सिर्फ 15 मिनट और बेरहम बगदादी का खात्मा. सुनने में आसान लगता है, लेकिन ये इतना आसान नहीं था, वर्षों की मेहनत और ना जाने कितना इंटेलिजेंस, कितनी ही बार नाकाम कोशिशें होने के बाद पूरा हुआ ऑपरेशन बगदादी. ओसामा बिन लादेन के बाद अबू बक्र अल बगदादी अमेरिका का दुश्मन नंबर 1 था और ओसामा की तरह ही सालों तक अमेरिकी फौज और एजेंसियों ने बगदादी का पीछा किया था ताकि आतंक के इस आका को घेरकर ढेर किया जा सके.और अब सवाल ये है कि जिस तरह बगदादी ने इंसानियत का कत्ल किया, उसी तरह आतंक की आग सुलगाकर हाफिज और मसूद ने बेगुनाह हिन्दुस्तानियों का खून बहाया. क्या हाफिज व मसूद का भी यही अंत होगा?
बगदादी या फिर हाफिज और मसूद जैसे आतंकियों को ढूंढना या यूं कहें कि उन्हें लोकेट करना सबसे मुश्किल होता है.यही वजह है कि इस किस्म के एंटी टेरर ऑपरेशन में इंटेलिजेंस की बड़ी भूमिका होती है.
अब तक जो खबरें सामने आईं हैं उनमें से कुछ में कहा गया है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी और अमेरिकी फौज को सीरिया में बसे कुर्द गुटों की बड़ी मदद मिली थी. इन कुर्द गुटों ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ बड़ी जंग लड़ी थी. कुर्द हमेशा से इस्लामिक स्टेट के विरोधी रहे हैं और सीरिया के सीमावर्ती इलाकों में रहते हैं. इसी वजह से इन इलाकों के चप्पे चप्पे की कुर्दों को जानकारी रहती है. इस तथ्य से दो बातें सामने निकलकर आती हैं.
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पहला टारगेट के विरोधी इंटेलिजेंस जुटाने में सहयोगी साबित होते हैं और दूसरा इंटेलिजेंस देने वाले अगर स्थानीय हों तो इंटेलिजेंस बेहतर साबित होते हैं. अगर इसी थ्योरी को हाफिज या मसूद पर लगाया जाए तो सामने आता है पाकिस्तान में बलूच, पश्तून, सिंधी, मुहाजिर, गिलगिती और बालटिस्तानी जैसे कई समुदाय और इनके गुट हैं जो फौज विरोधी हैं .हाफिज और मसूद पर फौज की शह है. ऐसे में ये गुट हाफिज और मसूद की जानकारी मुहैया करा सकते हैं.
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कुर्दों की तरह ही बलूच, पश्तून, सिंधी भी सालों से पाकिस्तान के उन इलाकों में रह रहे हैं.जहां हाफिज और मसूद सक्रिय हैं, लेकिन यहां कुछ बड़े सवाल खड़े होते हैं. पहला ये कि भारत ने पाकिस्तान में जुल्म सह रहे इन लोगों को नैतिक सहयोग ही दिया. आज तक बलूचों, पश्तूनों या सिंधियों के साथ भारत के सामरिक या इंटेलिजेंस आधारित रिश्ते नहीं रहे हैं.
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हालांकि ये पहलू उतना मुश्किल नहीं जितना देखने में लगता है. साल 2016 में जब भारतीय शूरवीरों ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक कर उरी का बदला लिया था.उसके पीछे भी ह्यूमन और टेक्निकल इंटेलिजेंस थी.यानी भारत वो कुव्वत रखता है .जरूरत है तो सिर्फ मौके और सही वक्त की.
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हाफिज या मसूद के मामले में ये फैक्टर उस तरह की भूमिका नहीं निभाता. जैसा बगदादी के मामले में था. हाफिज सईद अधिकतर गुजरांवाला में रहता है.मसूद अजहर अधिकतर बहावलपुर में.यानी ये सीमावर्ती इलाकों से दूर रहते हैं.हालांकि हाफिज का बेटा तल्हा पीओके में कई बार देखा गया है.इसी तरह मसूद का भाई रऊफ असहर अफगान पाक बॉर्डर पर सक्रिय रहता है. यानी कि अगर सरहदी इलाकों में किसी स्ट्राइक का इरादा बनाया जाए.भले ही इस तरह हाफिज और मसूद नहीं.लेकिन उनके करीबियों को निशाना बनाया जा सकता है.
आतंक के खिलाफ राजनीतिक इच्छाशक्ति
दीवाली का दिन था.सामने देश के वीर जवान थे और मंच से बोल रहे थे प्रधानमंत्री मोदी.मोदी ने बिना कुछ कहे.बहुत कुछ कह दिया.मोदी ने बातों बातों में जाहिर कर दिया.कि जिस देश के पास ऐसे जवान हैं.वो जब चाहे तब आतंक को मुंहतोड़ जवाब दे सकता है.
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यही है उस राजनीतिक इच्छाशक्ति की एक तस्वीर.जो बगदादी या ओसामा जैसे आतंकी को ढेर करने के लिए जरूरी होती है.या जिसके जरिए हाफिज और मसूद जैसे आतंकियों का काम तमाम किया जा सकता है. मोदी सरकार के पिछले 6 साल इस राजनीतिक इच्छाशक्ति के सबूत हैं.
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मोदी सरकार हमेशा कहती रही कि आतंक के खिलाफ उनकी जीरो टॉलरेंस पॉलिसी बरकरार रहेगी.और जो कहा उसे करके भी दिखाया तो क्या वो दिन भी जल्द आएगा.जब हाफिज और मसूद भी इसी नीति के निशाने पर आकर भस्म हो जाएंगे.