भारत में उच्च आय वर्ग (HIG) ने कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान किराने का सामान और अन्य जरूरी चीजों को अपनी सामान्य जरूरतों से ज्यादा मात्रा में खरीदा. आईएएनएस-सीवोटर कोविड-19 ट्रैकर सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है. आर्थिक मुद्दों पर कोविड-19 (COVID-19) ट्रैकर सर्वे में उल्लेख किया गया है कि उच्च आय वर्ग के 27 प्रतिशत ने कोरोना संकट के बीच कुछ किराने का सामान और जरूरी चीजें साामन्य रूप से जितना खरीदते हैं, उसकी तुलना में ज्यादा खरीदा. समूह में से, 58.5 प्रतिशत ने इन वस्तुओं को सामान्य तौर पर खरीदा जबकि 3.4 प्रतिशत ने सामान्य उपयोगों के मुकाबले कम खरीदा. सर्वे के अनुसार, कोरोना के प्रकोप के बाद से 60 और उससे अधिक आयु वर्ग के केवल 11.4 प्रतिशत लोगों ने अधिक किराने का सामान खरीदा. लैंगिकता के हिसाब से 18.9 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 23 प्रतिशत महिलाओं ने ज्यादा सामान खरीदा.
जरूरत से ज्यादा सामान खरीदा
सर्वेक्षण से पता चलता है कि कैसे लोगों ने सरकार की घोषणाओं के बावजूद कि आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में कोई समस्या नहीं होगी, जरूरत से ज्यादा चीजों को खरीद लिया. उच्च आय वर्ग के बाद मध्य आय वर्ग के 24.4 प्रतिशत लोगों ने घबराहट में आकर उपभोग से ज्यादा चीजों को खरीद कर दूसरे स्थान पर हैं. केवल 47.2 प्रतिशत लोगों ने सामान्य वस्तुओं को खरीदा जबकि 27 प्रतिशत लोगों ने सामान्य से कम खरीदा. सर्वेक्षण के अनुसार, निम्न आय वर्ग की क्रय क्षमता में हालांकि 42 प्रतिशत की कमी हुई और इस वर्ग के लोगों ने सामान्य से कम किराने का सामान खरीदा. इस वर्ग के 37.5 प्रतिशत लोगों ने इन वस्तुओं को सामान्य तरीके से खरीदा जबकि 16.8 प्रतिशत लोगों ने सामान्य से ज्यादा खरीदा.
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पढ़े-लिखे लोगों ने खरीदा
आश्चर्यजनक रूप से, 26.5 प्रतिशत उच्च शिक्षित वर्ग के लोगों ने इन सामानों को सामान्य से अधिक खरीदा, इसके बाद कम शिक्षित वर्ग के 20.3 प्रतिशत और मध्यम शिक्षित समूह का 19.4 प्रतिशत लोगों ने खरीदा. अर्ध-शहरी क्षेत्रों में रहने वाले कम से कम 23.7 प्रतिशत लोगों ने सामान्य से अधिक खरीदारी की जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 17.8 प्रतिशत रहा. भारत के पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से ने किराने का सामान और सप्लाई सामान्य से अधिक 23.8 प्रतिशत, 22.6 प्रतिशत, 22.5 प्रतिशत के साथ खरीदी, जबकि 14.9 प्रतिशत इसी तरह की श्रेणी देश के उत्तरी भाग में देखी गई.
जातिवार आगे रहे ईसाई
सामाजिक श्रेणी के अनुसार, 50.9 प्रतिशत ईसाई समुदाय ने सामानों को सामान्य से अधिक खरीदा, इसके बाद 34 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी), 22.5 प्रतिशत उच्च जाति के हिंदू (यूसीएच), 21.4 प्रतिशत मुस्लिम, 19.2 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी), 14 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), 9.2 प्रतिशत सिख और 48.3 प्रतिशत अन्य हैं. कुछ किराने का सामान खरीदने वाले सामान्य से अधिक लोग 25 वर्ष से कम आयु के 26 प्रतिशत, 25और 45 वर्ष की बीच की आयु के 22.2 प्रतिशत और 45-60 वर्ष के बीच के आयु वर्ग के 19 प्रतिशत लोग थे.
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शौक पूरा करने में ज्यादा समय निकाल रहे
उच्च आय वर्ग और उच्च शिक्षा वाले करीब 50 प्रतिशत लोग कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान अपने शौक को पूरा करने के लिए ज्यादा समय निकालने लगे हैं. देशव्यापी सर्वे से यह पता चला कि उच्च शिक्षा समूह वाले 55.7 प्रतिशत और उच्च आय समूह वाले 49.6 प्रतिशत लोग लॉकडाउन के दौरान अपने शौक को पूरा करने के लिए ज्यादा समय खर्च करते हैं. लैंगिकता की बात करें तो, 25 वर्ष से कम उम्र के 42 प्रतिशत लोग लॉकडाउन के दौरान अपने शौक के लिए ज्यादा समय निकालने लगे हैं. वहीं लॉकडाउन लागू होने के बाद 25 से 45 आयुवर्ग के 39 प्रतिशत लोग यह काम करने लगे हैं. वहीं अगर शैक्षणिक योग्यता की बात करें तो, कम पढ़े लिखे 30 प्रतिशत लोग अपने शौक को पूरा करने के लिए समय निकाल रहे हैं, जबकि मध्य शैक्षणिक समूह के 45 प्रतिशत लोग ऐसा कर रहे हैं.
