अमेरिका और ईरान के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है. अमेरिकी हवाई हमले में ईरान के कमांडर कासिम सुलेमानी के मारे जाने के बाद पूरी दुनिया युद्ध के मुहाने पर पहुंच गई है. ईरान ने अपने यहां मस्जिदों पर लाल झंडा फहराकर युद्ध के संकेत दे दिए हैं. वहीं अमेरिका ने कहा कि अगर ईरान किसी भी अमेरिकी नागरिक और संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उसके परिणाम बेहद ही खतरनाक हो सकते हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि ईरान अगर कोई भी अमेरिका के खिलाफ कदम उठाता है तो उसके 52 बेहद (52 इसलिए क्योंकि काफी साल पहले ईरान ने 52 अमेरिकी नागरिकों को बंधक बनाया था) प्रमुख ठिकानों को निशाना बनाया जाएगा.
ईरान और अमेरिका की भाषा का आंकलन किया जाए तो कोई भी देश पीछे हटने वाला नहीं है. यानी आनेवाले दिनों में दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे माहौल बन सकते हैं. सवाल यह है कि अगर अमेरिका और ईरान के बीच वॉर होता है तो कौन सा देश किसके साथ खड़ा होगा.
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हालांकि दुनिया भर के मुल्क चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच मचा कोहराम शांत हो जाए. ऐसी कोई नौबत ही ना आए जिससे इंसानी जिंदगी को नुकसान पहुंचे. वो इसके लिए दोनों देशों से अपील भी कर रहे हैं कि संयम बनाए रखे.
हालांकि ईरान की ताकत इतनी नहीं है कि वो सीधे अमेरिका के साथ युद्ध करेगा. सीधे युद्ध में उसे किसी देश का साथ भी नहीं मिलने वाला है. लेकिन लेबनान, यमन, सीरिया, फिलिस्तीन और इराक का साथ तब मिल सकता है जब ईरान अमेरिका के खिलाफ प्रॉक्सी वार करे. मतलब सीधे युद्ध ना करके तीसरी शक्ति का इस्तेमाल करके अमेरिका को नुकसान पहुंचाया जाए. मतलब ईरान आतंकवाद का सहारा अमेरिका को नुकसान पहुंचाने के लिए ले सकता है.
ईरान का साथ रूस और चीन भी दे सकते हैं. अमेरिकी ने सुलेमानी को जिस तरह से मारा है उसकी आलोचना रूस और चीन ने की है. रूस ने इस कार्रवाई को अवैध कार्रवाई बताया है. वहीं चीन ने सीधे तौर पर तो अमेरिका को कुछ कहा नहीं है. लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि बीजिंग इस मामले पर चिंतित है और वो लगातार मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव पर नजर बनाए हुए है. वैसे भी पूरी दुनिया को पता है कि चीन और रूस का अमेरिका से छत्तीस का आंकड़ा है. भले ही वो सीधे ईरान के साथ ना हो, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से ईरान की मदद कर सकते हैं.
लेकिन जब सीधे युद्ध की स्थिति बनती है तो निश्चित तौर पर ईरान के साथ रूस और चीन जा सकता है. क्योंकि मीडिल ईस्ट से रूस और चीन के अपने-अपने हित जुड़े हुए हैं. मीडिल ईस्ट में अमेरिका की दखलअंदाजी का दोनों देश आए दिन विरोध जताते रहे हैं.
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वहीं अमेरिका ईरान के खिलाफ जंग का ऐलान करता है तो उसके साथ सऊदी अरब, इजरायल और खाड़ी देश का समर्थन मिल सकता है. हालांकि ये देश भी अमेरिकी और ईरान को संयम बनाए रखने की बात कह रहे हैं.
इजरायल और सऊदी अरब ईरान को अपना जानी दुश्मन मानते हैं. ऐसे में वो अमेरिका के साथ खड़े नजर आएंगे. ईरान और लेबनान के आतंकवादी संगठन हिजबुल्ला यहूदी बाहुल्य देश इजराइल से नफरत करते हैं. दोनों देशों के बीच कई बार युद्ध जैसे हालात बन चुके हैं.
वहीं सऊदी अरब और ईरान के बीच शिया-सुन्नी की लड़ाई है. ईरान में ज़्यादातर शिया मुसलमान हैं, वहीं सऊदी अरब ख़ुद को एक सुन्नी मुस्लिम शक्ति की तरह देखता है.
दशकों से सऊदी अरब खुद को मुस्लिम दुनिया का नेता मानता आ रहा था, लेकिन साल 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति ने सऊदी अरब को चैलेंज किया. जो सऊदी अरब को पसंद नहीं आया और दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गई. 2003 में अमरीका की अगुवाई में सद्दाम हुसैन को गद्दी से हटा दिया गया जो कि ईरान का विरोधी था.
वहीं, सऊदी अरब के कैंप में यूएई, कुवैत, बहरीन, मिस्र और जॉर्डन है. यहां पर सुन्नी ज्यादा है. ये देश भी ईरान को पसंद नहीं करते हैं. ऐसे में इनका साथ भी अमेरिका को मिल सकता है.
फ्रांस और इंग्लैंड का साथ भी अमेरिका को मिल सकता है. हालांकि दोनों देशों के तनातनी को लेकर यूरोपीय संघ अमन और शांति बहाली की अपील की है.
पूरी दुनिया चाहती है कि दोनों मुल्कों में शांति कामय हो जाए और युद्ध की विभीषिका से बच जाए. इस साथ यह भी सच है कि ईरान अगर युद्ध छेड़ता है तो उसका हारना तय है. अमेरिका के सैनिकों और हथियारों के आगे ईरान बेहद ही बौना है. लेकिन बावजूद अमेरिका को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसके साथ ही साथ पूरी दुनिया भी इस आग में झुलस सकती है.
Source : Nitu Kumari