एक तरफ पूरी दुनिया Chinese Virus कोविड-19 (COVID-19) के कहर से जूझ रही है. दूसरी ओर चीन दुनिया में मची इस आपाधापी में अपनी विस्तारवादी नीति को अमल में लाने के लिए हर पैतरे को आजमाना शुरू कर चुका है. पहले पहल तो वह कोरोना कहर से मंदी की चपेट में आई कंपनियों पर कब्जा करने की रणनीति पर काम कर रहा है. इसके बाद वह पाकिस्तान (Pakistan) समेत उन देशों को अपने अदर्ब में ले रहा है, जो उसकी भीख पर जिंदा हैं. इन सबके बीच चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग (Xi Jinping) ने भविष्य के साइबर युद्ध की अपनी तैयारी शुरू कर दी है. चीन ने अपने 'अंतरिक्ष दिवस' के अवसर पर अपने मंगल मिशन का नाम 'तियानवेन-1' रखा. चीन की इसी साल के अंत में मंगल पर 'तियानवेन-1' को प्रक्षेपित करने की योजना है. अगले पांच सालों में अंतरिक्ष (Space) को लेकर चीन की कई महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं. वह दुनिया का सबसे बड़ा स्पेस टेलीस्कोप, सबसे वज़नदार रॉकेट और स्पेश स्टेशन लॉन्च करने की योजना बना रहा है, जो उसे दुनिया का अगला स्पेस सुपर पावर (Super Power) बनने में मदद करेगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता इस बात की है कि युद्ध के समय चीन इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल दुश्मन देशों के सैटेलाइट को ध्वस्त करने में कर सकता है.
महत्वाकांक्षी मिशन है 'तियानवेन'
चीनी राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन (सीएनएसए) ने मंगल मिशन का नाम 'तियानवेन' रखा जिसका अर्थ है स्वर्गीय प्रश्न या स्वर्ग से प्रश्न. यह चीन के जाने माने कवि कु युआन की लिखी एक कविता है. कु क्वान ने 'तियानवेन' में अपनी कविता के माध्यम से आकाश, सितारों, प्राकृतिक घटनाओं, मिथकों एवं वास्तविक दुनिया को लेकर सवाल पूछे हैं जिनमें पारम्परिक उन्होंने अवधारणाओं और सत्य को पाने की भावना को लेकर अपना संशय भी व्यक्त किया है. चीन के मंगल ग्रह अन्वेषण संबंधी सभी मिशनों को 'तियानवेन' श्रृंखला के नाम से जाना जाएगा, जो सच का पता लगाने एवं विज्ञान संबंधी अन्वेषण करने और प्रकृति एवं ब्रह्मांड संबंधी खोज के प्रति चीन की दृढ़ता का प्रतीक हैं. हाल के वर्षों में चीन मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने वाली एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरा है. चीन फिलहाल खुद का एक अंतरिक्ष स्टेशन भी बना रहा है.ॉ
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एक बार ही हुआ असफल
हालांकि चीन इस क्रम में साल 2011 में एक बार असफल हो चुका है जब उसने रूसी अंतरिक्षयान से मंगल पर 'यिंगहुओ-1' भेजने की कोशिश की थी. प्रक्षेपण के कुछ समय बाद ही यान रास्ता भटक गया था. अभी तक अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और भारत मंगल पर यान भेजने में सफल रहे है. भारत मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के साथ ही पहला ऐसा एशियाई देश बन गया था, जिसने मंगल मिशन में सफलता हासिल की. गौरतलब है कि 24 अप्रैल 1970 को चीन में पहले कृत्रिम पृथ्वी उपग्रह 'तोंगफांगहोंग-1' का सफलतापूर्ण रूप से प्रक्षेपण किया गया थी. उस वक्त चीन विश्व में कृत्रिम पृथ्वी उपग्रह का सफल प्रक्षेपण करने वाला पांचवां देश बन गया था. तब से 24 अप्रैल को चीन राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाता आ रहा है.
शी ने किया युवाओं से आह्वान
शुक्रवार को इस अवसर पर शुक्रवार को शी जिनपिंग ने युवाओं से आह्वान करते हुए कहा था कि अंतरिक्ष विज्ञानियों को पूर्व पीढ़ी के वैज्ञानिकों से सीखना चाहिए. उन्हें आदर्श मानते हुए कठिनाइयों और मुश्किलों को दूर करना चाहिए, ताकि चीनी लोगों के बाह्य अंतरिक्ष में खोजने का कदम ज्यादा स्थिर और ज्यादा दूर तक जा सके. हाल ही में तोंगफांगहोंग नम्बर एक मिशन में भाग लेने वाले 11 बुजुर्ग वैज्ञानिकों ने शी चिनफिंग को पत्र भेजा था. चीन से पहले चार देशों ने भी अपना प्रथम उपग्रह कक्षाओं में स्थापित किया था. हालांकि चीन का प्रथम उपग्रह इन चार देशों के प्रथम उपग्रहों के कुल वजन से तीस किलोग्राम अधिक था और इस की ट्रैकिंग तकनीक, सिग्नल ट्रांसमिशन तकनीक तथा थर्मल कंट्रोल तकनीक भी अधिक उन्नतिशील है. आज तक यह उपग्रह अंतरिक्ष में चल रहा है.
