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Flashback 2019 Chandrayaan 2: जब भारत ने भरी चांद की उड़ान, दुनिया देखकर रह गई हैरान

चंद्रयान-2 को पृथ्वी की कक्षा में पहुंचाने की जिम्मेदारी इसरो ने अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल- मार्क 3 (जीएसएलवी-एमके 3) को दी थी. इस रॉकेट को स्थानीय मीडिया से 'बाहुबली' नाम दिया गया था. जानिए कैसा था चंद्रयान 2 का चा

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Vikas Kumar
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Flashback 2019 Chandrayaan 2: जब भारत ने भरी चांद की उड़ान, दुनिया देखकर रह गई हैरान

Flashback 2019 Chandrayaan 2( Photo Credit : File Photo)

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Flashback 2019 Chandrayaan 2: 22 जुलाई 2019 का दिन भारत के लिए सबसे बड़ा दिन था जब भारत में चांद पर पहुंच बनाने की पहली सीढ़ी चढ़ी. आंध्र प्रदेश का श्रीहरिकोटा का सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र 'चंद्रयान 2' के लिए पूरी तरह से तैयार था. काउंटडाउन शुरू हुआ 10..9..8.......1 और जैसे ही ये नंबर '0' हुआ, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में खड़े सारे वैज्ञानिकों सहित दुनियाभर के वैज्ञानिकों की धड़कने तेज हो गईं. इसके कुछ ही मिनट में शुरू हो चुका था भारत का 48 दिन का चांद का सफर जिसके लिए वैज्ञानिकों ने सालों से मेहनत की थी. हालांकि चंद्रयान 2 का प्रक्षेपण पहले 15 जुलाई 2 बजकर 51 मिनट पर प्रस्तावित था लेकिन किसी तकनीकी गड़बड़ी के कारण अभियान को रोकना पड़ा.
भारत की उम्मीदों को लेकर उड़ा 'बाहुबली' रॉकेट
चंद्रयान-2 को पृथ्वी की कक्षा में पहुंचाने की जिम्मेदारी इसरो ने अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल- मार्क 3 (जीएसएलवी-एमके 3) को दी थी. इस रॉकेट को स्थानीय मीडिया से 'बाहुबली' नाम दिया गया. 640 टन वजनी रॉकेट की लागत 375 करोड़ रुपये थी. यह रॉकेट 3.8 टन वजन वाले चंद्रयान-2 को लेकर उड़ान भरा. चंद्रयान-2 की कुल लागत 603 करोड़ रुपये आई थी. अलग-अलग चरणों में सफर पूरा करते हुए यान सात सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव की निर्धारित जगह पर उतरना था.

इसके पहले कब लांच हुआ था चंद्रयान मिशन

भारत ने इसके पहले भी चांद पर पहुंचने की कोशिश की थी. भारत ने 2008 में चंद्रयान-1 लांच किया था. यह एक ऑर्बिटर अभियान था. ऑर्बिटर ने 10 महीने तक चांद का चक्कर लगाया था. चांद पर पानी का पता लगाने का श्रेय भारत के इसी अभियान को जाता है. चंद्रयान-2 को इसरो का सबसे मुश्किल अभियान माना जा रहा था.
खोलने वाला था ये राज
चंद्रयान-2 की सफलता पर भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की निगाहें टिकी थीं. चंद्रयान-1 ने दुनिया को बताया था कि चांद पर पानी है. अब उसी सफलता को आगे बढ़ाते हुए चंद्रयान-2 चांद पर पानी की मौजूदगी से जुड़े कई ठोस नतीजे देने वाला था. अभियान से चांद की सतह का नक्शा तैयार करने में भी मदद मिलती, जो भविष्य में अन्य अभियानों के लिए सहायक होता. चांद की मिट्टी में कौन-कौन से खनिज हैं और कितनी मात्रा में हैं, चंद्रयान-2 इससे जुड़े कई राज खोल सकता था.
विक्रम और प्रज्ञान पर थी बड़ी दारोमदार
चंद्रयान-2 के तीन हिस्से थें-ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर. अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के सम्मान में लैंडर का नाम 'विक्रम' दिया गया था. वहीं रोवर का नाम 'प्रज्ञान' था, जो संस्कृत शब्द था जिसका अर्थ था ज्ञान. चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद लैंडर-रोवर अपने ऑर्बिटर से अलग होना था. लैंडर विक्रम सात सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक उतरने का लक्ष्य था. लैंडर उतरने के बाद रोवर उससे अलग होकर अन्य प्रयोगों को अंजाम देना था. लैंडर और रोवर के काम करने की कुल अवधि 14 दिन की थी. चांद के हिसाब से यह एक दिन की अवधि होगी. वहीं ऑर्बिटर सालभर चांद की परिक्रमा करते हुए विभिन्न प्रयोगों को अंजाम देने वाला था.

