43 लोगों का दम घोंटने वाला धुआं क्या आग की ही देन था या उस सिस्टम का, जहां लापरवाही सामने आने के बाद बड़े से बड़े हादसे पर राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम शुरू हो जाता है. कुछ ऐसा ही रविवार को अनाज मंडी इलाके में लगी भयंकर आग के बाद हुआ, जब केजरीवाल सरकार और बीजेपी ने इसके लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराने में देर नहीं लगाई. बात चाहे रिहायशी इलाके में चल रही फैक्ट्री की हो या फैक्ट्री से जुड़ी तमाम तरह की एनओसी की, हर हादसे के बाद यहीं खामियां पाई जाती हैं. साथ ही एक-दूसरे पर कठघरे में खड़ा किया जाता है. अगर आंकड़ों की भाषा में ही बात करें तो दिल्ली में महज 30 हजार इमारतों के पास ही फायर विभाग की एनओसी है.
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खामियां ही खामियां
दमकल गाड़ियों के साथ मौके पर पहुंचे फायर ब्रिगेड अधिकारियों की मानें तो जिस इलाके में आग लगी, वहां बेहद संकरी गलियां हैं. इससे भी राहत कार्य को तेजी से अंजाम नहीं दिया जा सका और धुएं का गुबार फैलता गया, जिससे लोग बेहोश होने लगे. यहां साथ ही आग रोधी उपायों की भी कमी देखने में आई. आसपास पानी का साधन भी नहीं होने से दमकल की गाड़ियों को दूर-दूर से पानी लाना पड़ा. जिस इमारत में आग लगी, उसमें फैक्ट्री के साथ-साथ लोगों की रिहाइश भी थी. साथ ही इमारत में बेकरी गोदाम चल रहा था और लोग वहीं सोते भी थे. चूंकि फैक्ट्रियां आपस में जुड़ी हुई हैं, इसलिए आग जल्दी-जल्दी फैलती गई.
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सांप गुजर गया लकीर पीटते रहे
सांप गुजरने के बाद लकीर पीटने की तर्ज पर इमारत के मालिक के भाई को हिरासत में ले लिया गया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मौके का मुआयना कर अग्निकांड पर दुःख प्रकट किया और हादसे पर सात दिनों में रिपोर्ट मांगी है. साथ ही लगे हाथों मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा कर दी. बीजेपी ने इमारत में व्याप्त सुरक्षा खामियों और एनओसी के बगैर फैक्ट्री चलने के लिए केजरीवाल सरकार को कठघरे में खड़ा करने की औपचारिकता निभा ली है. हालांकि यह सवाल कोई नहीं दे रहा है कि इस तरह के हादसों के बावजूद दिल्ली में अभी तक सभी इमारतों की सुरक्षा जांच कर एनओसी समेत अन्य सुरक्षा इंतजाम चुस्त-दुरुस्त बनाने के उपाय क्यों नहीं किए गए.
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सिर्फ 30 हजार बिल्डिंग को एनओसी
दिल्ली में अनुमानित 65 लाख बिल्डिंग, यूनिट या किसी भी तरह स्ट्रक्चर हैं. इसके बावजूद 1983 से लेकर अभी तक करीब 30 हजार बिल्डिंग या स्ट्रक्चर को ही फायर की एनओसी दी गई है. चौंकाने वाली बात यह है कि दिल्ली की कितनी इमारतें एनओसी लेने वाली बिल्डिंग या स्ट्रक्चर के दायरे में आती हैं और उन्हें एनओसी लेनी चाहिए, इसका आंकड़ा फायर डिपार्टमेंट के पास उपलब्ध नहीं है. अधिकारियों के मुताबिक अभी तक कितनी हाईराइज बिल्डिंग या फैक्ट्रियां दिल्ली में हैं और कितनों को फायर डिपार्टमेंट ने अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया है इसका डाटा उपलब्ध नहीं है. फायर डिपार्टमेंट की ओर से बताया गया कि विभाग सिर्फ उन्हीं बिल्डिंगों को एनओसी जारी करता है, जो बिल्डिंग सेंक्शनिंग अथॉरिटी या दिल्ली नगर निगम (तीनों) की ओर से उनके पास एनओसी के लिए भेजी जाती हैं.
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इसलिए जरूरी है एनओसी
किसी भी इमारत या बिल्डिंग के लिए फायर डिपार्टमेंट से एनओसी लेना बेहद जरूरी है. एनओसी का तात्पर्य है कि इस बिल्डिंग में आग लगने की स्थिति में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम मौजूद हैं. एनओसी उन्हीं बिल्डिंग, फैक्ट्री, मर्केंडाइल बिल्डिंग, रेस्टोरेंट, गेस्ट हाउस, स्कूल और अस्पतालों को लेनी होती है जो दिल्ली फायर सर्विस एक्ट 2007 के तहत आग से सुरक्षा के इंतजाम करने और विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने के दायरे में आते हैं.
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ये इमारतें आती हैं दायरे में
दिल्ली फायर सर्विस एक्ट 2007 के नियम 27 के तहत एनओसी लेने वालों में ये इमारतें शामिल हैं. 9 मीटर से ऊपर सभी स्कूल और मर्केंडाइल बिल्डिंग. 15 मीटर से ऊंची सभी रेजिडेंशियल इमारतें और ऑफिस. 250 स्कवायर मीटर से ज्यादा में फैले उद्योग या फैक्ट्री. यह अलग बात है कि इन पैमानों पर कभी भी इमारतों की जांच करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया. नतीजा सबसे सामने हैं. अब फिर से पूरी कवायद शुरू करने की नौटंकी होगी औऱ चंद दिनों बाद शिथिल पड़ जाएगी.
HIGHLIGHTS
- दिल्ली में अनुमानित 65 लाख बिल्डिंग, एनओसी सिर्फ 30 हजार के पास.
- बड़े से बड़े हादसे पर राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम शुरू हो जाता है.
- केजरीवाल सरकार और बीजेपी ने एक-दूसरे को दोषी ठहराने में देर नहीं लगाई.
Source : News Nation Bureau