Independence Day 2021: जलियांवाला बाग हत्याकांड स्वतंत्रता संग्राम की अविस्मरणीय घटना है. पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को सभा पर अंग्रेजों ने गोली चलाकर निरीह जनाता को मौत के घाट उतार दिया था. बैसाखी पंजाब-हरियाणा का लोकप्रिय त्योहार है. रौलेट एक्ट के विरोध में बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में आयोजित सभा में कुछ नेता भाषण दे रहे थे. शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे.
सभा अभी शुरू ही हुई थी कि ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर अस्त्र-शस्त्र से लैस 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया. जनरल डायर ने सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया. 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं. जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे और 200 से अधिक घायल हुए. घायलों और मरने वालों की संख्या सरकार और कांग्रेस की जांच समिति की रिपोर्टों में अलग-अलग है. अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक छह सप्ताह का बच्चा भी था। अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए.
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इस जघन्य हत्याकांड ने समूचे भारत को हिलाकर रख दिया. यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह जलियावाला बाग हत्याकाण्ड था. कहा जाता है कि उधमसिंह 13अप्रैल 1919 को घटित जालियांवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे. अकारण हुए इस नरसंहार ने उधम सिंह के युवा मन को झकझोर कर रख दिया. उन्होंने इस नरसंहार के दोषी जनरल डायर को सबक सिखाने को ठान ली.
उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में एक सामान्य परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम सरदार तहल सिंह और माता का नाम नारायण कौर था. उधम सिंह जब साल भर के थे तो उनकी मां का निधन हो गया और 1907 में पिता भी चल बसे. अब उधम सिंह और उनके बडे भाई को अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी. उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले.
1917 में उनके बड़े भाई के देहांत होने के बाद वह पूरी तरह अनाथ हो गए. 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए. अब उनके जीवन का लक्ष्य था देश की आजादी और डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने का अवसर.
अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए उधम सिंह ने अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की. सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे. वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीदी. और माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित अवसर का इंतजार करने लगे.
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लंदन में रहते हुए उन्होंने जनरल डायर से संबंधित सूचनाओं को इकट्ठा करने लगे. इसी दौरान उन्हें पता चला कि 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में एक बैठक है. कार्यक्रम में वक्ताओं की सूची में माइकल ओ डायर का भी नाम था. उधम सिंह को अब जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने का मौका मिल गया था. उधम सिंह अपनी रिवॉल्वर को एक मोटी किताब में छिपाकर बैठक स्थल पर पहुंच गए. जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं. दो गोलियां डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई. उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दी. उन पर मुकदमा चला. 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई.
HIGHLIGHTS
- 31 जुलाई 1940 को उधम सिंह को पेंटनविले जेल में दी गई फांसी
- मां-पिता के निधन के बाद अनाथालय में बीता उधम सिंह का बचपन
- माइकल ओ डायर को लंदन में गोली मारकर लिया जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला