शास्त्रीजी को जहर देकर मारा गया, सबूत चीख-चीख कर कह रहे थे!

विशेषज्ञों से बात कर जो निष्कर्ष निकाला, वह यही कहता है कि शास्त्रीजी की मौत दिल के दौरे से नहीं हुई, वरन उन्हें जहर देकर मारा गया.

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Nihar Saxena
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शास्त्रीजी को जहर देकर मारा गया, सबूत चीख-चीख कर कह रहे थे!

शरीर के नीला पड़ जाने का नहीं है कोई स्पष्टीकरण.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर अपने शोध और उनसे जुड़ी किताबों को लेकर लोकप्रिय हुए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अनुज धर ने एक किताब 'योर प्राइम मिनिस्टर इज डैड' लिखी, जो लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मौत पर केंद्रित है. शास्त्रीजी की संदिग्ध मौत 11 जनवरी 1966 को हुई. उस दिन उन्होंने पाकिस्तान के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसे 'ताशकंद समझौते' के नाम से जाना जाता है. शास्त्रीजी का तत्कालीन सोवियत संघ और भारत में पोस्टमार्टम नहीं हुआ. इससे सबूतों की कड़ी में रही-सही उम्मीद भी खत्म हो गई. हालांकि अनुज धर ने अपनी किताब में शास्त्रीजी के शारीरिक लक्षणों और उनके परिजनों के बयानों के आधार पर विशेषज्ञों से बात कर जो निष्कर्ष निकाला, वह यही कहता है कि शास्त्रीजी की मौत दिल के दौरे से नहीं हुई, वरन उन्हें जहर देकर मारा गया.

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शरीर नीला पड़ गया था शास्त्रीजी का
शास्त्रीजी के परिजन तो कहते ही आए हैं कि उनकी मौत स्वाभाविक नहीं थी. जब शरीर भारत आया तो वह नीला पड़ा हुआ था और उस पर नीले-सफेद धब्बे और कुछ 'कट' के निशान थे. इस आधार पर प्रोफेसर सौम्य चक्रवर्ती के हवाले किताब में लिखा गया है, 'चेहरे और शरीर के ऊपरी हिस्से का नीला पड़ जाना जहर देने या दम घुटने से हुई मौत की ओर ही संकेत करता है.'

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पोस्टमार्टम का न होना है और संदिग्ध
इसी तरह डॉ सायन बिस्वास भी जहर की आशंका को सिरे से खारिज नहीं करते. इसके पहले वह आकस्मिक मौत पर पोस्टमार्टम की जरूरत पर जोर देते हैं. उनका कहना है कि पोस्टमार्टम जरूरी है. कई संवेदनशील मामलों में तो दोबारा पोस्टमार्टम भी जरूरी हो जाता है. वह यह भी कहते हैं कि शास्त्रीजी के शव को सुरक्षित रखने के लिए लगाए गए लेप की मात्रा भी कम थी. गौरतलब है कि कई सरकारी नुमाइंदों ने इसी लेप को शास्त्रीजी के शरीर के नीला पड़ जाने का कारण बताया.

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शास्त्रीजी की पत्नी की गुहार पर चुप रही कांग्रेस सरकार
हालांकि पोस्टमार्टम नहीं होने की स्थिति में आज की तारीख में यह स्थापित करने का कोई जरिया नहीं है कि शास्त्रीजी की मौत जहर से हुई. हालांकि यहां यह भूलना नहीं चाहिए कि शास्त्रीजी की पत्नी ललिता ने सरकार से बार-बार शास्त्रीजी की मौत का स्पष्टीकरण मांगते हुए शरीर पर नीले-सफेद धब्बों समेत 'कट' के निशानों का जिक्र किया गया था. यह अलग बात है तत्कालीन सरकार को इन 'कट्स' के बारे में बताने में चार साल लग गए. सरकार के अधिकृत बयान के मुताबिक शास्त्रीजी के पेट पर पए गए 'कट' वास्तव में उनके शव पर लेपन के लिए ही किए गए थे.

HIGHLIGHTS

  • अनुज धर की किताब 'योर प्राइम मिनिस्टर इज डैड' शास्त्रीजी की मौत पर लगाती है सवालिया निशान.
  • तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नियमानुसार नहीं कराया था दोबारा पोस्टमार्टम.
  • शास्त्रीजी की पत्नी ललिता बार-बार मांगती रहीं शव पर मिले 'कट्स' की जानकारी.
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