भारत में अंग्रेजों के व्यापार की आड़ में घुसकर गुलामी की साजिश की शुरुआत और भारतीय महापुरुषों के पूर्ण स्वराज के संकल्प, पहली बार तिरंगा फहराने और गणतंत्र दिवस के दिन चुने जाने से जुड़ी कहानियों का एक सिरा आज के दिन यानी 31 दिसंबर से जुड़ा हुआ है. इस तारीख का भारत के इतिहास में गुलामी के कलंक की नींव, पूरी आजादी का प्रस्ताव और उसके बाद गणतंत्र का गौरव इन तीनों ही बड़े पड़ावों के साथ जुड़ाव है. आइए, हम इन तीनों ही मुकामों के बारे में जानते हैं. शुरुआत व्यापारी की शक्ल में देश में घुसे अंग्रेजों की कहानी से करते हैं.
इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने 420 साल पहले 31 दिसंबर, 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के रजिस्ट्रेशन के लिए शाही फरमान जारी किया था. उन्होंने ऑर्डर दिया था कि इस कंपनी को पंजीकृत किया जाए. इसके बाद यह कंपनी पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया और भारत के साथ व्यापार बढ़ाए. कुछ समय के बाद कंपनी ने अपने व्यापार का दायरा बढ़ाने के बहाने भारत में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी हितों की पूर्ति का काम किया. कंपनी ने इस गंदी साजिश के जरिए भारत की किस्मत में गुलामी की कालिख पोत दी.
मसालों के व्यापार की आड़ में अंग्रेजों की साजिश
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना खास तौर पर दुनिया भर में मशहूर मसालों के व्यापार के लिए की गई थी. उन दिनों मसालों के व्यापार को बहुत फायदे का सौदा माना जाता था. मगर इस पर स्पेन और पुर्तगाल का आधिपत्य हुआ करता था. अंग्रेज इसमें पिछड़े हुए थे. अंग्रेज व्यापारियों को हिंद महासागर में डच और पुर्तगाल के व्यापारियों से टक्कर मिलती थी. इसलिए भारत में मसालों के व्यापार के साथ ही अंग्रेज अपने डच और पुर्तगाल के प्रतिद्वंदियों को पीछा छोड़ना चाहते थे.
मुगल शासन के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी का करार
साल 1612 में गुजरात के सूरत में हुई स्वाली की जंग में ईस्ट इंडिया कंपनी को बड़ी जीत हासिल हुई. इसके बाद कंपनी ने फैसला किया कि अब समुद्र तट से अंदर भी भारत के हिस्सों पर अपना कब्जा किया जा सकता है. मुगल शासन के साथ इसे लेकर करार हुआ. इसके बाद कंपनी ने इंग्लैंड की महारानी से एक राजनयिक मिशन शुरू करने की अपील की. 1612 में जेम्स प्रथम ने सर थॉमस रॉय को मुगल बादशाह जहांगीर से मिलकर व्यापार समझौता करने के लिए भेजा. इसके तहत अंग्रेजों को सूरत और आसपास के क्षेत्र में घर और फैक्टरी लगाने की इजाजत मिल गई.
पूर्ण स्वराज, तिरंगा और गणतंत्र का संकल्प
साल 1929 में 31 दिसंबर को ही लाहौर में रावी नदी के तट पर आधी रात को महात्मा गांधी ने कांग्रेस जनों के साथ पूर्ण स्वराज का संकल्प लिया था. कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जो प्रस्ताव पारित किया गया उनमें स्वतंत्रता और नागरिक अवज्ञा को ही प्रमुखता दी गई. मोतीलाल नेहरू ने इन प्रस्तावों का समर्थन किया. अपने अध्यक्षीय भाषण में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि पूर्ण स्वराज की लड़ाई महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़ी जाएगी. पंडित नेहरू ने कहा था कि हमारा लक्ष्य सिर्फ स्वाधीनता प्राप्त करना है. हमारे लिए स्वाधीनता है, पूर्ण स्वराज्य.
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इसी दिन लाहौर अधिवेशन में पहली बार भारतीय स्वाधीनता का तिरंगा झंडा फहराया गया था. इसी अधिवेशन में यह फैसला भी लिया गया था कि 26 जनवरी, 1930 को पूरे देश में प्रथम स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा. तभी से 26 जनवरी हमारे लिए एक महत्वपूर्ण दिन हो गया और आजादी के बाद साल 1950 में इसी दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में चुना गया था.
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अब कंपनी के मालिक बने भारतीय मूल के कारोबारी
करीब दो सौ सालों तक भारत में कहर ढाने की नींव रखने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी हालांकि खत्म हो गई थी. बाद में नये सिरे से बनी इस कंपनी की कमान अब एक भारतीय मूल के उद्योगपति संजीव मेहता के पास है. अब यह कंपनी सिर्फ कारोबार से वास्ता रखता है. फिलहाल किसी साम्राज्यवादी उपनिवेश का प्रतीक नहीं रह गया है.
HIGHLIGHTS
- 31 दिसंबर, 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी के रजिस्ट्रेशन के लिए शाही फरमान
- कंपनी ने धोखे से भारत में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी हितों की पूर्ति का काम किया
- साल 1929 में 31 दिसंबर को लाहौर में रावी के तट पर पूर्ण स्वराज का संकल्प