लगभग सात साल बाद एक बार फिर इजरायल (Israel) और फिलिस्तीन (Philistine) एक-दूसरे के आमने सामने हैं. लगातार हो रहे हवाई हमलों और गोलाबारी के बीच एक बार फिर दोनों के बीच युद्द जैसे हालात बन गए हैं. साल 2014 में दोनों के बीच युद्ध हुआ था जो कि 50 दिन तक चला था. बीते शुक्रवार से एक बार फिर हमास और इजरायल के बीच हजारों रॉकेट दागे जा चुके हैं. सवाल यह उठता है कि आखिर दोनों देश इस कदर एक-दूसरे के खून के प्यासे क्यों हैं. इस सवाल का जवाब छिपा है 14 मई के इतिहास में. इजरायल इसे राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाता है. इसी दिन इजरायल राष्ट्र की स्थापना हुई थी. फिलिस्तीन के लिए यह एक त्रासदी का दिन है. सही मायनों में 15 मई को वह त्रासदी दिवस मनाता है, जब उससे उसकी जमीन छीनी गई. बस यहीं से शुरू हुआ हिंसक संघर्ष, जो फिर युद्ध की शक्ल ले रहा है.
35 एकड़ का प्लॉट है जंग की वजह
वास्तव में इजरायल और फलस्तीन के बीच संघर्ष की वजह यरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद मानी जा रही है. इससे जुड़ा एक 35 एकड़ का प्लॉट है जो संघर्ष के मूल में है. दोनों देशों के बीच 2017 के बाद का यह सबसे बड़ा हिंसक संघर्ष है. दरअसल मुस्लिम समुदाय अल-अक्सा मस्जिद को मक्का और मदीना के बाद तीसरा पवित्र स्थल मानता है. शहर के पुराने हिस्से में एक पहाड़ी के ऊपर फैले इस आयताकार प्लेटफॉर्म को यहूदी पुकारते हैं, हर हबायित. ये हिब्रू भाषा का शब्द है. इस नाम का प्रचलित अंग्रेज़ी संस्करण है- टैंपल माउंट. मुसलमान इसे हरम अल-शरीफ के नाम से भी बुलाते हैं, वहीं इजरायल के यहूदियों के अलावा ईसाई भी इस जगह को अपने लिए पवित्र मानते हैं.
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यहूदियों की मान्यता
यहूदी मानते हैं कि इसी जगह पर उनके ईश्वर ने वो मिट्टी संजोई थी, जिससे एडम का सृजन हुआ. एडम यानी वह पहला पुरुष, जिससे इंसानों की भावी पीढ़ियां अस्तित्व में आईं. यहूदियों की एक और मान्यता जुड़ी है टैंपल माउंट से. उनके एक पैगंबर थे, अब्राहम. अब्राहम के दो बेटे थे- इस्माइल और इज़ाक. एक दफ़ा ईश्वर ने अब्राहम से उनके बेटे इज़ाक की बलि मांगी. ये बलि देने के लिए अब्राहम ईश्वर की बताई जगह पर पहुंचे. यहां अब्राहम इज़ाक को बलि चढ़ाने ही वाले थे कि ईश्वर ने एक फ़रिश्ता भेजा. अब्राहम ने देखा, फ़रिश्ते के पास एक भेड़ा खड़ा है. ईश्वर ने अब्राहम की भक्ति, उनकी श्रद्धा पर मुहर लगाते हुए इज़ाक को बख़्श दिया था. उनकी जगह बलि देने के लिए भेड़ को भेजा. यहूदियों के मुताबिक, बलिदान की वो घटना इसी टैंपल माउंट पर हुई थी. इसीलिए इज़रायल के राजा किंग सोलोमन ने करीब 1,000 ईसापूर्व में यहां एक भव्य मंदिर बनवाया. यहूदी इसे कहते हैं- फर्स्ट टैंपल. आगे चलकर बेबिलोनियन सभ्यता के लोगों ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया.