कोविड-19 बाद सामान्य जीवन को लेकर 66 प्रतिशत लोग आशावान
देश में ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित और विभिन्न शैक्षणिक, सामाजिक, आय व आयु वर्ग के 48 से 66 प्रतिशत लोगों ने उम्मीद जताई है कि कोविड-19 का प्रकोप खत्म हो जाने के बाद जीवन सामान्य ढर्रे या ट्रैक पर लौट आएगा. यह बात आईएएनएस-सीवोटर कोविड ट्रैकर सर्वे में सामने आई है. सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 48.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे 'बहुत आशान्वित' हैं कि जब खतरनाक वायरस चला जाएगा तो उनके स्वयं के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्यों का जीवन भी सामान्य ट्रैक पर वापस आ जाएगा. वहीं 38 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे इस मुद्दे पर 'कुछ आशान्वित हैं' और 7.1 प्रतिशत ने कहा कि वे 'बहुत आशान्वित नहीं हैं'. हालांकि इस तरह की सोच रखने वाले लोगों की संख्या अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बढ़ी हुई देखी गई, जहां 56.5 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे 'बहुत आशान्वित' हैं, 25.1 प्रतिशत 'कुछ आशान्वित' हैं और 7.4 प्रतिशत 'बहुत आशान्वित' नहीं हैं.
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कोरोना कांड के बाद शहरी लोग ज्यादा आशावान
वहीं इस मुद्दे पर शहरी क्षेत्रों के लोग काफी आशावादी नजर आए. यहां 58.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे 'बहुत आशान्वित' हैं कि उनका जीवन प्रकोप के बाद वापस पटरी पर आ जाएगा, जबकि 25.9 प्रतिशत ने कहा कि वे 'कुछ आशान्वित' हैं और केवल 2.4 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें अभी इसकी कोई खास उम्मीद नहीं है. उच्च शिक्षित लोग सामान्य जीवन के बारे में बहुत आशान्वित नजर आए हैं, जिनमें से 66.1 प्रतिशत लोगों ने सकारात्मक जवाब दिया है. वहीं इसके बाद 56.2 प्रतिशत मध्यम शिक्षा क्षेत्र और 55.4 प्रतिशत कम शिक्षा क्षेत्र वाले लोग पाए गए हैं. इसी तरह उच्च आय वर्ग के 63.4 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे कोविड-19 के खात्मे के बाद सामान्य स्थिति के बारे में 'बहुत आशान्वित' हैं. इसके बाद मध्यम आय वर्ग में 58.6 प्रतिशत और निम्न आय वर्ग में 54 प्रतिशत लोग आशावादी नजर आए.
सामाजिक तबके और आशावाद
सामाजिक या समुदाय की बात करें तो 67.5 प्रतिशत ईसाइयों ने कहा कि वे 'बहुत आशान्वित' हैं. इसके बाद 61.5 प्रतिशत सिख, 61.1 प्रतिशत मुस्लिम, 59.1 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 58.5 प्रतिशत उच्च जाति के हिंदू (यूसीएच) लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी. इसके बाद 55.4 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), 51.7 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 54.5 प्रतिशत अन्य श्रेणी से संबंधित लोगों ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी. क्षेत्र के पहलू से देखें तो देश के पूर्वी भाग में 60 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे महामारी के बाद के हालातों को लेकर 'बहुत आशान्वित हैं'. वहीं उत्तर भारत में 58.5 प्रतिशत, पश्चिम में 57.8 प्रतिशत और दक्षिण में 51.1 प्रतिशत लोग आशावादी नजर आए.
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वृद्ध भी आशा से भरपूर
महामारी से वृद्धों को सबसे अधिक चोट पहुंचने के बावजूद, 60 वर्ष की आयु से ऊपर के 60.5 प्रतिशत लोग 'बहुत आशान्वित' नजर आए हैं. उनका मानना है कि उनका जीवन सामान्य ट्रैक पर आ जाएगा. इसके बाद मध्यम आयु वर्ग (45 से 60 वर्ष) की श्रेणी में आने वाले 58.9 प्रतिशत लोग आशावादी दिखाई दिए, जबकि युवा आयु वर्ग (25 से 45 वर्ष) में आने वाले 55.3 प्रतिशत और फ्रेशर श्रेणी (25 वर्ष से कम) में 56.9 प्रतिशत लोग आशावादी दिखे. वहीं अगर लिंग के आधार पर देखा जाए तो 58.6 प्रतिशत पुरुष और 55.2 प्रतिशत महिलाएं महामारी के बाद सामान्य जीवन के पटरी पर लौटने को लेकर आशावादी नजर आए.