गणतंत्र दिवस (Republic Day) पर मंगलवार को दिल्ली... वॉशिंगटन के कैपिटल हिल बिल्डिंग सरीखी त्रासदी की साक्षी बनी. शांतिपूर्ण तरीके से तय रूट पर निर्धारित संख्या में तिरंगे के साथ ट्रैक्टर रैली निकालने पर अड़े किसान नेता अराजक हुए ट्रैक्टर मोर्चा के रूप में सेल्फ गोल कर बैठे. सबसे पहले तो यह राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव और काकाजी सरीखे किसान नेताओं के नेतृत्व पर सवाल खड़ा करता है. दूसरे इससे यह साबित होता है कि इन किसान नेताओं का प्रभाव दिल्ली की अलग-अलग सीमा पर बीते दो माह से अधिक समय से डटे किसानों पर बराबर से नहीं है. तीसरा एक बड़ा कारण यह है कि केंद्र सरकार तो पहले ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कह चुकी है कि किसान आंदोलन (Farmers Agitation) में राष्ट्रविरोधी ताकतों के मिल जाने की खुफिया सूचना है. हालांकि इस पर किसान नेताओं ने यह कहा था कि उनकी भी नजर है और वह ऐसी ताकतों पर गहरी निगाह रखे हैं. यह अलग बात है कि तय रूट से अधिक संख्या में हथियारबंद होकर निकली ट्रैक्टर रैली ने लाल किले पर तिरंगे की जगह केसरी झंडा फहरा उस सहानुभूति की लहर को गंवा दिया है, जो आम मध्यम वर्ग के रूप में उनके पक्ष में आ बनी थी.
हिंसा से किसान आंदोलन पर धब्बा
मंगलवार को तय समय से पहले सुबह पौने नौ बजे के आसपास जब किसान ट्रैक्टर पर सवार हो बैरीकेड्स ढहा कर दिल्ली की ओर बढ़े तभी तय हो गया था कि आज दिल्ली बंधक बनने जा रही है. सरकार के मुट्ठी भर किसानों के आंदोलन करने की बात को गलत साबित करने के लिए लाखों की संख्या में किसानों ने दिल्ली में घुसकर लाल किले समेत दिल्ली की सड़कों पर जिस तरह का तांडव किया, वह 72वें गणतंत्र को ही शर्मसार करता है. गौरतलब है कि दस-दस की संख्या में एक-एक ट्रैक्टर पर चढ़े किसानों से हर वह शख्स डर गया, जो उनके आए रास्ते के इर्द-गिर्द रहता है. फिर आजाद भारत की शान तिरंगे के साथ गुस्ताखी को आसानी से नहीं भूलेगा. ना ही वह भूलेगा कि किसानों ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए दिल्ली पुलिस के साथ वादाखिलाफी की. महज इसलिए ताकि सरकार को किसानों की ताकत का अहसास कराया जा सके. बची-खुची कसर किसान नेताओं के हिंसा के घंटों भर बाद में सामने आने और अराजकता से पूरी तरह पल्ला झाड़ लेने ने पूरी कर दी.
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दिल्ली पुलिस से वादाखिलाफी
गौरतलब है कि मोटे-मोटे तौर पर किसानों ने अपनी ट्रैक्टर रैली के लिए दिल्ली पुलिस के साथ किए गए कम से कम पांच वादों को तो तोड़ा ही है. किसान आंदोलन से जुड़ा हर किसान नेता और किसान इस वादाखिलाफी से अपना पल्ला झाड़ नहीं सकता है. खासकर इस आलोक में तो ब्लिकुल भी नहीं कि उसने गणतंत्र दिवस पर गणतंत्र पर अपनी श्रद्धा जाहिर करने के लिए हाथ और ट्रैक्टर पर तिरंगा लगाकर परेड निकालने का 'शपथ पत्र' दिया था. गौरतलब है कि हिंसा के घंटों बाद सामने आए राकेश टिकैत ने कहा कि उन्हें मालूम है कि हिंसा में किसका हाथ है! उन्होंने इसके लिए आंदोलन को बदनाम करने का दांव चलते हुए राजनीतिक पार्टी की हिंसा में संलिप्तता का आरोप मढ़ा. योगेंद्र यादव ने भी पहले पहल तो हिंसा की जानकारी होने से इंकार कर दिया. बाद में कहा कि किसान ऐसा नहीं करें और वर्दी में खड़े जवानों को वर्दी वाला किसान ही समझें. यह अलग बात है कि इसके पहले तक ट्रैक्टर सवार अराजकतत्वों ने ट्रैक्टर जवानों पर चढ़ाना चाहा, तो निहंगों ने तलवारें लहरा सिर काटने का इशारा किया.
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तय रूट और संख्या की खिलाफत
सबसे पहली वादाखिलाफी की बात करें तो किसानों ने तय रूट कि उल्लंघन किया. सोमवार रात तक दिल्ली पुलिस ने उन्हें तीन रूट दिए थे. साथ ही यह भी तय हुआ था कि राजपथ की औपचारिक परेड के बाद ही किसान दोपहर 12 बजे से अपना ट्रैक्टर मार्च शुरू करेंगे औऱ तय रूट से होते हुए वापस अपने-अपने धरनास्थल पर लौट आएंगे. हुआ इसके उलटा. किसानों ने तय समय से लगभग साढ़े तीन घंटे पहले बैरीकेड्स तोड़ दिल्ली की ओर कूच कर दिया. दूसरा वादा यह तोड़ा कि एक ट्रैक्टर पर हद से हद तीन लोगों के रहने की बात कही गई थी. यह अलग बात है कि एक-एक ट्रैक्टर और उससे जुड़ी ट्रॉलियों पर दसियों किसान मौजूद थे. किसानों ने कहा था कि 5 हजार ट्रैक्टर परेड में शामिल होंगे. हुआ क्या? कम से कम दो लाख ट्रैक्टर अपने साथ कार, बाइक और साइकिलों से परेड की शक्ल में निकल पड़े.
