कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के परचम तले अब तक चीनी नेतृत्व ने सिर्फ धोखा देने की कला में ही महारत हासिल की है. थियानमेन चौक पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) को सलामी देती पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की बख्तरबंद गाड़ियों के काफिले, मिसाइल ले जाते भारी-भरकम वाहनों की गर्जना और हेलीकॉप्टर्स की गड़गड़ाहट यही संदेश देती है कि चीनी सेना अपराजय है. ऐसा लगता है कि पीएलए किसी भी जंग में दुश्मनों को नेस्तनाबूद करने में सक्षम है. हालांकि इस मामले पर विशेषज्ञों का कुछ और ही कहना है. 'चाइना कू' पुस्तक के लेखक रोजर गर्साइड कहते हैं कि बाहरी दुनिया के सामने स्थिरता के दावों के विपरीत, चीन बाहरी रूप से मजबूत है, लेकिन अंदर से कमजोर है. कुछ अन्य विशेषज्ञ भी मानते हैं कि बीजिंग का सैन्य शक्ति का यह प्रदर्शन असल में लोकतांत्रिक तरीके से सत्तारूढ़ नहीं होने वाली चीनी सरकारों को वैधता प्रदान करने के लिए होता है. सच्चाई यह है कि पीएलए का यह शक्ति प्रदर्शन रेगिस्तान में नजर आने वाली मरीचिका की ही तरह है. वह दिखती कुछ है और असल में कुछ और ही है. अस्त्र-शस्त्रों के प्रदर्शन पर अत्यधिक जोर देने वाली पीएलए वास्तव में अंदर से खोखली हो चुकी है. 35 साल तक लागू रही एक बच्चा नीति और भ्रष्टाचार ने दुनिया की सबसे बड़ी सेना को खोखला कर दिया है.
जिनपिंग अपने आंतरिक दुश्मनों से कहीं ज्यादा भयभीत
बीजिंग में ब्रिटिश दूतावास में दो बार सेवा देने वाले गर्साइड मानते हैं कि चीन की आंतरिक स्थितियां मौजूदा शासन को अस्थिर कर सकती हैं. गर्साइड का यह बयान ऐसे समय आया है जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस साल नेशनल पार्टी कांग्रेस में सीसीपी अध्यक्ष के रूप में लगातार तीसरी बार चुने जाने का प्रयास कर रहे हैं. गर्साइड ने बेबाक बयान में कहा है कि राष्ट्रपति शी की मौजूदा सरकार बजट का ज्यादा हिस्सा सेना पर खर्च करने के बजाय आंतरिक सुरक्षा पर कहीं अधिक खर्च कर रही है. इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं, 'वह अपने आंतरिक दुश्मनों से डरता है'. लेखक का मानना है कि कम्युनिस्ट नेताओं का एक समूह चीनी नेता शी जिनपिंग के खिलाफ आंतरिक तख्तापलट कर सकता है और चीन को एक लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में बदल सकता है.
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जिनपिंग को सता रहा है तख्तापलट का डर
पूर्व राजनयिक गर्साइड ने द एपो टाइम्स को दिए साक्षात्कार में कहा है कि सीसीपी के उच्च-स्तरीय नेतृत्व का मानना है कि जिनपिंग चीन को बेहद जोखिम भरी और खतरनाक दिशा में ले जा रहे हैं. प्रीमियर ली केकियांग सहित सीसीपी नेताओं का मानना है कि शी सीसीपी के भविष्य के साथ-साथ अपनी संपत्ति और शक्ति को भी गहरे खतरे में डाल रहे हैं. गर्साइड ने दावा किया है कि सीसीपी नेता शी जिनपिंग के खिलाफ साजिश रच रहे हैं. उनके मुताबिक सीसीपी की कमजोरी के कुछ संकेत तख्तापलट को सक्षम बना सकते हैं. जिनपिंग के लिए राजनीतिक मोर्चे के अलावा असुरक्षा का एक और आंतरिक कारण चीन के निजी क्षेत्र का शक्तिशाली और स्वायत्त हो जाना भी है. अपनी बात को तार्किक ढंग से समझाते हुए गर्साइड कहते हैं कि अलीबाबा ने न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज से 24 बिलियन डॉलर जुटाए हैं. इसी तर्ज पर 248 अन्य कंपनियां भी कम्युनिस्ट पार्टी के नियंत्रण से परे हैं. इन सभी ने जिनपिंग के पूंजी विनिमय नियमों और राजनीतिक नियंत्रण से परे होकर अरबों डॉलर जुटाए हैं. ऐसे में ये कंपनियां इस पैसे का इस्तेमाल चीन में राजनेताओं और जिनपिंग के विरोधियों को खरीदने के लिए कर सकती हैं.
वियतनाम ने शर्मनाक शिकस्त दी थी पीएलए को
चीनी की अपारेजय सी लगने वाली सेना के लिए एक काला अध्याय वियतनाम युद्ध भी है. अमेरिकी सेना के शेर कहे जाने वाले जनरल डगलस मैक्कार्थर की सेना को अर्दब में ले लेने वाली पीएलए को 1979 में वियतनाम ने धूल चटाई थी. 60 और 70 के दशक के रक्त-रंजित युद्ध में वियतनाम का दावा था कि चीन के आक्रमण पर उन्होंने पीएलए के 62,500 जवान मारे और 550 सैन्य वाहन गाड़ियां तबाह कर डाली. इसमें आर्टिलरी से जुड़े 115 सैन्य वाहन भी शामिल थे. इस शर्मानक हार के के बावजूद चीनी सेना ने अपने ढांचागत सुधार की तरफ कतई कोई ध्यान नहीं दिया. माओ के बाद गद्दी संभालने वाले देंग शियाओ पिंग के कार्यकाल में भ्रष्टाचार किसी दीमक की तरह पीएलए को खोखला करता गया. रियल एस्टेट से लेकर बैंकिंग और टेक्नोलॉजी तक, पीएलए सुख-सुविधा के दलदल में आकंठ धंसती गई. हुआवी पीएलए की चमकती-दमकती दुनिया का शानदार उदाहरण है. रग-रग में भ्रष्टाचार बसने की वजह से ही पीएलए की पाकिस्तान सेना के साथ अच्छी पटती है, क्योंकि दोनों सेनाओं का डीएनए एक सरीखा है. यानी सुख-सुविधा, नैतिक पतन और भ्रष्टाचार की साझा नींव पर ही दोनों के संबंध टिके हुए हैं.
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जिनपिंग ने सत्ता संभालते ही 100 से ज्यादा जनरल किए थे बाहर
2012 में शी जिनपिंग के सत्ता संभालने तक पीएलए की दशा-दिशा बेहद खराब हो चुकी थी. शी जिनपिंग ने जंग लग चुकी चीनी सेना को चमकाने-दमकाने के लिए तमाम प्रयास किए, लेकिन उन्हें पूरी तरह से सफलता नहीं मिली. अपने इन प्रयासों के तहत शी जिनपिंग को केंद्रीय सैन्य आयोग के दो वाइस चेयरमैन को बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा. इनमें से एक जनरल गुआओ बॉक्सिओंग पर तो रिश्वतखोरी के आरोप थे. यह इस बात का परिचायक था कि चीनी सेना को दीमक की तरह चाटने वाले भ्रष्टाचार की जंग शीर्ष तक थी. चीनी समाचार एजेंसी ने भी स्वीकार किया था कि जांच में सामने आया था कि जनरल बॉक्सिओंग ने सैन्य अधिकारियों को प्रमोट करने के एवज में घूस ली थी. बॉक्सओंग के अलावा शू काईहो को भी शी जिनपंग ने भ्रष्टाचार के आरोपों में निकाला था. सजा काटने के दौरान ब्लैडर के कैंसर के कारण उनकी मौत हो गई. उस वक्त शी जिनपिंग ने पीएलए की पूरी चेन ऑफ कमांड को बदलते हुए 100 से ज्यादा जनरलों को निकाला था. जाहिर सी बात है कि इस कदम के बाद शी जिनपिंग के दुश्मनों की संख्या भी तेजी से बढ़ी थी. ऐसे में सत्ता में बने रहने के लिए जिनपिंग को राष्ट्रपति पद को 'अजेय' बनाने के लिए ढेर सारे जतन करने पड़े. इसमें सीपीसी के नियमों में संशोधन भी शामिल हैं.
