Advertisment

गुरु गोबिंद सिंह जयंती : यूं ही नहीं बने थे महान योद्धा, जानिए पूरी वीरगाथा

द्रिक पंचांग के अनुसार पौष शुक्ल सप्तमी को गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था. 2022 में पौष शुक्ल सप्तमी तिथि 8 जनवरी 2022 को सुबह 10:42 बजे से शुरू होकर 9 जनवरी 2022 को रात 11:08 बजे समाप्त होगी.

author-image
Vijay Shankar
एडिट
New Update
Guru Gobind Singh Jayanti

Guru Gobind Singh Jayanti ( Photo Credit : File Photo)

Advertisment

Guru Govind singh Jayanti 2022 : गुरु गोबिंद सिंह जयंती (Guru Govind Singh Jayanti) के शुभ अवसर को सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन, दुनिया भर से भक्त एक दूसरे को शुभकामनाएं भेजते हैं और गुरु गोबिंद सिंह जी की शिक्षाओं और मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह की जयंती हर साल दिसंबर या जनवरी में पड़ती है, लेकिन गुरु की जयंती का वार्षिक उत्सव नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होता है. इस वर्ष गुरु गोबिंद सिंह जयंती 9 जनवरी, 2022 को पड़ रही है. यह दिन महान योद्धा, कवि, दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु के सम्मान और स्मरण में मनाया जाता है. द्रिक पंचांग के अनुसार पौष शुक्ल सप्तमी को गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था. 2022 में पौष शुक्ल सप्तमी तिथि 8 जनवरी 2022 को सुबह 10:42 बजे से शुरू होकर 9 जनवरी 2022 को रात 11:08 बजे समाप्त होगी.

यह भी पढ़ें : ट्विटर से धार्मिक भावनाएं भड़काने में लगा था पाक, बड़ी साजिश नाकाम 

गुरु गोबिंद सिंह का इतिहास

"चिड़ियां नाल मैं बाज लड़ावां गिदरां नुं मैं शेर बनावां सवा लाख से एक लड़ावां तां गोविंद सिंह नाम धरावां" सिखों के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह द्वारा 17 वीं शताब्दी में कहे गए ये शब्द आज भी सुनने को मिलती है. गुरु गोबिंद सिंह जी गोबिंद राय के रूप में पटना में पैदा हुए जो दसवें सिख गुरु बने. वह एक आध्यात्मिक नेता, योद्धा, कवि और दार्शनिक थे. वह औपचारिक रूप से नौ साल की उम्र में सिखों के नेता और रक्षक बन गए, जब नौवें सिख गुरु और उनके पिता गुरु तेग बहादुर औरंगजेब द्वारा इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार करने के लिए मार दिए गए थे. गुरु गोबिंद जी ने अपनी शिक्षाओं और दर्शन के माध्यम से सिख समुदाय का नेतृत्व किया और जल्द ही ऐतिहासिक महत्व प्राप्त कर लिया. वह खालसा को संस्थागत बनाने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी मृत्यु से पहले 1708 में गुरु ग्रंथ साहिब को सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ घोषित किया था.

गुरु गोबिंद सिंह जयंती का महत्व 

गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा थे. वह कविता और दर्शन और लेखन के प्रति अपने झुकाव के लिए जाने जाते थे. उसने मुगल आक्रमणकारियों को जवाब देने से इनकार कर दिया और अपने लोगों की रक्षा के लिए खालसा के साथ लड़ाई लड़ी. उनके मार्गदर्शन में उनके अनुयायियों ने एक सख्त संहिता का पालन किया. उनके दर्शन, लेखन और कविता आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं. गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाने के लिए दुनिया भर के सिख गुरुद्वारों में जाते हैं, जहां गुरु गोबिंद सिंह जी के सम्मान में प्रार्थना सभाएं होती हैं. लोग गुरुद्वारों द्वारा आयोजित जुलूसों में भाग लेते हैं, कीर्तन करते हैं और समुदाय के लिए सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सेवा भी करते हैं. 


गुरु गोबिंद सिंह ही थे जिन्होंने सिखों द्वारा पालन किए जाने वाले पांच ककार का परिचय दिया था:

केश: बिना कटे बाल

कंघा : एक लकड़ी की कंघी

कारा: कलाई पर पहना जाने वाला लोहे या स्टील का ब्रेसलेट

कृपाण: एक तलवार

कच्छेरा: छोटी जांघिया

गुरु गोबिंद सिंह एक कवि, आध्यात्मिक गुरु, योद्धा, दार्शनिक और लेखक भी थे. 1708 में उनका निधन हो गया लेकिन उनके मूल्य और विश्वास उनके अनुयायियों के माध्यम से जीवित हैं।

पटना में हुआ था जन्म

गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के 10 वें गुरु थे. गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु के घर पटना के साहिब में पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 यानि की 22 दिसंबर 1666 को हुआ था. उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था. 1670 में गुरु गोबिंद सिंह का परिवार पंजाब में आ गया. गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे. 1699 बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी यह दिन सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दी थी. गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती है. 
 
हमेशा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया

गुरु गोविंद सिंह जी ने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया. उनकी मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए. उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी. उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दी थी. गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु 42 वर्ष की उम्र में 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़, महाराष्ट्र में हुई. 

गुरु गोबिंद जी का विवाह

10वें सिख गुरु गुरु गोबिंद जी की तीन शादियां हुई थी, उनका पहला विवाह आनंदपुर के पास स्थित बसंतगढ़ में रहने वाले कन्या जीतो के साथ हुआ था. इन दोनों को शादी के बाद जोरावर सिंह, फतेह सिंह और जुझार सिंह नाम की तीन संतान पैदा हुई थी. इसके बाद माता सुंदरी से उनकी दूसरी शादी हुई थी और शादी के बाद इनसे उन्हें अजित सिंह नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी. फिर गुरु गोविंद जी ने माता साहिब से तीसरी शादी की थी, लेकिन इस शादी से उन्हें कोई भी संतान प्राप्त नहीं हुआ था. 

गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रमुख कार्य

गुरु गोबिंद साहब जी ने ही सिखों के नाम के आगे सिंह लगाने की परंपरा शुरू की थी, जो आज भी सिख धर्म के लोगों द्धारा चलाई जा रही है. गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई बड़े सिख गुरुओं के महान उपदेशों को सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित कर इसे पूरा किया था. वाहेगुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही गुरुओं के उत्तराधिकारियों की परंपरा को खत्म किया. सिख धर्म के लोगों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को सबसे पवित्र एवं गुरु का प्रतीक बनाया.

खालसा पंथ की स्थापना

सिख धर्म के 10वें गुरु गोबिंद जी ने साल 1669 में मुगल बादशाहों के खिलाफ विरोध करने के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी. 
सिख साहित्य में गुरु गोबिन्द सिंह जी के महान विचारों द्धारा की गई “चंडी दीवार” नामक साहित्य की रचना खास महत्व रखती है. 
 
गुरु गोबिंद सिंह द्धारा लड़े हुए कुछ प्रमुख युद्ध

सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी ने अ्पने सिख अनुयायियों के साथ मुगलों के खिलाफ कई बड़ी लड़ाईयां लड़ीं. इतिहासकारों की माने तो गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में 14 युद्ध किए, इस दौरान उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ कुछ बहादुर सिख सैनिकों को भी खोना पड़ा, लेकिन गुरु गोविंद जी ने बिना रुके बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी

भंगानी का युद्ध (1688) 
नंदौन का युद्ध (1691)  
गुलेर का युद्ध (1696) 
आनंदपुर का पहला युद्ध (1700) 
निर्मोहगढ़ का युद्ध (1702)  
बसोली का युद्ध (1702)  
चमकौर का युद्ध (1704) 
आनंदपुर का युद्ध (1704)  
सरसा का युद्ध (1704)  
मुक्तसर का युद्ध (1705) 

गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रमुख रचनाएं– 

चंडी दी वार
जाप साहिब
खालसा महिमा
अकाल उस्तत
बचित्र नाटक
जफरनामा

वर्ष 1708 में गुरु गोबिंद सिंह जी की हुई थी मृत्यु

मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके बेटे बहादुर शाह को उत्तराधिकरी बनाया गया था. बहादुर शाह को बादशाह बनाने में गुरु गोबिंद जी ने मदद की थी. इसकी वजह से बहादुर शाह और गुरु गोबिंद जी के बीच काफी अच्छे संबंध बन गए थे. वहीं सरहद के नवाब वजीद खां को गुरु गोविंद सिंह और बहादुर शाह की दोस्ती बिल्कुल पसंद नहीं थी, इसलिए उसने अपने दो पठानो से गुरु गोबिंद जी की हत्या की साजिश रखी और फिर 7 अक्तूबर 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आखिरी सांस ली.

HIGHLIGHTS

  • सिखों के दसवें गुरु थे गुरु गोबिंद सिंह
  • प्रकाश पर्व के रूप में भी जाना जाता है उनकी जयंती
  • वह एक आध्यात्मिक नेता, योद्धा, कवि और दार्शनिक थे
Patna Khalsa panth guru granth sahib पटना Guru Gobind Singh Jayanti 2022 Guru Gobind Singh Jayanti Guru Gobind Singh Jayanti importance गुुरु गोबिंद सिंह खालसा पंथ
Advertisment
Advertisment
Advertisment