खुफिया एजेंसी के हाथ लगा बड़ा सुबूत, जुमे की नमाज के बाद भड़की हिंसा सुनियोजित साजिश !

उत्तर प्रदेश पुलिस ने हिंसा में कथित भूमिका के लिए उग्रवादी संगठन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से जुड़े तीन लोगों को गिरफ्तार किया है. विभिन्न राज्यों में हिंसा के समन्वय में पीएफआई ने कितनी भूमिका निभाई है.

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Pradeep Singh
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जुमे की नमाज के बाद हिंसा( Photo Credit : News Nation)

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भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के कथित तौर पर पैगंबर मोहम्मद साहब के आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करने का विरोध भारत ही नहीं दुनिया भर के इस्लामिक देशों में हो रहा है. यह विरोध प्रायोजित है. सबसे पहले पाकिस्तान ने इस मुद्दे को हवा दी. देखते-देखते यह मुद्दा पहले इस्लामिक देशों में फिर बाद में भारत देशों में जोर पकड़ने लगा. नूपुर शर्मा को फोन पर जान से मारने की धमकी और अपशब्दों से नवाजा जा रहै है. जबकि भाजपा ने नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल को पार्टी से निलंबित और निष्काषित कर दिया है.

अब भारत में मुस्लिम समुदाय नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग कर रहा है. ये मांग कानून की सीमा में रहकर करना नाजायज मांग नहीं है. लेकिन जिस तरह से अपनी मांग मनवाने के लिए हिंसा का सहारा लिया जा रहा है, वह गलत है. जिस तरह से 10 जून यानि शुक्रवार को पूरे भारत में, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड में जुमे की नमाज के बाद कुछ कट्टरपंथियों द्वारा पथराव किया गया वह देश-समाज के लिए बहुत गलत है. कहा जा रहा है कि सुरक्षा बलों पर निर्देशित हिंसा और पथराव की योजना बनाई गई थी और स्थानीय स्तर पर मैसेजिंग ऐप और गुप्त बैठक करके पहले से ही इसकी योजना बनाई गयी थी. कई शहरों में जहां हिंसा भड़की, यह पाया गया है कि पत्थरों को अलग-अलग स्थानों पर पहले से ही जमा कर रखा गया था और फिर दंगाइयों को दे दिया गया था.

केंद्र सरकार की एजेंसियों ने राज्य सरकारों से कहा है कि वे इस तरह के और हिंसक विरोध प्रदर्शनों के प्रति सतर्क रहें, विशेष रूप से राज्य की राजधानियों और बड़े शहरों के उन क्षेत्रों में जहां बड़ी संख्या में इस्लाम के अनुयायी रहते  हैं, इसके अलावा  उन क्षेत्रों में सीमाओं के पास हैं और छोटे शहरों से दूरी पर हैं. हिंसा 26 मई को एक टीवी डिबेट में हिस्सा लेने के दौरान बीजेपी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता द्वारा "ईशनिंदा" टिप्पणियों के मुद्दे पर हुई थी. उक्त नेता को बाद में पार्टी से निलंबित कर दिया गया था.

अधिकारियों के अनुसार, इन हिंसक विरोध-प्रदर्शनों में कुछ धार्मिक इमारतों को भी तोड़ा गया था, जिससे आने वाले दिनों में सांप्रदायिक दंगे होने की संभावना है, कुछ ऐसा जो प्रदर्शनकारियों को पता था और फिर भी किया. शनिवार को, देश के कुछ हिस्सों से उपद्रवियों द्वारा धार्मिक मूर्तियों को अपवित्र करने की खबरें भी आईं, जहां पूर्व भाजपा प्रवक्ता द्वारा "ईशनिंदा" टिप्पणी पर "उनके" बदला के हिस्से के रूप में हिंसा भड़की थी, जो दर्शाता है कि यह सब पहले से ही सुनियोजित  कृत्य है. 

सुरक्षा प्रतिष्ठान के आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि शनिवार को भी जारी हिंसक विरोध स्वतःस्फूर्त नहीं था क्योंकि उन्हें ऐसे लिंक मिले हैं जो साबित करते हैं कि लोगों को सड़कों पर आने और दंगा शुरू करने के लिए उकसाया जा रहा था. इस तरह की पहली हिंसक घटना 3 जून को कानपुर से और फिर गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के भद्रवाह शहर से सामने आई थी, जिसकी शुरुआत हिंदू समुदाय को निशाना बनाने वाले उपद्रवियों द्वारा किए गए एक बेहद भड़काऊ भाषण के बाद की गई थी.

इसके बाद पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और झारखंड के कुछ हिस्सों में व्यापक हिंसा हुई. बंगाल में, दंगाइयों के नेतृत्व में हिंसा हावड़ा के पांच जिलों, दक्षिण 24 परगना, कोलकाता के कुछ हिस्सों, मालदा और मुर्शिदाबाद में फैल गई. शनिवार को हिंसा का तीसरा दिन था जहां कई जगहों पर पीटे गए पुलिसकर्मियों को निशाना बनाने के लिए स्थानीय रूप से बने बमों और बंदूकों का इस्तेमाल किया गया. राज्य में जहां दंगाइयों ने गुरुवार को डोमजूर में 11 घंटे के लिए एक राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया था, वहां पुलिस थानों को आग लगा दी गई, वाहन, घर और कई दुकानें जला दी गईं.

जुमे की नमाज के बाद उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, प्रयागराज, सहारनपुर, फिरोजाबाद सहित अन्य जगहों से भी हिंसा की खबरें आई हैं, जहां पथराव किया गया और पुलिस के साथ झड़प की सूचना मिली. झारखंड में इस अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा रांची से हिंसा की खबर मिली थी. दिल्ली में भी इसी तरह की हिंसा पैदा करने की कोशिश की गई, जहां शुक्रवार की नमाज के बाद जामा मस्जिद के बाहर 100 से 200 लोगों की बड़ी भीड़ जमा हो गई थी, लेकिन पुलिस की त्वरित कार्रवाई से भीड़ तितर-बितर हो गई.

खुफिया एजेंसी के एक अधिकारी ने  बताया, “उक्त टिप्पणियों को प्रसारित हुए दो सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है और सरकार और राजनीतिक दल पहले ही मामले में व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कर चुके हैं. और ऐसे में किसी के पास सड़कों पर उतरकर हिंसक रूप से विरोध करने का कोई कारण नहीं था. शुक्रवार को हमने जो हिंसक प्रतिक्रियाएं देखीं, वे छिटपुट और स्वतःस्फूर्त नहीं थीं, लोगों को इस 'ईशनिंदा' का 'बदला' लेने के लिए उकसाया जा रहा था. हम अभी भी यह निर्धारित करने की प्रक्रिया में हैं कि इन घटनाओं के पीछे किसी संगठन, भारतीय या विदेशी की भूमिका थी या नहीं."

उत्तर प्रदेश पुलिस ने हिंसा में कथित भूमिका के लिए उग्रवादी संगठन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से जुड़े तीन लोगों को गिरफ्तार किया है. विभिन्न राज्यों में हिंसा के समन्वय में पीएफआई ने कितनी भूमिका निभाई है, यदि कोई हो, तो इसकी जांच की जा रही है. अधिकारी के अनुसार, जिन राज्यों में हिंसा हुई, वहां शीर्ष पुलिस अधिकारियों की ओर से निश्चित रूप से बहु-स्तरीय विफलता थी.

उन्होंने कहा, “कुछ राज्यों में, पुलिस के पास शुक्रवार की नमाज के बाद हिंसक भीड़ के इकट्ठा होने के बारे में विशिष्ट खुफिया रिपोर्ट थी और इसके बावजूद पुलिस-प्रशासन के पास इसे रोकने की कोई योजना नहीं थी. कुछ राज्यों में कोई ठोस खुफिया जानकारी नहीं थी. इस तरह से देखा जाये तो यह दो मोर्चों पर विफलता थी. पहला- सुरक्षा के लिए काम करना जहां खुफिया जानकारी थी; और दूसरा, खुफिया जानकारी एकत्र करने में विफलता. इन मुद्दों को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए और किया जाएगा. ” 

Source : Pradeep Singh

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