मुसलमानों का विश्वास
इसके उलट मुसलमानों का मानना है कि पैगंबर मोहम्मद रात की यात्रा (अल-इसरा) के दौरान मक्का से चलकर अल-अक्सा मस्जिद आए थे और जन्नत जाने से पहले यहां रुके थे. आठवीं सदी में बनी यह मस्जिद पहाड़ पर स्थित है. इसे दीवारों से घिरा हुए पठार के रूप में भी जाना जाता है. मुस्लिमों के मुताबिक इस्लाम की सबसे पवित्र जगहों में पहले नंबर पर है मक्का. दूसरे नंबर पर है मदीना. और तीसरे नंबर पर है, हरम-अल-शरीफ़. यानी जेरुसलम का वो 35 एकड़ का अहाता. इस इस्लामिक मान्यता का संबंध है क़ुरान से. क़ुरान के मुताबिक सन् 621 के एक रात की बात है. पैगंबर मुहम्मद एक उड़ने वाले घोड़े पर बैठकर मक्का से यरुशलम आए. यहीं से वो ऊपर जन्नत में चढ़े. यहां उन्हें अल्लाह के दिए कुछ आदेश मिले.
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धर्म युद्ध से रक्तरजिंत है यह इलाका
जाहिर है सबसे प्राचीन मान्यता यहूदियों की है, क्योंकि क्रिश्चिएनिटी और इस्लाम, दोनों यहूदी धर्म के बाद आए. यहूदियों पर हमला किया रोम साम्राज्य ने. उन्होंने यरुशलम पर कंट्रोल कर लिया. फिर आए मुसलमान. उन्होंने यरुशलम को अपने कंट्रोल में लेकर यहां धार्मिक इमारतें बनवाईं. फिर आगे चलकर ईसाइयों और मुस्लिमों में धर्मयुद्ध शुरू हुआ. इसमें पहला ही युद्ध यरुशलम के लिए लड़ा गया. इस फर्स्ट क्रूसेड के तहत जुलाई 1099 में ईसाइयों ने यरुशलम को जीत लिया. मगर ये जीत ज़्यादा समय तक बरकरार नहीं रही. 1187 में मुस्लिमों ने यरुशलम को वापस हासिल कर लिया. उन्होंने हरम-अल-शरीफ़ का प्रबंधन देखने के लिए वक़्फ यानी इस्लामिक ट्रस्ट का गठन किया. पूरे कंपाउंड का कंट्रोल इसी ट्रस्ट के हाथ में था. यहां ग़ैर-मुस्लिमों को प्रवेश की अनुमति नहीं थी. सदियों तक ऐसी ही व्यवस्था बनी रही. फिर आया 1948 का साल. इस बरस गठन हुआ इज़रायल का.
इजरायल का यरुशलम पर दावा
इज़रायल यरुशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता था., क्योंकि उसकी पवित्रतम जगहें, उसका टैंपल माउंट यही हैं. यहूदियों की ही तरह दुनियाभर के मुसलमानों की भी आस्था जुड़ी है यहां से. इसी कारण मुसलमान पहले ही इज़रायल के गठन का विरोध कर रहे थे. ऐसे में यरुशलम और टैंपल माउंट का कंट्रोल अगर इज़रायल को मिल जाता, तो भयंकर खून-ख़राबा होता. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में दुनिया के बड़े देशों ने एक मसौदा बनाया, जिसे कहा गया पार्टिशन रेजॉल्यूशन. इसमें प्रस्ताव दिया गया कि फ़िलिस्तीन को दो भाग में बांट दिया जाए. एक हिस्सा यहूदियों का. दूसरा, फिलिस्तीनियों का. यरुशलेम पर अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण की बात कही गई. इज़रायल मसौदे पर राज़ी था, मगर अरब मुल्कों ने इसे खारिज़ कर दिया. दोनों पक्षों के बीच संघर्ष हुआ.
