भारत की आजादी को 75 साल से ज्यादा वक्त हो चुका है. 15 अगस्त 1947 के दिन देश को अंग्रेजों की गुलामी के आजादी मिली थी, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि देश की आजादी के लिए 15 अगस्त के दिन को ही क्यों चुना गया. इस स्टोरी में हम आपको बताएंगे उस घटनाचक्र की, जिसमें महज कुछ ही सेंकेंड्स में भारत देश के इतिहास की सबसे खास तारीख यानी 15 अगस्त का ऐलान हो गया था. 1947 के साल में दिन था तीन जून का.. वक्त था शाम का और ब्रिटिश भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. ब्रिटिश भारत के इतिहास में किसी भी वायसराय की ये दूसरी और आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी. प्रेस कॉन्फ्रेंस का कमरा पत्रकारों से खचाखच भरा हुआ और करीब 300 पत्रकार शामिल थे. इन पत्रकारों में भारत के अलावा अमेरिका, सोवियसंघ, चीन, जापान और कई यूरोपीय देशों के पत्रकार शामिल थे.
दुनिया भर के पत्रकार इस प्रेस कॉन्फ्रेंस रूम में इसलिए इकट्ठे हुए थे क्योंकि माउंटबेटन भारत के विभाजन और दो नए देशों (भारत और पाकिस्तान) की आजादी का ऐलान करने वाले थे. 40 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले इस देश की आवाम की किस्मत किस तरह बंटने वाली थी इसका जानकारी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी जाने वाली थी. मांउटबेटन बड़ी तफ्सील के साथ भारत के बंटवारे के अपने प्लैन का खुलासा किया और बताया कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों इसके लिए राजी है. बंटवारा किस तरह होगा इससे जुडे़ हर सवाल का जबाव माउंटबेटन ने दिया. माउंटबेटन पूरी तैयारी के साथ आए थे और हर जानकारी उनकी उनकी फिंगर टिप्स पर थी. लेकिन अंत में एक भारतीय पत्रकार ने एक ऐसा सवाल दागा जिसका जवाब माउंटबेटन को नहीं पता था. सवाल था कि जब माउंटबेटन ने भारत के विभाजन या दोनों देशों की आजादी का सारा प्लैन तैयार कर लिया है तो उनके दिमाग इसकी कोई तारीख भी होगी? माउंटबेटन ने जवाब दिया हां, मैंने पावर ट्रांसफर की तारीख तय कर ली है. उस वक्त तक बंटवारे पर सहमति ही बनी थी आजादी की कोई तारीख तय नहीं की गई थी. पत्रकार ने पूछा- अगर तारीख तय हो चुकी है तो वो तरीख क्या है?
इस सवाल पर उस पीसी रूम में सन्नाटा छा गया. वहां मौजूद हर शख्स की निगाहें माउंटबेटन पर टिक गईं. कुछ सैकेंड्स तक उन्होंने उस पीसी रूम की ओर देखा..उनके दिमाग में कई तरह की केलकुलेशन चल रही थीं. सितंबर का पहला सप्ताह, सितंबर की दूसरा सप्ताह , मिड अगस्त और उन्होंने जवाब दिया भारत को पावर का फाइनल ट्रांसफर 15 अगस्त 1947 को किया जाएगा.भारत की आजादी की तारीख का ऐलान हो चुका था. इतिहासकार दैमनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस की एक बड़ी मशहूर किताब है फ्रीडम एट मिडनाइट. इस किताब में लॉर्ड माउंटबेटन के हवाले से बताया गया है कि आखिरकार उन्होंने कुछ ही सेकेंड्स में भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त की तारीख का ऐलान कैसे कर दिया.
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..तो इसलिए 15 अगस्त की तारीख हुई फाइनल
दरअसल भारत का वायसराय बनने से पहले माउंटबेटन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मित्र देशों की फौजों के कमांडर थे और एशिया में जापान के खिलाफ चल रही जंग में शामिल थे. अप्रैल 1945 जर्मनी की हार के बाद ये जंग यूरोप में तो खत्म हो चुकी थी लेकिन एशिय़ा मे जापान ने हार मानने में कुछ ज्यादा वक्त ले लिया था और जापान जिस तारीख को सरेंडर किया था वो थी 15 अगस्त 1945. ये माउंटबेटन के जीवन का सबसे गौरवशाली दिन था जब उनकी कमांड में मित्र देशों की फौज के आगे जापानी फौजियों ने बर्मा के जंगलों में सरेंडर किया था.
इस किताब के लेखकों को माउंटबेटन ने बताया कि 15 अगस्त के दिन जल्द ही जापान के सरेंडर की दूसरी एनिवर्सिरी आने वाली थी और उन्हें लगा कि इसी दिन एशिया में एक नए राष्ट्र का उदय होना चाहिए और उन्होंने 15 अगस्त को भारत के इतिहास की सबसे अहम तारीख बना दिया.माउंटबेटन ने बताया कि वो जानते थे इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद महज 73 दिनों की भीतर भारत की आजादी की प्रक्रिया को पूरा करना कितना चुनौतीपूर्ण काम होगा, लेकिन वो इस जिम्मेदारी को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते थे. उनके इस ऐलान ने मानो एक बम गिरा दिया. ब्रिटेन की संसद से लेकर बंकिंघम पैलेस तक लोगों को यकीन नहीं हो पा रहा था कि माउंटबेटन इतनी जल्दबाजी में क्यों हैं. दरअसल दूसरे विश्वयुद्ध के बाद एक महाशक्ति के तौर पर ब्रिटेन और फ्रांस का रुतबा खत्म हो गया था और अमेरिका और सोवियत संघ दुनिया की नई सुपर पावर बन गए थे. ब्रिटेन के पास अपने एंपायर को बचाए रखने की ताकत नहीं बची थी और उसपर अपने उपनिवेशों को आजाद करने का दबाव बढ़ रहा था.
