देश के पश्चिमी तटीय प्रदेश गुजरात के मछुआरों ( Fisherman in Gujarat) की आजीविका पिछले एक दशक से भी अधिक समय से संकट में है. ऐसा तब है कि जब मत्स्य उद्योग (fisheries industry) के मामले में गुजरात देश का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है. मछुआरों की आजीविका संकट में आने की सबसे बड़ी वजह मछली पकड़ने के नए नावों के पंजीकरण पर ( Boat Registration) लगाई गई रोक है. वहीं दूसरा सबसे बड़ा कारण औद्योगिक कचरे ( Industrial West) से बड़ी तादाद में मछलियों की हो रही मौत को बताया जा रहा है. देश के एक बड़े थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी और गैर सरकारी संस्था मजदूर डॉट इंक की ओर से जारी एक साझा रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है.
गुजरात के वापी, वलसाड, वेरावल आदि के मछुआरों और मत्स्य उद्यमियों से विस्तार से बातचीत और इंटरव्यू के आधार पर तैयार सर्वे के रिपोर्ट में बताया गया है कि मत्स्य विभाग की विसंगतियों से लैस नीतियों के कारण इस उद्योग में जहां नए मछुआरों का प्रवेश प्रतिबंधित है, वहीं पुराने मछुआरों के लिए भी अपने व्यापार को बढ़ाना संभव नहीं रह गया है. रिसर्चर्स का दावा है कि गुजरात में पिछले एक दशक से अधिक समय से मछली पकड़ने के नए नावों का पंजीकरण नहीं किया गया है. वहीं नए नावों के पंजीकरण पर रोक से संबंधित कोई भी अधिसूचना ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है.
गुजरात फिशरीज एक्ट 2003 के प्रावधान
रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोई अधिसूचना कभी जारी की भी गई हो तो गुजरात फिशरीज एक्ट 2003 के अनुसार किसी भी अधिकारी को यह अधिकार नहीं है कि वह नावों के पंजीकरण पर रोक का आदेश जारी कर सके. इस प्रावधान के कारण जहां नए मछुआरों को रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा, वहीं पुराने मत्स्य व्यवसायी अपने कारोबार को आगे बढ़ाने देने में असमर्थ साबित हो रहे हैं. तटीय प्रदेश में मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देने और नए मछुआरों को रोजगार प्रदान करने के बारे में गैरसरकारी रिपोर्ट में कई जरूरी सुझाव दिए गए हैं.
मत्स्य उद्योग को बढ़ाने के लिए जरूरी सुझाव
रिपोर्ट में नए नावों के लाइसेंसिंग और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को आसान कर उसके एकीकरण करने की सिफारिश की गई है. इसके अलावा बंदरगाहों की क्षमता को व्यापक तौर पर बढ़ाने की अपील भी की गई है. स्टडी के दौरान पाया गया है कि औद्योगिक कचरे के सीधे नदियों में गिरने से भारी तादाद में होने वाली मछलियों की मौत भी चिंता जताने लायक तथ्य बनकर सामने आया है. इसपर नियंत्रण करने के लिए सरकार को औद्योगिक कचरों के वैकल्पिक रास्ता निकालने की जरूरत पर भी जोर दिया गया है.
मोदी सरकार 2.0 में बढ़ा ब्लू इकोनॉमी पर जोर
बीते साल भविष्य की जरूरतों और देश की अर्थव्यवस्था में समुद्री संसाधनों की भागीदारी बढ़ाने के मकसद से भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने ‘ब्लू इकोनॉमी’ पॉलिसी ड्राफ्ट तैयार करते हुए लोगों से सुझाव आमंत्रित किए थे. इससे पहले साल 2019 में मोदी सरकार 2.0 के पहले बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में उन्होंने ब्लू इकोनॉमी को बढ़ाने पर जोर दिया था. साल 2010 में आई गुंटर पॉली की किताब 'The Blue Economy: 10 years, 100 innovations, 100 million jobs' में पहली बार ब्लू इकोनॉमी की अवधारणा को महत्व दिया गया था. इसके बाद दुनिया भर में इसकी चर्चा ने जोर पकड़ लिया था.
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विशाल प्रायद्वीप भारत में ब्लू ग्रोथ वक्त की मांग
ब्लू इकोनॉमी के तहत अर्थव्यवस्था समुद्री क्षेत्र पर आधारित होती है. जिसमें पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए डायनैमिक बिजनेस मॉडल तैयार किए जाते हैं. 'ब्लू ग्रोथ' के जरिये संसाधनों की कमी और कचरे के निपटारे की समस्या का समाधान किए जाने की कोशिश होती है. भारतीय समुद्र तट की कुल लम्बाई 7516.6 किलोमीटर है. इसमें भारतीय मुख्य भूमि का तटीय विस्तार 6300 किलोमीटर है. साथ ही द्वीप क्षेत्र अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप का संयुक्त तटीय विस्तार 1,216.6 किलोमीटर है. इसलिए तीन तरफ से समुद्र से घिरा एक विशाल प्रायद्वीप भारत में समुद्री आर्थिकी दिशा में बढ़ना बेहद जरूरी हो गया है.
HIGHLIGHTS
- मत्स्य उद्योग के मामले में गुजरात तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य
- समुद्र में औद्योगिक कचरे से बड़ी तादाद में हो रही मछलियों की मौत
- नए नावों के लाइसेंसिंग-रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को आसान करने का सुझाव