दुनिया भर में उद्यमी युवाओं के लिए मौजूदा दौर में भारत के कई स्टार्ट-अप (Start Up) ट्रेडमार्क बन चुके हैं. दूसरी ओर इस साल के सेकेंड क्वार्टर में देश के स्टार्ट-अप की हालत चिंताजनक दिख रही है. देश में तमाम स्टार्ट-अप फंडिंग में मंदी (Funding Winter) के दौर से प्रभावित हो रहे हैं. इसमें ग्रोथ-स्टेज कंपनियों से लेकर शुरुआती चरण के स्टार्ट-अप्स तक शामिल हैं. दोनों ही छोर की कंपनियां फंड जुटाने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही हैं. साल 2022 के सेकेंड क्वार्टर में भारतीय स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में कुल फंडिंग में 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.
PwC इंडिया की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल के कैलेंडर ईयर की दूसरी तिमाही के दौरान फंडिंग 40 प्रतिशत गिर गई. गिरने के बाद यह फंडिंग $6.8 बिलियन डॉलर रह गई है. इस तिमाही में केवल चार भारतीय स्टार्ट-अप ने यूनिकॉर्न क्लब में प्रवेश किया, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए स्टार्ट अप्स से जुड़े हुए हर कदम को आगे बढ़ाने की बात करते हैं. अपने मन की बात कार्यक्रम में भी उन्होंने कई बार देश की स्टार्ट अप की चर्चा की है. इसके बावजूद स्टार्ट-अप फंडिंग को जानकारों ने निराशाजनक बताया है.
फंडिंग में गिरावट की बड़ी वजह
दरअसल, बाजार में मंदी स्टार्ट-अप की फंडिंग में गिरावट का पहला कारण है. यूरोपीयन यूनियन, अमेरिका और चीन समेत पूरी दुनिया के बड़े देश आर्थिक मंदी से जूझ रहे हैं. कोरोना महामारी और उसके बाद लगे लॉकडाउन और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध की मार से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विकास की रफ्तार थम गई या धीमी हो गई है. दुनिया की कई बड़ी इकोनॉमी ग्रोथ रेटिंग एजेंसियों ने बड़े देशों की माली हालत को नकारात्मक करार दिया है.
कई देशों में सियासी अस्थिरता
दूसरी बड़ी वजह तमाम देशों की मौजूदा सियासी हालत के कारण उपजी आर्थिक अस्थिरता को बताया जा रहा है. इस कारण मुद्रास्फीति से लेकर कमोडिटी की कीमतों और ब्याज दरों तक पर विपरीत प्रभाव पड़ा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक पूंजी देने वाली कई फर्म ने नए फंड बंद कर दिए हैं. अब फंडिंग से पहले होने वाले प्रोसेस को भी उन्होंने बदला है. आसानी से फंड देने के बजाय फाइनांस करने वाली फर्म अब वैल्यूएशन पर बातचीत करने लगी है. प्रॉफिट की संभावनाओं को लेकर भी स्टार्ट-अप वालों से फंडिंग करने वाली फर्म कठिन सवाल पूछ रही हैं.
M&A गतिविधि में भी बदलाव
दरअसल, इन वैश्विक हालात में बदलाव के कारण एम एंड ए गतिविधि में भी बदलाव आया है. एमएंडए का मतलब होता है कि कोई भी कंपनी अपनी और दूसरी कंपनी की डील को लेकर फाइनेंस, मैनेजमेंट और स्ट्रेटेजी डीलिंग किस तरह करती है. हालात ये हैं कि लीडो लर्निंग, उदय और वॉल्ड जैसी छोटी कंपनियों ने परिचालन बंद कर दिया है. क्योंकि ये कंपनियां धन ही नहीं जुटा पा रही थीं. ओला, ओयो, स्नैपडील और फार्मासी सहित कई स्टार्ट-अप ने कथित तौर पर बाजार की अनिश्चितता को देखते हुए अपनी आईपीओ योजनाओं में देरी की है.
छंटनी पर मजबूर स्टार्ट-अप
इसके अलावा फंडिंग की दिक्कत झेल रहे कई स्टार्ट-अप अपने कर्मचारियों की संख्या में कटौती कर, कार्यक्षेत्रों को बंद कर और अपने काम के तरीकों में बदलाव करके खर्च को कम ( Cost Cuting) कर रहे हैं. कर्मचारियों की छंटनी की संख्या बढ़ रही है. अपने-अपने क्षेत्रों में बेहतर काम कर रहीं Unacademy, Cars24, Meesho, और वेदांतु ने मिलकर हजारों कर्मचारियों की छंटनी की है. अनुमान है कि पिछले कुछ महीनों में तमाम कंपनियों ने 10 हजार लोगों की कर्मचारियों की छंटनी है.
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कॉस्ट कटिंग के पर भी जोर
स्टार्ट-अप कंपनियों ने भी कर्मचारियों के इंक्रीमेंट में कटौती करना और कैंपस प्लेसमेंट वगैरह को स्थगित करना शुरू कर दिया है. बीते दिनों एडटेक सेक्टर में प्रमुख स्टार्ट-अप Unacademy ने CXO स्तर के कर्मचारियों के वेतन में कटौती की घोषणा की. ऑफिस में सब्डिसाइज्ड खाना बंद कर दिया. कंपनी ने पिछले कुछ महीनों में करीब 750 कर्मचारियों की छंटनी की है. हालांकि, इस हालात से निपटने औप बेहतर बदलाव के लिए तमाम स्टार्ट-अप कंपनियां कमर कसने का दावा रही हैं.
HIGHLIGHTS
- तिमाही में केवल 4 भारतीय स्टार्ट-अप का यूनिकॉर्न क्लब में प्रवेश
- कैलेंडर ईयर की दूसरी तिमाही के दौरान फंडिंग 40 प्रतिशत गिरी
- देश में तमाम स्टार्ट-अप फंडिंग में मंदी के दौर से प्रभावित हो रहे हैं