उधर स्पेस सेंटर से चंद्रयान ने उड़ान भरी तो सभी के चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ पड़ी. खुद पीएम मोदी भी इस सफलता से फूले नहीं समाए. उन्होनें ट्वीट कर कहा- चंद्रयान 2 का प्रक्षेपण हमारे वैज्ञानिकों और 130 करोड़ भारतीयों के विज्ञान के नए स्तरों को निर्धारित करने के संकल्प को दर्शाता है.
आज हर भारतीय को गर्व है!

इन लोगों का मिला सपोर्ट
इस मिशन को 500 अकादमी संस्‍थान और 120 इंडस्ट्रीज द्वारा सपोर्ट किया था. इन्होंने Rs 603 करोड़ के बजट में लगभग 60 प्रतिशत और GSLV Mk-III की लागत Rs 375 करोड़ का 80 प्रतिशत योगदान दिया था. इससे चंद्रयान 2 मिशन की कुल लागत करीब Rs 978 करोड़ हो जाती है.

अगर इस रकम को देश के 130 करोड़ जनता के ऊपर बांट दें तो हर व्‍यक्‍ति के हिस्‍से में केवल 4 रुपए 64 पैसे ही आते हैं. वहीं चंद्रयान-2 मिशन पर भारत सरकार ने जितने पैसे लगाए हैं उतने में हॉलीवुड की शायद ही कोई ब्‍लाकबस्‍टर मूवी बन सके.

जब चंद्रयान 2 ने भेजी धरती की तस्वीरें
3 अक्टूबर को भारत के इस सबसे बेहतरीन मिशन के सैनिक चंद्रयान ने धरती की पहली तस्वीर को पृथ्वी पर बने अपने सेंटर पर भेजा.


अहम थे 15 मिनट
चंद्रयान 2 शनिवार भोर में करीब 1.30 से 2.30 बजे तक चांद के साउथ पोल पर सॉफ्च लैंडिंग करने वाला था. जबकि लैंडर विक्रम में से रोवर प्रज्ञान सुबह करीब 5.30 से 6.30 के बीच में बाहर आना था. प्रज्ञान चंद्रमा की सतह पर एक लूनर डे (चांद का एक दिन) में ही कई प्रयोग करने वाला था. आपको बता दें कि चांद पर लैंडर के उतरने से पहले 15 मिनट का समय काफी अहम था.

7 सितंबर 2019 को टूटा संपर्क
जैसा कि कहा जा रहा था कि लैंडर के उतरने से पहले का 15 मिनट काफी महत्वपूर्ण था. इसी 15 मिनट के दौरान भारतीय वैज्ञानिकों का लैंडर से संपर्क टूट गया. चंद्रयान-2 (Chandrayaan 2)की लैंडिंग को लेकर अभी तक कुछ साफ नहीं था. चांद के बेहद करीब आकर विक्रम लैंडर (Vikram Lander)का संपर्क पृथ्‍वी से टूट गया. लैंडर विक्रम (Lander vikram) को शुक्रवार की देर रात करीब 1:38 बजे चांद की सतह पर लाने की प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन करीब 2.1 किलोमीटर पहले ही उसका इसरो (ISRO) से संपर्क टूट गया. संपर्क टूटते ही इसरो में बेचैनी छा गई. हालांकि अभी उम्मीद पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है और हो सकता है कि बाद में लैंडर से संपर्क स्थापित हो जाए.

चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम के चंद्रमा की तरफ बढ़ने के दौरान उससे संपर्क टूट जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को इसरो के वैज्ञानिकों से कहा कि हिम्मत न हारें. आईएसटीआरएसी के नियंत्रण कक्ष में उदास वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "आपने अभी तक जो किया है, वह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है."
हालांकि भारतीय वैज्ञानिकों ने पूरी कोशिश की कि विक्रम से दुबारा संपर्क हो सके लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. विक्रम से संपर्क टूटने के बाद पूरा देश गमगीन हो गया था.

ऑर्बिटर ने जब लीं विक्रम की तस्वीरें
लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर 180 डिग्री तक गिर गया है, इसका मतलब है कि सतह पर केवल दो पैर छू रहे हैं, ऑर्बिटर ने लैंडर विक्रम की तस्वीरें क्लिक की हैं, जिनका विश्लेषण किया गया लेकिन कोई संचार स्थापित नहीं हो पाया. हालांकि इन तस्वीरों के बाद एक उम्मीद तो जगी थी कि विक्रम से दुबारा संपर्क हो पाए लेकिन ये हो न सका.

ऑर्बिटर 1 साल तक करेगा काम
मिशन चंद्रयान 2 के आखिरी क्षणों में भले ही विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया पर आर्बिटर अब भी चंद्रमा का चक्‍कर लगा रहा है. जिस ऑर्बिटर से लैंडर अलग हुआ था, वह अभी भी चंद्रमा की सतह से 119 किमी से 127 किमी की ऊंचाई पर घूम रहा है. 2,379 किलो वजनी ऑर्बिटर के साथ 8 पेलोड हैं और यह एक साल काम करेगा. यानी लैंडर और रोवर की स्थिति पता नहीं चलने पर भी मिशन जारी रहेगा. 8 पेलोड के अलग-अलग काम होंगे.

अगले 1 साल तक होगा ये काम
अब चांद की सतह का नक्शा तैयार करना, चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाने की अब कोशिश होगी. अब मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम की मौजूदगी का पता लगाने की कोशिश की जाएगी. सूरज की किरणों में मौजूद सोलर रेडिएशन की तीव्रता को मापने की कोशिश की जाएगी. चांद की सतह की हाई रेजोल्यूशन तस्वीरें खींचना, सतह पर चट्टान या गड्ढे को पहचानने की भी कोशिश की जाएगी, ताकि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग हो जाए. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की मौजूदगी और खनिजों का पता लगाने, ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाने, चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करने की भी कोशिश की जाएगी.

जब इसरो को मिला नासा का साथ
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्‍थान (ISRO) के साथ NASA (राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन) भी चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर से संपर्क स्‍थापित करने की कोशिश की. NASA ने विक्रम लैंडर को हेलो का संदेश भेजा है. 7 सितंबर को इसरो का विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया था. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चांद की सतह पर पड़े लैंडर विक्रम से दोबारा संपर्क साधने की कोशिश कर रहा था. इसी कोशिश में उसे नासा का भी साथ मिला. अगर विक्रम से इसरो का संपर्क स्थापित हो जाता है तो भारत का यह अभियान 100 प्रतिशत सफल हो जाएगा. अभी तक यह 95 प्रतिशत सफल रहा.

Source : विकास कुमार

isro NASA pragyan Chandrayaan 2 Vikram India on Moon
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