जब भी कोई बड़ा युद्ध होता है या कोई युद्ध लंबा चलता है तो वो कई नए हथियारों का टेस्टिंग ग्राउंड बन जाता है और उससे पता चलता है कि जिन हथियारों के बारे में उन्हें बनाने वाले जैसा दावा कर रहे हैं वो वाकई में उतना कारगर है भी या नहीं. ऐसा ही एक हथियार हैं रूस का सरफेस टू एयर मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400. रूस के इस मिसाइल सिस्टम को दुनिया का सबसे घातक एयर डिफेंस सिस्टम माना जाता है, लेकिन ऐसा लगता है यूक्रेन युद्ध में जेलेंस्की की सेना ने पुतिन के इस ब्रह्मास्त्र की काट खोज ली है और अगर वाकई में ऐसा है तो ये भारत के लिए बुरी खबर है. क्योंकि चीन और पाकिस्तान जैसे दो दुश्मन देशों के घिरे भारत ने अपनी हवाई सुरक्षा के लिए करोड़ों डॉलर्स खर्च करके रूस का यही मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा है.
यूक्रेन युद्ध में एस-400 के नाकाम होने से ज्यादा चौंकाने वाली खबर ये है कि इस यूक्रेन की उस नैप्च्यून मिसाइल ने धवस्त किया है जो एक बेहद पुरानी टेक्निक वाली वाली सब-सोनिक क्रूज मिसाइल है. दरअसल यूक्रेन युद्द में जेलेंस्की की फौज ने पिछले कुछ सप्ताह में एक नई रणनीति के हिसाब से हमला किया है. दक्षिणी और पूर्वी यूक्रेन में रूस के कब्जे में गई अपनी धरती को वापस पाने के लिए जेलेंस्की की सेना का काउंटर ओफेंसिव यानी जवाबी हमला जब कोई खास कामयाबी हासिल नहीं कर सका तो अब यूक्रेन उस जगह हमला कर रहा है जो रूस के रूस के लिए बेहद अहम है और वो जगह है क्रीमिया प्रायद्वीप जिसे रूस ने साल 2014 में यूक्रेन से ताकत के बल पर छीना था.
क्रीमिया एक तरह से इस पूरे युद्ध में रूस की फौजों को रसद सप्लाई करने वाले सबसे अहम स्थान है. रूस से आने वाली हर फौजी सप्लाई क्रीमिया के जरिए ही जंग को मौर्चों पर भेजी जाती है.ब्लैक सी में मौजदू रूस की नेवल फ्लीट के मेन अड्डा भी क्रीमिया में मौजूद बंदरगाह ही हैं. इस जंग में क्रीमिया की अहमियत को लेकर हम अपने किसी और वीडियो में जरूर बात करेंगे.
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बहरहाल जंग में अपने इस सबसे मजबूत किले की हिफाजत के लिए रूस ने यहां अपने सबसे मजबूत हथियार यानी एस-400 की पांच रेजीमेट्स की तैनाती की थी. जमीन से हवा में वाले करने वाले इस डिफेंस सिस्टम की रेंज 400 किलोमीटर तक की है. एस-400 को रास्ते से हटाए बिना यूक्रेन के लिए क्रीमिया में रूस को गहरी चोट पहुंचाना मुमकिन नहीं है और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूक्रेन ने रूस के इस हथियार की दो रेडीमेंट्स को उड़ा दिय़ा है.
यूक्रेन की अपनी मिसाइल है नैप्च्यून
यूक्रेन का दावा है कि उसने अपनी नैप्च्यून मिसाइल से पहले 23 अगस्त को और फिर 14 सितंबर को क्रीमिया में तैनात दो S-400 SAM डिफेंस सिस्टम को नष्ट कर दिया.
अब सवाल ये हैं कि जो एस-400 दुश्मन की मिसाइलों को हवा में ही नष्ट करने के लिए बनाया गया है वो यूक्रे्न की पुरानी नेप्च्यून मिसाइल के शिकार कैसे बन गया. इस सवाल का जवाब जानने से पहले हम आपको नैप्च्यून मिसाइल के बारे में बताते हैं. दरअसल नैप्च्यून मिसाइल यूक्रेन को अमेरिका ब्रिटेन या नाटो के किसी देश से नहीं मिली है बल्कि ये यूक्रेन की अपनी मिसाइल है.
सोवियत संघ के जमाने की kh-35 सबसोनिक एंटीशिप मिसाइल के आधार पर बना नैप्च्यून भी एक एंटीशिप मिसाइल थी. यूक्रेन ने इस युद्ध के दौरान इस मिसाइल के गाइडेंस सिस्टम में थोड़ा बदलाव करके इसे जमीन से जमीन पर हमला करने वाली मिसाइल बना दिया. इसकी रेंज 200 किलोेमीटर तक की है. इस जंग में यूं तो यूक्रेन को अमेरिका और नाटो देशों से काफी हथियार मिले है लेकिन रूस को सबसे तगड़ी चोट तो उसकी देसी नैप्च्य़ून मिसाइल ने पिछले साल पहुंचाई थी जब इसके हमले में ब्लैक सी में मौजूद रूस की नेवी फ्लीट के सबसे बड़े जहाज मोस्कवा की जल समाधि बन गई थी.
भारत ने रूस के साथ साल 2018 में S-400 मिसाइल का किया है डील
उस वक्त कहा गया था कि अमेरिका ने यूक्रे्न को रूसी जहाज मोस्कवा की सटीक लोकेशन दी थी. यूक्रेन ने मोस्कवा के रडार सिस्टम को चकमा देने के लिए पहले ड्रोंस का इस्ते्माल किया और फिर नैप्च्यून मिसाइल से हमला करके उसे डूबो दिया. कुछ ऐसी ही चालबाजी यूक्रेन ने क्रीमिया में S-400 को तबाह करने में दिखाई है. जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक यूक्रेन ने ड्रोंस के जरिए S-400 की आंख माने जाने वाले उसके एंटीना और रडार पर हमला किया और जब वो नष्ट हो गए तो नैप्च्यून मिसाइलों ने हमला करके उसे ध्वस्त कर दिया.
जाहिर है,रूस अब क्रीमिया को बचाने के लिए वहां और ज्यादा एस-400 सिस्टम की तैनाती कर देगा लेकिन बड़ी बात ये है कि यूक्रेन ने रूस के उस हथियार को नष्ट करने की तरीका खोज लिया है जिसे अब तक अजेय समझा जाता था. और यही बात भारत को परेशान कर सकती है. भारत ने रूस के साथ साल 2018 में S-400 SAM डिफेंस सिस्टम की पांच रेजीमेंट्स की डील की थी. 35,000 करोड़ रुपए की इस डील में भारत को तीन रेजीमेंट्स की डिलीवरी हो चुकी है और दो रेजीमेंट्स की डिलीवरी अगले साल पूरी होने की संभावना है.
हथियारों के इंटरनेशनल मार्केट में रूस की साख दांव पर लगने की आशंका
चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मन देशों की ओर आने वाले आसमानी खतरों से अपनी सीमा को सुरक्षित करने के लिए भारत पश्चिमी और पूर्वी सीमा पर दो रेजीमेंट्स की तैनाती भी कर चुका है.रूस के साथ S-400 की डील करने पर भारत को अमेरिका के गुस्से का शिकार भी होना पड़ा था और उस पर अमेरिकी कानून CAATSA के तहत पाबंदियों की तलवार भी लटकी है. ऐसे में अगर यूक्रेन की नैप्च्यून जैसी साधारण सी मिसाइल भी इतने महंगे सिस्टम को तबाह कर सकती है तो ये भारत के लिए चिंता की बात है. भारत के अलावा रूस ने चीन और टर्की को भी ये महंगा S-400 बेचा है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि रूस जल्द अपने इस सिस्टम में मौजूद इस खामी को दुरुस्त करने की कोशिश करेगा वरना क्रीमिया तो पुतिन के हाथ से जाएगा है साथ हथियारों के इंटरनेशनल मार्केट में रूस की साख पर बट्टा भी लग जाएगा.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau