चीन की कैबिनेट (स्टेट काउंसिल) ने गुरुवार को जेंगनेन (चीन के दक्षिण राज्य शिजियांग का हिस्सा या स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र ) का हिस्सा बताते हुए अरुणाचल प्रदेश के 15 जगहों का नाम बदल दिया है. इनमें से 8 रिहायशी, चार पहाड़ी क्षेत्र, दो नदियां और एक माउंटेन पास या पहाड़ी दर्रा है. चीन ने साल 2017 में भी ऐसा ही कदम उठाया था. तब उसने 6 जगहों के नाम बदले थे. इसके लिए पहले बीजिंग ने 23 अक्टूबर 2021 को लैंड बॉर्डर लॉ नाम के कानून को मंजूरी दी थी. इसके बाद से ही आशंका जताई जा रही थी कि चीन इस तरह की कोई घटिया हरकत कर सकता है.
इससे पहले अरुणाचल प्रदेश में तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के अप्रैल 2017 में हुए दौरे से नाराज होकर चीन ने कहा था कि उनकी गतिविधियां चीन से किए गए भारत के वादे के खिलाफ हैं. लगभग सात दशक से भारत के साथ चीन का विवाद लगातार जारी है. इसे सुलझाने के लिए चीन ने अब तक कोई गंभीर पहल नहीं की है. चीन बार- बार भारत को उकसाने के लिए कई तरह की हरकतों को अंजाम देता रहता है. आइए जानते हैं कि भारत और चीन के बीच विवादों की बड़ी वजहें क्या-क्या हैं.
सीमा (LAC) विवाद
चीन और भारत के बीच के कई इलाकों में घुसपैठ को लेकर विवाद होते रहते हैं. दोनों देश सीमा को अपने-अपने नजरिये से देखता है. आज तक सीमा को लेकर किसी तरह का कोई ठोस समझौता नहीं हो सका. भारत और चीन के बीच में कई इलाकों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) स्पष्ट नहीं है. यह तनाव का कारण बनती है. 3488 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर विवाद होता रहता है. दूसरी ओर चीन कभी सीमा विवाद को कूटनीतिक तरीके से हल करने के पक्ष में दिखाई नहीं देता.
अरुणाचल प्रदेश और स्टेपल वीजा
अरुणाचल प्रदेश की 1126 किलोमीटर लंबी सीमा चीन के साथ और 520 किलोमीटर लंबी सीमा के साथ मिलती है. चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताते हुए उसे तिब्बत का हिस्सा बताता है. अरुणाचल प्रदेश में एक जल विद्युत परियोजना के लिए एशिया डेवलपमेंट बैंक से लोन लेने का चीन ने जम कर विरोध किया. अरुणाचल प्रदेश को विवादित बताने के लिए चीन वहां के निवासियों को स्टेपल वीजा देता है.
अक्साई चिन पर कब्जा
ऐतिहासिक रूप से अक्साई चिन भारत को रेशम मार्ग से जोड़ने का माध्यम था. यह हजारों साल से भारत और मध्य एशिया के पूर्वी इलाकों (जिन्हें तुर्किस्तान भी कहा जाता है) के बीच संस्कृति, भाषा और व्यापार का रास्ता रहा है. साल 1962 के युद्ध में चीन ने अक्साई चीन वाले हिस्से पर कब्जा कर लिया था. उसके बाद लद्दाख इलाके में एक सड़क बना कर चीन ने विवाद का एक और मसला खड़ा किया. चीन 38000 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पहले से ही कब्जा कर बैठा है. अक्साई चिन जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है. चीन ने इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक जिले का हिस्सा बनाया हुआ है.
पीओके में गतिविधियां
चीन जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा मानने में आनाकानी करता रहा है. दूसरी ओर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा मानने में उसे कोई एतराज नहीं. वहां डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के लिए पाकिस्तान को कर्ज और मदद देता रहा है. POK का 5180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पाकिस्तान ने चीन को गिफ्ट में दे दिया है. इसलिए कुख्यात आतंकी संगठन जमात उद जावा के सरगना हाफिज सईद को आतंकवादी घोषित करने में भी चीन पीछे हटता रहा. पाक कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित-बालटिस्तान में चीनी गतिविधियां तेज होने की बात हमारे पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह ने भी की थी. उन्होंने कहा था कि इन इलाकों में तीन से चार हजार चीन के सैनिक कार्यरत हैं. इनमें पीएलए के लोग भी शामिल हैं.
तिब्बत की स्वायत्तता
भारत और चीन के बीच तिब्बत राजनीतिक और भौगोलिक तौर पर बफर का काम करता था. चीन ने साल 1950 में इसे हटा दिया. भारत तिब्बत को मान्यता दे चुका है, लेकिन तिब्बती शरणार्थियों के बहाने चीन इस मसले पर बराबर नाक भौं सिकोड़ता रहता है. 1950 के दशक में चीन ने जब तिब्बत पर कब्जा किया तो वहां कुछ क्षेत्रों में विद्रोह भी भड़के हैं. दुनिया भर में फ्री तिब्बत आंदोलन चलाया जा रहा है. अरुणाचल प्रदेश में तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के अप्रैल 2017 में हुए दौरे पर भी चीन ने नाराजगी जताई थी.
ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध
तिब्बत की यारलुंग जांग्बो या सांग्पो नदी भारत के असम में पहुंचकर ब्रह्मपुत्र नदी के नाम से जानी जाती है. ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन कई बांध बना रहा है. उसका पानी वह नहरों के जरिये उत्तरी चीन के इलाकों में ले जाना चाहता है. ऐसा हुआ तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जल की आपूर्ति बाधित हो सकती है. इस मसले पर बड़ा विवाद होने की आशंका काफी बढ़ गई है. भविष्य को ध्यान में रख भारत इस मसले को द्विपक्षीय बातचीत में बराबर उठाता रहा है. इस मामले में भी चीन का रवैया टालमटोल वाला रहा है.
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हिंद महासागर में परियोजनाएं
हिंद महासागर हमेशा से दुनिया की बड़ी ताकतों के स्ट्रैटिजिक रेडार पर रहा है. यह जलक्षेत्र तेल, खनिज, मछली जैसे संसाधनों से भरपूर है. दुनिया भर के कारोबार का बड़ा हिस्सा इसी रूट से गुजरता है. भारत में आर्थिक विकास के लिए भी यह जरूरी है कि उसकी ब्लू इकॉनमी (अर्थव्यवस्था का समुद्र से जुड़ा पहलू) में तेजी आए. भारत के तेल आयात का भी बड़ा हिस्सा हिंद महासागर के रूटों से ही गुजरता है.
दूसरी ओर चीन ने पिछले कुछ वर्षों में हिंद महासागर में अपनी गतिविधियां काफी बढ़ा दी हैं. पाकिस्तान, म्यांमार और श्रीलंका के साथ साझेदारी में परियोजनाएं शुरू कर दी हैं. वह भारत को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है. इन परियोजनाओं के पूरा होने से चीन की पहुंच भारत के चारों ओर हो जाने की बात कही जाती है. इसके जवाब में भारत ने इस समुद्री इलाके में क्वाड के सदस्य देशों के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास किया है.
साउथ चाइना सी में वर्चस्व
चीन साउथ चाइना सी इलाके में अपना प्रभुत्व कायम करने की कोशिशें कर रहा है. अपनी ऊर्जा की जरूरतों को ध्यान में रखने की आड़ में चीन यहां अपने एजेंडे को अंजाम देता है. इस इलाक़े को चीन अपना कहता है और एक बेहद महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत वो यहां कृत्रिम द्वीप बना रहा है. इस समुद्री इलाके में उसे वियतनाम, जापान और फिलीपींस से चुनौती मिल रही है. हाल में उसने वियतनाम की दो तेल ब्लॉक परियोजनाओं में शामिल भारतीय कंपनियों को चेतावनी दी थी कि वह साउथ चाइना सी से दूर रहें.
यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी (UNCLOS) के मुताबिक किसी भी देश की जमीन से 12 नॉटिकल मील (22.2 किलोमीटर) तक उस देश की समुद्री सीमा मानी जाती है. इस दूरी के बाद किसी भी देश की समुद्री सीमा लागू नहीं होती. चीन 100 देशों के दस्तखत वाले UNCLOS की इस संधि का भी उल्लंघन करता है.
HIGHLIGHTS
- चीन 100 देशों के दस्तखत वाले UNCLOS की इस संधि का भी उल्लंघन करता है
- 1950 के दशक में चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया तो कुछ क्षेत्रों में विद्रोह भी भड़के
- सात दशक से भारत के साथ चीन का विवाद जारी, कोई ठोस समझौता नहीं हो सका