प्रथम स्वतंत्रता संग्राम-1857 की शुरुआत 10 मई से मानी जाती है. इस लिहाज से उस खास दौर की शुरुआत के 165 वर्ष हो चुके हैं. पूरा देश आजादी के महानायकों को श्रद्धांजलि दे रहा है. भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति में इस बात पर खासा जोर दिया है कि इसे सिर्फ एक विद्रोह न माना जाए, बल्कि हकीकत की तरह ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ही माना जाए. हालांकि पहले की पाठ्य पुस्तकों तक में इसे कभी सिपाही विद्रोह कहा गया, कभी असंगठित कह कर खारिज करने की कोशिश की गई. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. वैसे, इस क्रांति को खारिज करने की पुरजोर कोशिश अंग्रेजों ने शुरुआत से ही की, लेकिन आम जनमानस के सामने असलियत देर से आई. क्योंकि अब तक तो इसे अंग्रेजी नजरिए के तहत ही खारिज ही किया जाता रहा था.
ब्रिटिश यानी अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी राज के खिलाफ भारतीय सैनिकों ने 10 मई 1857 को संगठित क्रांति की शुरुआत की थी. यह संग्राम मेरठ में शुरू हुआ और बहुत जल्द ही देश के कई महत्वपूर्ण स्थानों पर भी तेज गति से पहुंच गया. तात्कालीन भारत के तमाम हिस्सों में इस क्रांति की लहर पहुंची. देशभक्त सेनानियों ने ब्रिटिश सरकार के सामने अपने विद्रोह की चुनौती बहुत बड़े स्तर पर खड़ी की. अंग्रेज सरकार इससे बुरी तरह डर और घबरा गए थे. ब्रिटिश हुकूमत ने इस क्रांति को जानवरों की तरह बेरहमी से दबाने की भरपूर कोशिश की थी. भले ही इस क्रांति ने अंग्रेजों को जड़ से नहीं उखाड़ फेंका हो, लेकिन इसके बीज इसी स्वतंत्रता संग्राम में पड़े थे. हालांकि अंग्रेजों ने इस क्रांति से सबक भी खूब लिया और हरेक वो कोशिश की, ताकि अंग्रेज हमेशा अपना राज चलाते रहें. यही वजह थी कि 1857 की क्रांति से डरे ब्रिटिशर्स को शासन में कई बदलाव करने पड़े. इसके बाद 1857 की क्रांति को असफल बताने की साजिशें शुरू कर दीं. इससे भी चैन नहीं मिला तो उन्होंने तात्कालीन शिक्षा और बौद्धिक जगत में इन बातों (अफवाहों) का दस्तावेजीकरण करवाना शुरू कर दिया था.
- यह महज सिपाही विद्रोह था.
- अचानक और बिना किसी योजना के सिर्फ चर्बी वाले कारतूसों के कारण शुरू हुआ.
- विद्राह केवल उत्तर भारत में हुआ.
- कुछ राजे-रजवाड़े ही विद्रोह में शामिल हुए. वे सब अपना राज छिन जाने के कारण असंतुष्ट थे.
- मुस्लिम समाज फिर से भारत में शासन हासिल करने के लिए इसमें शामिल हुआ.
इन सब अफवाहों और झूठों को आजादी के बाद भी आकादमिक जगत में सच मना जाता रहा. फिर इस पर बहस शुरू हुई. बाद में देर-सबेर इसका सच भी सामने आने लगा. 10 मई, 1857 को जली स्वतंत्रता की पहली चिंगारी ने ही 90 साल तक भारतीय लोगों के संघर्ष को जारी रखा और अंग्रेजों को देश छोड़कर जाने पर मजबूर किया. आइए, जानते हैं कि साल 1857 की महान क्रांति के बाद ब्रिटिशर्स पर क्या असर हुआ. इस संघर्ष के ऐसे क्या 5 सबसे बड़े नतीजे सामने आए, जिसका लंबे समय तक असर रहा-
ईस्ट इंडिया कंपनी राज खत्म: 1857 का स्वतंत्रता संघर्ष के धीमे होते ही साल 1858 में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पास कर ईस्ट इंडिया कंपनी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया. कंपनी राज खत्म हो गया.
सीधे ब्रिटिश बंदोबस्ती में आया भारत: भारत पर शासन का पूरा अधिकार क्वीन विक्टोरिया को अपने हाथों में लेना पड़ा. इंग्लैंड में 1858 ई. के अधिनियम के तहत एक ‘भारतीय राज्य सचिव’ की व्यवस्था की गई. इसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक ‘मंत्रणा परिषद्’ बनाई गई. इन 15 सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार और 7 की ‘कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स’ द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई.
साम्राज्य विस्तार पर लगाम: भारतीय लोगों को उनके गौरव और अधिकारों को पुनः वापस करने की बात कही गई. भारतीय नरेशों को क्वीन विक्टोरिया ने अपनी ओर से समस्त संधियों के पालन करने का वादा करना पड़ा. अपने साम्राज्य विस्तार की वासना पर काबू का वादा भी क्वीन विक्टोरिया ने किया.
ईसाई धर्म का खुलेआम प्रचार-प्रसार धीमा: साल 1857 की क्रांति की तात्कालिक वजहों में एक धार्मिक दृष्टिकोण भी था. इसका बड़ा असर देखने को मिला. 1857 में देश में मुगल साम्राज्य का रहा-सहा अस्तित्व खत्म हो गया. वहीं गोरे अंग्रेजों के उच्च होने का भ्रम भी मिट गया. इसके साथ ही अंग्रेजों की शह पाकर खुलेआम हो रहे ईसाइयत का प्रचार-प्रसार भी थमा. मिशनरीज ने रूप बदल कर सेवा के क्षेत्र को धर्मांतरण का जरिया बनाने की शुरुआत की.
HIGHLIGHTS
- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के 165 साल
- अंग्रेजों ने क्रांति को असफल बताने की भरपूर कोशिश की
- इस क्रांति ने खत्म कर दिया था कंपनी राज
Source : Keshav Kumar