भारतीय सेना डोकलाम में चखा चुकी है हार का स्वाद
भ्रष्टाचार और आक्रामकता में आगे रहने वाली पीएलए शुरू से सीधी लड़ाई से बचती है. 2017 में डोकलाम में यही हुआ था, जब भारत, चीन और भूटान के ट्राई जंक्शन पर भारतीय सेना ने पीएलए को दबाना शुरू कर दिया था. अब गलवान में फिर चीन की मिट्टी पलीद हुई है. 16 बिहार रेजिमेंट के कर्नल संतोष बाबू और उनके जवानों ने पीएलए को पैट्रोलिंग पॉइंट 14 पर कब्जा करने से रोक दिया. अगर चीन का कब्जा यहां पर हो जाता तो वह दौलत बेग ओल्डी बेस तक जाने वाली सप्लाई लाइन को कभी भी ध्वस्त कर सकता था. भारतीय जवानों ने चीन के इस मंसूबे को तो ध्वस्त किया ही, साथ ही अपने से कहीं ज्यादा चीनी सैनिकों को मारा भी. यह चीनी सेना की आमने-सामने की लड़ाई में कमजोर कड़ी को ही दिखाता है. गौरतलब है कि विगत दिनों एक बार फिर दावा किया गया है कि चीन हिंसक संघर्ष में जितने सैनिकों को मारे जाने की बात कबूलता है, उससे कहीं ज्यादा पीएलए सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
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चीन पर हावी होने को तैयार भारत
भारत औऱ चीन की सेना का रियल्टी चेक करने पर पीएलए के आंतरिक मतभेद साफ नुमायां हो जाते हैं. इसके साथ ही पता चलता है कि जरूरत पड़ने पर भारतीय वायुसेना भी चीन को आसमान में घनचक्कर बनाने की पूरी तैयारी में है. चीनी वायुसेना के मुकाबले भारतीय वायुसेना की तैयारियां और संसाधन ज्यादा पुख्ता हैं. जगुआर आईएस की दो स्क्वाड्रन और मिराज 2000एच फाइटर्स के एक स्क्वाड्रन समेत कुल 51 लड़ाकू विमान न्यूक्लियर मिशन के लिए तैयार हैं. कश्मीर और लद्दाख को निशाना पर रखने वाली चीन की अधिकतर एयरफील्ड्स बिना शेल्टर के खुले में हैं, जिन्हें कभी भी आसानी से निशाना बनाकर मटियामेट किया जा सकता है. चीन का मुकाबला करने वाली भारतीय वायुसेना की तीन कमानों के पास 270 लड़ाकू जेट और 68 ग्राउंड अटैक विमान हैं. इसके मुकाबले चीन की वेस्टर्न थियेटर कमांड केवल 158 लड़ाकू विमान और कुछ ड्रोन्स ही तैनात कर सकती है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के मुताबिक, चीन के जे-10 फाइटर जेट्स की तुलना भारत के मिराज-2000 से हो सकती है और सुखोई का एसयू-30एमके. यहां पर चीन सारे विमानों से आधुनिक हैं. कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि यह 1962 नहीं है. राफेल और एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम मिल जाने के बाद भारत ने चीन पर सामरिक के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक बढ़त भी बना ली है. ऐसे में अगर चीन ने जंग की ओर कदम बढ़ाए, तो पीएलए के लिए बड़ी मुश्किल होगी जिसका अंदाजा उसे भी है.
HIGHLIGHTS
- बीजिंग में राजदूत रहे रोजर गर्साइड का एक इंटरव्यू में बड़ा खुलासा
- शी जिनपिंग का तख्तापलट कर सकती हैं चीन की आंतरिक शक्तियां
- पीएलए भी सिर्फ दिखती है मजबूत, करप्शन ने कर दिया है खोखला