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1967 के युद्ध में गाजा और वेस्टबैंक पर कब्जा
इसी संघर्ष का एक अध्याय था 1967 का सिक्स डे वॉर. इस युद्ध में इज़रायल की जीत हुई. और इसके साथ ही टैंपल माउंट के कंट्रोल में भी एक बड़ा बदलाव हुआ. 1967 में अरब देशों ने मिलकर इजरायल पर हमला किया, लेकिन इसबार इजरायल ने महज छह दिन में ही उन्हें हरा दिया और उनके कब्जे वाले वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया. तब से लेकर अबतक इजरायल का इन इलाकों पर कब्जा है. यहां तक कि यरुशलम को वो अपनी राजधानी बताता है. हालांकि गाजा के कुछ हिस्से को उसने फिलिस्तीनियों को वापस लोटा दिया है. वर्तमान में ज्यादातर फिलिस्तीनी गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में रहते हैं. उनके और इजरायली सैन्य बलों के बीच संघर्ष होता रहता है.
शुक्रवार को इसलिए भड़की हिंसा
इजरायली इसी के बाद से यरुशलम दिवस मनाने लगे. सोमवार को इस घटना की वर्षगांठ के मौके पर यहूदी राष्ट्रवादी एक मार्च निकालने वाले थे. इसी बीच हिंसा भड़क उठी. इजरायल ने बाद में एकीकृत यरुशलम को अपनी नई राजधानी बनाने के ऐलान किया. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मान्यता नहीं मिली. ऐसे में नई व्यवस्था के तहत जॉर्डन का इस्लामिक ट्रस्ट वक्फ अक्सा मस्जिद और 'द डोम ऑफ द रॉक' की प्रशासनिक जिम्मेदारी संभालता रहा. 1994 में जॉर्डन के साथ समझौते के बाद इजरायल को यहां विशेष भूमिका दी गई. उसके बाद से इजरायली सुरक्षा बल यहां लगातार मौजूद रहते हैं और वक्फ के साथ मिलकर इलाके का प्रशासन संभालते हैं. यथास्थिति वाले समझौते के तहत यहूदियों और ईसाइयों को यहां जाने की इजाजत है, लेकिन मुसलमानों यहां मैदान पर नमाज से मना किया जाता है. यहां यहूदी पश्चिमी दीवार के पास पवित्र पठार के ठीक नीचे प्रार्थना करते हैं, जो पहले टेंपल माउंट की चारदीवारी थी.
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फिलिस्तीन औऱ हमास में भी एकरूपता नहीं
इजरायली पुलिस ने यहां बड़ी संख्या में लोगों को जुटने से रोकने के लिए 12 अप्रैल को बैरिकेड्स लगा दिए. रमजान के महीने में फिलीस्तीनी मुस्लिम यहां बड़ी संख्या में जुटते हैं. उसने कुछ दिनों बाद अल-अक्सा मस्जिद में नमाज के लिए लोगों की संख्या सीमित कर दी. वहीं, हजारों की संख्या में आए फलीस्तीनियों को वापस भेज दिया गया. इसके बाद से इजरायल और फिलीस्तीन के चरमपंथी समूह हमास के बीच संघर्ष तेज हो गया. तनाव इज़रायल से दूर बाकी देशों में भी दिख रहा है. इंटरनेट पर भी लोग बंट गए हैं. कोई इज़रायल के सपोर्ट में हैशटैग चला रहा है. कोई फिलिस्तीन की तरफ से अपील कर रहा है. मगर कुल मिलाकर देखिए, तो इस प्रकरण में सिवाय निराशा के और कुछ नहीं. पिछले 10 बरसों से दोनों पक्षों के बीच शांति वार्ता ठप है. फिलिस्तीनी लीडरशिप बंटी हुई है. फिलिस्तीनियन नेशनल अथॉरिटी और हमास के बीच दरार है. ऊपर से जब हमास हिंसा करता है, तो आम फिलिस्तिनियों का पक्ष कमज़ोर होता है. नतीजा यह है कि इजरायल और फिलिस्तीन फिर से युद्ध की ओर बढ़ते दिख रहे हैं.
HIGHLIGHTS
- इजरायल और फिलिस्तीन फिर आ खड़े हुए युद्ध के मुहाने पर
- धार्मिक विश्वास की वजह से आमने-सामने हैं यहूदी-मुस्लिम
- ईसाई भी ताल ठोंकते हैं यहां के पवित्र स्थल पर