आज फादर्स डे है. आज के दिन हम में से अधिकांश लोग अपने माता-पिता की आकृति को विस्मय और प्रेरणा से देखते हैं, और हम में से बहुत से लोग अपने पिता के परिवार के प्रति किए गए त्याग को याद करते है. इसके साथ पिता पेशेवर नक्शेकदम पर चलते हैं. यही बात भारतीय राजनीति पर भी लागू होती है. भारतीय राजनीति में लोकतंत्र के सहारे सत्ता तक पहुंचे लोगों की यह कोशिश होती है कि अपनी राजनीतिक विरासत को वह अपने पुत्र-पुत्री या परिवार के सदस्यों को सौंप दें. भले ही उनकी पार्टी में दूसरे-तीसरे नंबर पर योग्य लोग हों, सत्ता की चाबी वह अपने पुत्र-पुत्री को ही सौंपते हैं.
देश के हर राज्य में ऐसे कई उदाहरण हैं जब मुख्यमंत्रियों और पार्टी अध्यक्षों ने पार्टी की कमान अपने पुत्र को ही सौंपी. उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव, हरियाणा में चौधरी देवीलाल. वंशीलाल, भजन लाल, बिहार में लालू प्रसाद यादव, तमिलनाडु में करुणानिधि और महाराष्ट्र में बाल ठाकरे ऐसे राजनेता हैं जिनकी राजनीतिक विरासत पर उनके पुत्र काबिज हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बनें. यहां हम कुछ विरासत की राजनीति के प्रसिद्ध उदाहरणों पर नजर डालेंगे.
बाल-उद्धव ठाकरे
भारतीय राजनीति में बाल ठाकरे का एक अहम स्थान है. ठाकरे कभी सांसद, विधायक औऱ मंत्री-मुख्यमंत्री नहीं बनें, लेकिन वह मुख्यमंत्री औऱ केंद्रीय मंत्री बनाते थे. ठाकरे शिवसेना के संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष होने के साथ महाराष्ट्र में एक शक्तिशाली प्रभाव और ताकत रखते थे. बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट के रूप में अपना करियर शुरू किया और अंततः एक हिंदू दक्षिणपंथी धार्मिक पार्टी शिवसेना की स्थापना की. वह मराठी लोगों और उनके हितों के लिए एक मजबूत वकील थे, और वह महाराष्ट्रियन संस्कृति के संरक्षण और अन्य राज्यों के लोगों के महाराष्ट्र में नौकरी लेने के मुखर विरोधी थे.
बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी के तौर पर उनके भतीजे राज ठाकरे को देखा जाता था. लेकिन 2012 में अपने पिता की मृत्यु के बाद, उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए शिवसेना का नेतृत्व संभाला. शिवसेना एक धार्मिक-आधारित राजनीतिक दल से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एक मुख्यधारा के राजनीतिक दल के रूप में विकसित हुई. समय के साथ पार्टी के विकास को देखते हुए दोनों नेताओं के बीच तुलना, अपरिहार्य और अपरिहार्य होते हुए भी बेमानी और अनावश्यक है. हालाँकि शुरू में यह सोचा गया था कि पार्टी का उतना प्रभाव नहीं होगा जितना कि बाल ठाकरे के समय था, उद्धव ने पार्टी के झंडे को स्थिर रखकर संदेह को गलत साबित कर दिया.
चरण सिंह-अजीत सिंह-जयंत चौधरी
चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री रहे. उनके बाद उनके पुत्र अजीत सिंह राष्ट्रीय लोकदल के नेता हुए. अब पार्टी की कमान अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी के हाथ में है.
देवीलाल-ओमप्रकाश चौटाला- दुष्यंत चौटाला
भारतीय राजनीति में ताऊ के नाम से प्रसिद्ध चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री औऱ देश के उप प्रधानमंत्री रहे. उनके बाद उनके पुत्र ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री हुए. उसके बाद इंडियन नेशनल लोकदल उनके पुत्रों अजय चौटाला औऱ अभय चौटाला से होते हुए पौत्र दुष्यंत चौटाला के हाथ में है.
लालू यादव- तेजस्वी और तेज प्रकाश
राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव विवादों और कानूनी लड़ाई में उलझे हुए हैं. लालू यादव ने दो बार बिहार के मुख्यमंत्री और पांच साल तक रेल मंत्री के रूप में कार्य किया. उन पर कई घोटालों का आरोप लगाया गया था और चौथे चारा घोटाले के मामले में उन्हें जेल में रखा गया था. तेजस्वी और तेज प्रताप यादव को अपने पिता के राजनीतिक उत्तराधिकारी है. तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा में विपक्ष के वर्तमान नेता हैं और पहले नीतीश कुमार सरकार में बिहार के उपमुख्यमंत्री थे. दूसरी ओर, तेज प्रताप यादव बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री थे.
मुलायम सिंह यादव-अखिलेश यादव
मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में एक और मजबूत पिता-पुत्र की जोड़ी हैं. मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार तीन कार्यकाल पूरे किए. वह भारत के रक्षा मंत्री भी थे और वर्तमान में लोकसभा में संसद सदस्य हैं.
अखिलेश यादव, चतुराई से अपने पिता की विरासत को संभाल रहे हैं. वह 2012 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए और अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल की सेवा की. दूसरी ओर, पिता-पुत्र के रिश्ते में 2016 में खटास आ गई जब मुलायम यादव ने अपने बेटे को पार्टी से निष्कासित कर दिया, और बाद में अपने फैसले को उलट दिया.
सपा में मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव को उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जा रहा था. लेकिन मुलायम सिंह ने भाई की बजाय पुत्र को मुख्यमंत्री बनाया और बाद अखिलेश यादव पार्टी के भी सर्वेसर्वा हो गए.
जवाहरलाल नेहरू-इंदिरा गांधी
जवाहरलाल नेहरू अंग्रेजों से आजादी के लिए भारत के संघर्ष में एक प्रमुख व्यक्ति थे और बाद में देश के पहले प्रधानमंत्री बने. जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री के रूप में भारी और कई जिम्मेदारियां निभाईं. वह भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले प्रधानमंत्री भी थे. इंदिरा गांधी राजनीति की दुनिया में एक और प्रसिद्ध राष्ट्रीय हस्ती हैं. वह अपने पिता के नक्शेकदम पर चली और स्वतंत्र भारत की तीसरी प्रधानमंत्री बनीं.
राजीव गांधी- प्रियंका गांधी, राहुल गांधी
1984 में मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने पद संभाला. 1984 से 1989 तक, वह भारत के छठे प्रधानमंत्री थे. 40 साल की उम्र में, वह प्रधानमंत्री का पद संभालने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति भी थे. उन्होंने 1991 के चुनावों तक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. उसी वर्ष चुनाव प्रचार के दौरान एक आत्मघाती हमलावर ने उनकी हत्या कर दी थी. सोनिया, उनकी विधवा, तब कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं. राहुल और प्रियंका गांधी राजीव गांधी के बच्चे हैं.
राजीव और सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी इससे पहले कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं. उनका राजनीतिक जीवन 2004 में शुरू हुआ जब वे अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से लोकसभा के लिए भी चुने गए थे.
रामविलास पासवान-चिराग पासवान
दलित नेता रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने 2011 में फिल्म 'मिले ना मिले हम' से बॉलीवुड में कदम रखा. फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर असफल होने के बाद, 35 वर्षीय चिराग पासवान ने राजनीति की ओर रुख किया. वह पहली बार 2014 में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े थे. उन्होंने बिहार के जमुई निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव जीता और 16वीं लोकसभा के लिए चुने गए. रामविलास की मृत्यु के बाद पहले हुए बिहार चुनावों के बीच उनकी पार्टी को राजनीतिक उथल-पुथल का सामना करना पड़ा.
विजया राजे सिंधिया -ज्योतिरादित्य सिंधिया
ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया पहले कांग्रेस फिर भारतीय जनसंघ से राजनीति कीं. उनके बाद उनके पुत्र माधवराव सिंधिया, वसुंधरा राजे, यशोधरा राजे औऱ अब पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति में विरासत को संभाल रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया, माधवराव जीवाजीराव सिंधिया के पुत्र, सिंधिया वंश के वंशज हैं जिन्होंने कभी ग्वालियर पर शासन किया था. सिंधिया का राजनीतिक करियर 2001 में शुरू हुआ, जब उनके पिता, तत्कालीन सांसद की विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई. 2002 में वह सांसद चुने गए. 2004 और 2009 में वह फिर ग्वालियर सीट से चुने गये. तब उन्हें वाणिज्य और उद्योग राज्य सचिव नियुक्त किया गया था. उन्हें 2012 में बिजली राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था. सिंधिया ने 2021 में कांग्रेस से भाजपा में प्रवेश किया, और अब वह केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं.
करुणानिधि-स्टालिन
दक्षिण बारत की राजनीति में करुणानिधि का अहम स्थान है. तमिलनाडु में करुणानिधि औऱ उनकी पार्टी डीएमके का काफी प्रभाव रहा है. पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं के होते हुए करुणानिधि ने अपने पुत्र स्टालिन को ही अपना राजनीतिक वारिस घोषित किया. स्टालिन आज तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हैं.