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50 सालों में 300 अंतरिक्ष सैटेलाइट भेजे
अगर साइबर युद्ध के लिहाज से तैयारियों की बात करें तो बीते पचास सालों में चीन ने कुल तीन सौ से अधिक अंतरिक्ष सैटेलाइट प्रक्षेपित किये हैं. अब चीन की अपनी मानवयुक्त अंतरिक्ष यान, चंद्रमा और गहरी अंतरिक्ष की खोज, पेइताउ उपग्रह नेविगेशन, पृथ्वी अवलोकन, संचार प्रसारण तथा अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रयोग आदि की पूरी व्यवस्थाएं संपन्न हो चुकी है. चीन ने 1958 में अपना उपग्रह प्रक्षेपित करने का फैसला लिया. दूसरे डिजाइनर फैन हौ ने कहा कि चीन की उपग्रह तकनीक बिल्कुल शून्य से विकसित की गयी है. पर आत्म-निर्भर और कठोर संघर्ष करने की भावना से चीनी तकनीशियनों ने अपना प्रथम उपग्रह, प्रथम बैलिस्टिक मिसाइल और प्रथम परमाणु बम का निर्माण भी किया.
सबसे अधिक रॉकेट लॉन्च
- 2018 में चीन ने दूसरे देशों से मुक़ाबले सबसे अधिक रॉकेट लॉन्च किए थे. कुल 39 रॉकेट लॉन्च में सिर्फ़ एक ही असफल रहा था. वहीं साल 2016 में कुल 22 रॉकेट लॉन्च किए गए थे.
- 2018 में अमरीका ने 34 और रूस ने 20 रॉकेट लॉन्च किए थे. अमरीका ने 2016 में अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर 36 बिलियन डॉलर ख़र्च किए थे, वहीं चीन का ख़र्च इस साल महज़ पांच बिलियन डॉलर का था.
- ज़्यादा से ज़्यादा सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए चीन वज़नदार रॉकेट बना रहा है, जिसका दोबारा इस्तेमाल किया जा सकेगा.
- अमरीका की कई प्राइवेट कंपनियां कम क़ीमत के रॉकेट बना रही हैं, हालांकि चीन की प्राइवेट कंपनी का पहला रॉकेट अपने अभियान में असफल रहा था.
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चांद पर चीन की सफलता
- चांग'ए कार्यक्रम का नाम चीन की उस देवी के नाम पर रखा गया है जो कहानियों के मुताबिक़ चांद पर चली गई थीं.
- यह कार्यक्रम 2003 में शुरू हुए मिशन का हिस्सा है, जिसका मक़सद साल 2036 तक चांद पर इंसान उतारने का है.
- चीन का चांग'ए-4 मिशन बेहद मुश्किल और ख़तरनाक है क्योंकि इसमें अंतरिक्ष यान को चंद्रमा के उस हिस्से में उतारना था जो अब तक छिपा रहा था.
- इस हिस्से से धरती से सीधा संपर्क बनाए रखना आसान नहीं होता क्योंकि चांद का वातावरण ही संपर्क तोड़ देता है. इस समस्या के समाधान के लिए चीन ने पृथ्वी और चांद के बीच एक विशेष सैटेलाइट को लॉन्च किया जो अंतरिक्ष यान और चांग'ए 4 से संपर्क बनाए रखने में मदद करता है.
- चांग'ए-4 वहां की धरती की पड़ताल करेगा और वहां आलू और दूसरे पौधे के बीज भी लगाएगा. वो वहां रेशम के कीड़े के अंडे पर भी प्रयोग करेगा.
- अभी तक हमलोगों ने चांद की रोशनी वाला हिस्सा ही देखा था क्योंकि चांद अपनी धुरी पर घूमने में उतना ही वक़्त लेता है जितना पृथ्वी की कक्षा के चक्कर लगाने में.
स्पेस स्टेशन
- चीन ने 2011 में स्पेश स्टेशन के कार्यक्रमों की शुरुआत की थी. ये स्टेशन छोटा था, जिस पर अंतरिक्ष वैज्ञानिक बहुत कम दिनों के लिए ही ठहर सकते थे.
- 2016 में इसने काम करना बंद कर दिया. चीन ने इसी साल इस बात की पुष्टि की थी कि उनका स्पेस स्टेशन द तियांगोंग-1 से संपर्क टूट गया है.
- 2018 में यह अनुमान लगाया गया था कि इस बंद पड़े स्पेस स्टेशन का मलबा 30 मार्च से दो अप्रैल के बीच धरती पर गिर सकता है. हालांकि यह अप्रैल में दक्षिण प्रशांत महासागर में गिरा था.
- चीन का दूसरा स्पेस स्टेशन तियांगोंगे-2 सेवा में है और बीजिंग ने यह तय किया है कि 2022 तक अंतरिक्ष में वो मानवसहित स्पेस स्टेशन लॉन्च करेगा.
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सैटेलाइट के ख़िलाफ़ मिसाइल टेस्ट
- 2007 में रूस और अमेरिका के बाद चीन तीसरा ऐसा देश बना जो यह प्रदर्शित किया कि वह अंतरिक्ष में किसी भी सैटेलाइट को ध्वस्त कर सकता है.
- चीन ने ज़मीन से एक मध्यम रेंज के मिसाइल का प्रयोग मौसम सैटेलाइट को ध्वस्त करने के लिए किया था. यह सैटेलाइट 1999 में लॉन्च किया गया था.
- इसके बाद चीन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई. चीन ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि वह अंतरिक्ष में किसी तरह के शस्त्रीकरण के ख़िलाफ़ है और हथियारों की दौड़ में नहीं है.
HIGHLIGHTS
- चीन स्पेस तकनीक का इस्तेमाल दुश्मन देशों के सैटेलाइट को ध्वस्त करने में करेगा.
- स्पेस सुपर पॉवर बनने के क्रम में 50 सालों में भेजे 300 से अधिक सैटेलाइट.
- कई महत्वाकांक्षी योजनाएं अगला स्पेस सुपर पावर बनने में मदद करेंगी चीन की.