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भड़काऊ बैनर और फोटो
किसान नेताओं से एक सहमति यह भी बनी थी कि ट्रैक्टर पर किसी तरह का भड़काऊ बैनर और फोटो नहीं लगी होगी. देखने में इसके ठीक उलट आया. कई ट्रैक्टरों पर खालिस्तान के प्रणेता भिंडरावाला के पोस्टर दिखाई पड़े, तो बंदूक औऱ गन के फोटो भी ट्रैक्टर पर चस्पा दिखे. इस बात की आशंका केंद्र सरकार पहले ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जता चुकी थी कि किसान आंदोलन में राष्ट्रविरोधी ताकतों की घुसपैठ हो चुकी है. भिंडरावाला की फोटो और खालिस्तान के झंडे ने अब सहानभूति की वह लहर खत्म कर दी है, जो किसानों के साथ थी. यहां भी किसान नेता मात खा गए. वह समझ ही नहीं सके कि उनके बीच ऐसे तत्वों की घुसपैठ हो चुकी है, जो किसान आंदोलन की आड़ में अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं. अचंभित करने वाली बात तो यह है कि खालिस्तान के समर्थक संगठन सिख फॉर जस्टिस संगठन के गुरपतवंत सिंह पन्नु का वीडियो भी किसान नेताओं की आंखें नहीं खोल सका. इन वीडियो में पन्नु साफ-साफ पंजाब के किसानों को गणतंत्र के खिलाफ कदम उठाने को उखसा रहा है.
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नियमों की अवहेलना
दिल्ली पुलिस के साथ एक समझ यह भी बनी थी कि ट्रैक्टर रैली में शामिल किसानों के पास किसी किस्म का हथियार नहीं होगा. देखने में आया कि सैकड़ों किसानों के हाथों में डंडों के अलावा लोहे की रॉड तो थी हीं, कुछ हाथों में देशी कट्टे और बंदूकें भी थीं. यही नहीं, सिख धर्म की पवित्रता के प्रतीक निहंग हाथों में नंगी तलवारें लिए न सिर्फ बैरीकेड्स हटाते देखे गए, बल्कि कई जगह पुलिस वालों को धमकाते या कहीं-कहीं पीटते भी दिखाई दिए. दिल्ली पुलिस ने साफ-साफ कहा था कि ट्रैक्टर परेड के दौरान ट्रैक्टर से कोई स्टंट नहीं दिखाया जाएगा. इसकी भी धज्जियां उड़ाई गईं. स्टंट के फेर में आईटीओ के पास एक युवक की मौत हो गई तो उसके पहले सीमा पर स्टंट दिखाने में पलटे ट्रैक्टर की चपेट में आकर घायल हो गए.
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जय जवान-जय किसान का माखौल
किसान अपने आंदोलन की शुरुआत से जय जवान जय किसान का उद्घोष करते आ रहे हैं. यह अलग बात है कि गणतंत्र दिवस पर उन्होंने पुलिस और सुरक्षा के जवानों के साथ न सिर्फ धक्का-मुक्की की, बल्कि कई जगह पिटाई भी की. पथराव में लगभग एक दर्जन पुलिस वालों को चोट आई है. यही नहीं, इन अराजकतत्वों ने कई जगह निहत्थी महिला पुलिस कर्मियों को भी अपना निशाना बनाया. हालांकि इक्का-दुक्का स्थानों पर गुंडई पर उतारू अराजकतत्वों के हाथों से कुछ किसानों ने ही वर्दी को बचाया. यह अलग बात है कि बैरिकेड्स को ढहाने समेत वर्दी पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश और मारपीट ने जय जवान जय किसान नारे को खोखला साबित कर दिया, जिसका आंदोलनरत किसान दम भर रहे थे. इस दौरान कई जगह सार्वजनिक संपत्ति को भी नुककान पहुंचाया गया.
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किसान नेताओं ने पल्ला झाड़ा
मंगलवार को सबसे ज्यादा नाउम्मीद किसान नेताओं ने किया. चाहे वह राकेश टिकैत हों या योगेंद्र यादव या फिर कक्काजी या कोई और. सबसे पहले तो ये किसान आंदोलन के अगुवा बने नेता हिंसक घटनाओं के घंटों बाद सामने आए. उसके बाद न सिर्फ सरकार पर आरोप मढ़ा, बल्कि यह कहने से भी नहीं चूके कि अब तो दिल्ली में ही आंदोलन चलेगा. राकेश टिकैत ने साफ-साफ कहा कि आंदोलन को बदनाम करने के लिए कुछ राजनीतिक दलों का कारनामा है यह हिंसा, योगेंद्र यादव ने पहले पहल तो यही कहा कि उन्हें हिंसा की जानकारी नहीं है. बाद में अपील भी की, जो नाकाफी थी. उस वक्त ट्रैक्टर सवार कुछ अराजकतत्व लाल किले पर केसरी झंडा फहरा चुके थे और इस दौरान रास्ते में आने वाली डीटीसी बसों समेत अन्य सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान पहुंचे चुके थे. जाहिर है हिंसा का बदनुमा दाग दामन पर आने और दिल्ली को बंधक बनाने के बाद आंदोलनरत किसान एक ऐसा सेल्फ गोल कर बैठे हैं, जिससे न सिर्फ उनका आंदोलन कमजोर हो गया है, बल्कि कहीं न कहीं केंद्र सरकार के साथ बातचीत में उनका पलड़ा भी हल्का हो गया है.