Hamari Sansad Sammelan राजनीति में पारिवारिक पृष्ठभूमि होने से चुनौतियां बढ़ती हैं!

Hamari Sansad Sammelan (हमारी संसद सम्मेलन) राजनीतिक वंशजों पर उम्मीदों का बड़ा बोझ होता है. कई मामलों में तो विशाल बरगद के साये तले उगी घास सा अंतर होता है, जिसमें घास से उम्मीद की जाती है कि वह विशाल बरगद की तरह लोगों को छाय़ा उपलब्ध कराएगी.

author-image
Nihar Saxena
एडिट
New Update
Hamari Sansad Sammelan राजनीति में पारिवारिक पृष्ठभूमि होने से चुनौतियां बढ़ती हैं!

सांकेतिक चित्र

Advertisment

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17वीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को निशाना बनाते हुए एक नारा दिया वंशवाद की राजनीति के खात्मे का. कांग्रेस में सिर्फ गांधी परिवार ही नहीं, देश की सपा, रालोद, वायसीआर कांग्रेस समेत कई अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों में न सिर्फ आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है, बल्कि संगठन के तमाम शीर्ष पदों पर परिवार के लोगों का ही कब्जा है. लोकसभा या विधानसभा चुनाव में भी परिवार के लोगों को ही तरजीह देते हैं. यह अलग बात है कि राजनीतिक वंशजों पर उम्मीदों का बड़ा बोझ होता है. कई मामलों में तो विशाल बरगद के साये तले उगी घास सा अंतर होता है, जिसमें घास से उम्मीद की जाती है कि वह विशाल बरगद की तरह लोगों को छाय़ा उपलब्ध कराएगी.

यह भी पढ़ेंः Hamari Sansad Sammelan: मोदी सरकार 2022 तक किसानों से किया वादा पूरा करने की राह पर

राहुल गांधी अपेक्षाओं का भारी बोझ
सबसे बड़ा उदाहरण कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हैं. उनसे पूरी की पूरी कांग्रेस को ढेरों उम्मीदें हैं. इस हद तक कि लगातार दो लोकसभा चुनावों में बद् से बद्तर प्रदर्शन के बावजूद कांग्रेस गैर गांधी परिवार के किसी शख्स को कांग्रेस अध्यक्ष बतौर भी नहीं देख पा रही है. अब तो राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा भी कांग्रेस महासचिव के पद के साथ सक्रिय राजनीति में सक्रिय हो चुकी हैं. इसके पहले उनकी मां सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन हैं. प्रियंका गांधी के आगमन के वक्त उनकी तुलना भूतपूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय राजनीति में लौह महिला करार दी गई इंदिरा गांधी से की गई. यानी उनकी तुलना एक ऐसे शख्स से की गई, जो भारतीय राजनीति में विशाल वट वृक्ष का कद रखता है. यही कारण है कि राहुल गांधी और प्रियंका के समक्ष न सिर्फ कांग्रेस को एक रखने की चुनौती है, बल्कि कांग्रेस के पुराने वैभवकाल को भी लौटाना है.

यह भी पढ़ेंः कैसे पूरा होगा सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का वादा

अखिलेश यादव नाकामी के कारण कठघरे में
एक और उदारहण सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का दिया जा सकता है. उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने के बाद हुए विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद उनके ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग गया है. उन्होंने इस लोकसभा चुनाव में सपा की कट्टर प्रतिद्वंद्वी बसपा से हाथ मिलाया और उसके एवज में कई परंपरागत सीटों से हाथ धो बैठे. अब उनकी राजनीतिक समझ पर गंभीर प्रश्न खड़े हो रहे हैं. यहां तक कि यादव परिवार में विघटन और उसके कारण सपा में हुई टूट के लिए भी उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. देखा जाए तो सपा एक परिवार विशेष की ही पार्टी बन कर रह गई है. संगठन पर परिवार के लोग काबिज हैं, तो चुनावों में भी परिवार के लोगों को वरीयता मिलती है.

यह भी पढ़ेंः Hamari sansad Sammelan: रोजगार से लेकर आतंंकवाद तक, ये होंगी मोदी सरकार की बड़ी चुनौतियां

जगन मोहन, नवीन पटनायक जैसे कुछ अपवाद भी
हालांकि वायसीआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी इस लोकसभा और आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव में घास से एक बड़े पेड़ बनने में सफल रहे हैं. उन्होंने अपने पिता की पार्टी को धमाकेदार जीत दिलाई है. इसी तरह बीजू जनता दल के नवीन पटनायक राजनीतिक विरासत को बाखूबी संभाल रहे हैं. शरद पवार के इसी वंशवाद के कारण राकपा में विरोध और मतभेद के स्वर फूटने लगे हैं. अजित सिंह रालोद को किसी तरह बचाए हुए हैं, अन्यथा वह और उनकी पार्टी अब अप्रासंगिक हो गई है. यही हाल जम्मू कश्मीर की नेशनल कांफ्रेस और पीडीपी का है, वहां भी पीढ़ी दर पीढ़ी से परिवार के सदस्य ही पार्टी अध्यक्ष बनते आ रहे हैं. साथ ही उनके कंधों पर राजनीतिक विरासत को अक्ष्क्षुण रखने का भी भारी दबाव है.

HIGHLIGHTS

  • पार्टी को खड़ा करने वाले दिग्गज से हमेशा तुलना का दबाव.
  • परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप और उसकी सफाई बड़ी चुनौती.
  • कम ही वारिस पार्टी का वैभव बरकरार रखने में सफल.
deepak-chaurasia Ajay Kumar Hamari sansad sammelan Hamari sansad News Nation Sammelan News State Events हमारी संसद सम्मेलन News Conclave Latest Videos Hamari Sansand Videos News State Latest News
Advertisment
Advertisment
Advertisment