुत ही अच्छे से भुनाया और सरकार पलट गई.

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे- शिवसेना की दिक्कत

मध्य प्रदेश जैसे ही सियासी हालात से महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महाविकास आघाड़ी के नेतृत्व कर रही शिवसेना जूझ रही है. यहां शिवसेना में सिंधिया की भूमिका में पुराने शिवसैनिक एकनाथ शिंदे हैं. हिंदुत्व के मुद्दे पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ एकनाथ शिंदे की बगावत कई दिनों से देश में सुर्खियों में है. पहले राज्यसभा चुनाव, फिर एमएलसी चुनाव और पिर सीधे संगठन और सरकार पर दावे की हिम्मत शिंदे ने दिखाई है. शिंदे का निशाना सिर्फ उद्धव ठाकरे की सीएम की कुर्सी नहीं है. 45 से ज्यादा विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे शिंदे शिवसेना पर भी कब्जा करना चाहते है. 

एकनाथ शिंदे का पार्टी और सरकार पर दावा

एकनाथ शिंदे चाहते हैं कि शिवसेना के सिम्बल की लड़ाई चुनाव आयोग के पाले में जाए ताकि संख्या बल के आधार पर अपने गुट को असली शिवसेना साबित कराने में कामयाब हो सकें. इसलिए शिंदे बार-बार खुद को असली शिवसैनिक बता रहे हैं और हिंदुत्व का नारा बुलंद कर रहे हैं. इसके अलावा एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन को बेमेल बता रहे हैं. महाराष्ट्र में विधानसभा सत्र बुलाने की मांग तक नहीं कर रही बीजेपी शिंदे की योजना को मदद ही पहुंचा रही है. इस तरह से बीजेपी की टॉप लीडरशिप सही सियासी मौके के इंतजार में है.

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राजस्थान में बची और पंजाब में गई कांग्रेस सरकार 

इसी तरह का वाकया राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के टकराव के बाद कांग्रेस के सामने आया. हालांकि बागी पायलट को कांग्रेस अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री दोनों ही पद गंवाकर संतोष करना पड़ा. कांग्रेस आलाकमान से ज्यादा इसमें सीएम गहलोत की रणनीति को क्रेडिट मिला. पायलट गुट की ओर से इसके बाद भी रह-रहकर आवाज उठती रहती है. वहीं पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की लड़ाई में चुनाव से ठीक पहले चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाना पड़ा. पंजाब में अनुसूचित जाति का पहला सीएम बनाने का दांव भी कांग्रेस के काम नहीं आ पाया. सिद्धू, चन्नी और जाखड़ की अंदरूनी गुटबाजी से त्रस्त कांग्रेस को चुनाव में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. 

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झारखंड में जेएमएम-कांग्रेस में सतह पर असंतोष

झारखंड में सत्तासीन झारखंड मुक्ति मोर्चा की गठबंधन सरकार को भी जल्द ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस और महाराष्ट्र में शिवसेना जैसी हालत का सामना करना पड़ सकता है. राजनीतिक जानकारों के पास इस कयास के लिए की तर्क हैं. जेएमएम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ पनप रहा असंतोष, सीएम सोरेन, उनके भाई बसंत सोरेन और मंत्रियों पर लगे गंभीर आरोप का असर बगावत के रूप में दिख सकता है. झारखंड के सियासी गलियारे में चर्चा है कि जेएमएम के विधायक और कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय का अभाव भी सोरेन सरकार के लिए गले की फांस बन सकता है. वहीं, गठबंधन में शामिल कांग्रेस के कई विधायक विपक्षी दलों के साथ देखे जा रहे हैं.

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और भी राज्यों में गैर-बीजेपी दलों में अंदरूनी कलह

इन सबके अलावा गुजरात में आलाकमान पर आरोपों के साथ कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल का इस्तीफा हो गया. उत्तर प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से साथ आकर दोबारा छिटके उनके चाचा शिवपाल यादव और मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खान की नाराजगी की खबर आनी अभी कम नहीं हुई है. छत्तीसगढ़ में सीएम भूपेश बघेल और कांग्रेस के सीनियर नेता टीएस सिंह जूदेव की लड़ाई भी दिल्ली के दखल के बाद थमी. बिहार में सत्तासीन जनता दल यूनाइटेड में पूर्व और मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष यानी केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह और ललन सिंह की रस्साकशी का असर दिख रहा है. आरसीपी को राज्यसभा का टिकट नहीं दिया जाना, पटना में बंगला वापस लिया जाना, उनके नजदीकियों को पार्टी से निकाला जाना वगैरह साफ दिखा रहा है कि अंदरखाने में सब ठीक नहीं चल रहा है.  

HIGHLIGHTS

  • क्या गैर बीजेपी दलों में अपनों का भरोसा कम हो रहा है? 
  • कई राज्यों मे विभिन्न दलों में संगठन और सरकार पर संकट
  • सियासी मुश्किल में घिरे महाराष्ट्र के बाद कई राज्यों में कयास
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