मुसलमानों के लिए एक अलग मुल्क की हो रही थी मांग
20 फरवरी, 1947 को लेबर पार्टी की सरकार के पीएम क्लेमेंट एटली ने ब्रिटश पार्लियामेंट में ऐलान किया कि भारत को 30 जून, 1948 से पहले आजाद कर दिया जाएगा. यानी माउंटबेटन के पास भारत की आजादी की तारीख तय करने के लिए 30 जून, 1948 तक का वक्त था लेकिन उन्होंने उससे पहले ही अंग्रेजों के भारत छोड़ने का एलान कर दिया. 1946 और 1947 के ये वो साल थे जब भारत में सांप्रदायिक तनावन अपने चरम पर था. देश के भीतर जिन्ना की पार्टी मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए एक अलग मुल्क यानी पाकिस्कतान की मांग जोर-शोर से उठा रही थी और 1946 में उनके डायरेक्ट एक्शन के कॉल ने देश में जबरदस्त सांप्रदायिक दंगे करा दिए थे. भारत के विभाजन को टालने के लिए 1946 बनाया गया कैबिनेट मिशन नाकाम हो चुका था और जिन्ना को किसी भाी हाल में पाकिस्तान चाहिए था.
अशुभ दिन हुआ था देश आजाद
भारत में हिंदू और मुसलमानों के बीच लगातार बढ़ रहे तनाव के बाद ब्रिटिश हुकूमत को ये अहसास हो गया था कि इस मुल्क में शांति के साथ कोई समाधान खोजना बेहद मुश्किल काम है और ब्रिटिश हुक्मरांन भारत में होने वाली हिंसा की नैतिक जिम्मेदारी से बचाना चाहते थे लिहाजा माउंटबेटन को जल्द से जल्द भारत से अंग्रेजों की विदाई का रास्ता सुनिश्चित करने के मैंडेट के साथ अंतिम वायसराय बना कर भेजा गया था. और मांउटबेटन ने काफी मेहनत और चतुराई के साथ मुस्लिम लीग, कांग्रेस और सिखों की लीडरशिप को भारत के विभाजन के उनके फॉर्मूले पर राजी कर लिया था और 15 अगस्त की तारीख तय करके उन्होंने करीब 200 साल के ब्रिटिश राज की विदाई पर अंतिम मोहर लगा दी. बहरहाल, भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त की तारीख का ऐलान होते ही एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई. भारत के कई नामी गिरामी ज्योतिषियों के मुताबिक भारत देश के जन्म के लिए ये एक बेहद ही अशुभ तारीख थी.
काशी के विद्वान पंडितों ने ऐलान किया का इस अशुभ दिन आजाद होने की बजाय बेहतर होगा कि भारत एक दिन और ब्रिटिश राज की गुलामी सहन कर लें. फ्रीडम एट मिडनाइट किताब के मुताबिक कलकत्ता के स्वामी मदनानंद ने अपनी ज्योतिष गणनाओं के आधार पर माउंटबेटन को चिट्ठी लिखकर आगाह किया कि अगर भारत 15 अगस्त को आजाद हुआ तो देश में अकाल, बाढ़ और महामारी फैल जाएगी और इसके लिए 15 अगस्त की अशुभ तारीख ही जिम्मेदार होगी. बहरहाल माउंटबेटन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा देश की आजादी की तारीख 15 अगस्त ही रही.
इसलिए अलग-अलग दिन आजाद हुए थे दोनों मुल्क
आपके मन में एक सवाल और आ सकता है कि जब जब भारत अपनी आजादी की वर्षगांठ 15 अगस्त के दिन मनाता है तो पाकिस्तान की आजादी की सालगिरह 14 को क्यों मनाई जाती है. भारत और पाकिस्तान दोनों की आजादी के सबसे अहम दस्तावेज इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट में भी इस अहम मौके की तारीख 15 अगस्त 1947 ही दर्ज है. 1948 तक को पाकिस्तान के लिए भी उसकी आजादी का दिन 15 अगस्त ही रहा और इसी तारीख को पोस्टल स्टैंप भी जारी किए गए. दरअसल, दोनों देशों को पावर ट्रांसफर की सेरेमनी अलग-अलग शहरों में होनी थी. भारत की दिल्ली में और पाकिस्तान की सेरेमनी कराची में. माउंटबेटन 14 और 15 अगस्त की दरमियानी रात को एक ही वक्त में दोनों जगह मौजूद नहीं रह सकते थे, लिहाजा उन्होंने एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को कराची पहुंचकर जिन्ना का पाकिस्तान उनके हवाले कर दिया. हालांकि पाकिस्तान की संविधान सभा में 14 अगस्त को दी गई अपनी स्पीच में माउंटबेटन ने साफ-साफ कहा था कि कल यानी 15 अगस्त को पाकिस्तान की आजाद सरकार के हाथ में पावर आ जाएगी, लेकिन कहा जाता है कि पाकिस्तान के कुछ लीडर्स भारत की आजादी के दिन से एक दिन पहले अपनी आजादी का दिन मनाना चाहते थे. जून 1948 में पाकिस्तान के पहले पीएम लियाकत अली की अध्यक्षता में पाकिस्तान सरकार की कैबिनेट मीटिंग मेें आजादी की तारीख को एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को शिफ्ट करने का फैसला कर दिया गया.
वरिष्ठ पत्रकार सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau