Air Pollution: दिल्ली में दमघोंटू वायु प्रदूषण के लिए हरियाणा और पंजाब के किसानों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. वहां के किसान कई बार आगाह किए जाने के बावजूद पराली जलाना नहीं बंद कर रहे हैं. हालांकि लोगों के मन में यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या दिल्ली के प्रदूषण के लिए किसान ही जिम्मेदार हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब और हरियाणा के किसान पिछले कुछ वर्षों से गेहूं की बुआई से पहले खेत में पराली को जलाते आ रहे हैं. हालांकि पहले उसका धुआं सिर्फ हरियाणा और पंजाब तक ही सीमित रहता था.
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दरअसल, पहले किसान पराली को सितंबर अंत या अक्टूबर के शुरू में पराली को जलाया करते थे, लेकिन अब अक्टूबर के आखिर में जलाना शुरू कर दिया है. रिपोर्ट का कहना है कि पराली जलाने में हुई देरी दिल्ली में प्रदूषण का एक अहम कारण बनकर सामने आ रहा है. पराली जलाने में देरी की क्या अहम वजह थी और उसके पीछे का कारण क्या था. आइये इस रिपोर्ट में जानने की कोशिश करते हैं.
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धान की बुआई में देरी बनी बड़ी वजह
जानकारों के मुताबिक मॉनसून के दौरान पश्चिम की ओर से हवाएं बहती हैं, लेकिन अक्टूबर में हवाओं का रुख बदल जाता है. अक्टूबर के दौरान हवाओं का रुख उत्तर से दिल्ली की ओर बहने लग जाती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पंजाब सरकार (Punjab Government) के दबाव की वजह से किसानों को इस चक्र को आगे बढ़ाना पड़ा है. बता दें कि 2009 में भूजल को बचाने के लिए पंजाब सरकार ने एक एक्ट पास किया था. उस एक्ट के तहत किसान धान की फसल को अप्रैल के दौरान बुआई नहीं कर सकता. धान की बुआई के लिए जून के मध्य तक किसानों को इंतजार करना पड़ता है.
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पंजाब के नक्शेकदम पर चला हरियाणा
पंजाब की ही तरह हरिआणा में धान की फसल की बुआई का समय बढ़ गया. बता दें कि धान की फसल की बुआई से लेकर कटाई तक में करीब 120 दिन का समय लगता है. हरियाणा में भी किसान अक्टूबर से पहले धान के फसल की कटाई नहीं कर सकते हैं जिससे प्रदूषण की समस्या में काफी बढ़ोतरी हुई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नए एक्ट के अंतर्गत पंजाब और हरियाणा में जलसंकट के लिए राज्य सरकारों ने धान की खेती को जिम्मेदार ठहराया गया.
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वहीं दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान (International Water Management Institute-IWMI) की रिपोर्ट की मानें तो धान के खेत में मौजूद पानी से भूजल स्तर रिचार्ज होता रहता है और उससे जलस्तर में बढ़ोतरी भी होती है. इसके अलावा कम पानी भाप बनकर उड़ता है. रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश से लिए गए नमूनों से यह बात साफ हुई है कि धान की खेती से भूजल स्तर में बढ़ोतरी हुई है.
धान की बुआई में देरी के लिए अमेरिकी एजेंसी पर साजिश का आरोप
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिकी एजेंसी यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) पर धान की खेती में देरी करने के लिए साजिश का आरोप है. दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई है कि भूजल स्तर में गिरावट के नाम पर इस एजेंसी ने अपने हितों को साधने का काम किया और उसने मोनसेंटो (Monsanto) जैसी विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाया.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मोनसेंटो ने अपनी जेनेटिकली मॉडिफाइड (Genetically Modified-GM) बीजों को भारत में खपाने के लिए गिरते भूजल को आधार बनाकर धान की खेती में देरी का राग अलापा और पंजाब-हरियाणा की सरकार ने सुधार के नाम पर उस पर अमल भी कर दिया. बता दें कि भारत में मोनसेंटो की बीटी कपास (Bacillus Thuringiensis Kapas) बीज की भारी मात्रा में बिक्री होती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वर्ष 2012 में तत्कालीन पंजाब सरकार ने मोनसेंटो (Monsanto) को राज्य में अपना रिसर्च सेंटर भी स्थापित करने की अनुमति दी थी. उस समय राज्य सरकार ने GM मक्का की फसल की बुआई के लिए धान की खेती को 45 फीसदी तक कम करने की भी घोषणा की थी.