भीमा कोरेगांव मामले की बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस सारंग कोतवाल ने रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय की क्लासिक की श्रेणी में आने वाली किताब 'वॉर एंड पीस' का जिक्र किया. आरोपी वेरनॉन गोंजाल्विस की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि आपके घर में ये किताब क्यों थी? इस पर साहित्य जगत में हंगामा सा मच गया. इस पर बाद में सफाई आई कि जज साहब ने जिस किताब का जिक्र किया था वह लियो टॉल्सटॉय की 'वॉर एंड पीस' नहीं बल्कि विश्वजीत रॉय कि किताब 'वॉर एंड पीस इन जंगलमहल' है. माओवाद पर आधारित यह किताब प्रतिबंधित है. यह कोई पहली किताब नहीं है, जिसे भारत में प्रतिबंध का सामना करना पड़ा.
'रंगीला रसूल' से 1924 में शुरू हुआ प्रतिबंधों का सिलसिला
सच तो यह है कि भारत में प्रतिबंधित किताबों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय सलमान रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज' है, लेकिन किताबों पर प्रतिबंध लगाने का सिलसिला गुलाम भारत में शुरू हुआ था. सन् 1924 में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक हिंसा के दौर के बीच लाहौर से शुरुआती समय में अनाम लेखक की किताब 'रंगीला रसूल' प्रकाशित हुई. इसमें मोहम्मद साहब और एक औरत के परस्पर संबंधों का कथानक था. माना गया कि सीता को वैश्या बताते पंफलेट के वितरण के बाद इस किताब का प्रतिक्रिया के तौर पर प्रकाशन किया गया. इस किताब के प्रकाशक महाशय राजपाल को वैमनस्यता फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और बाद में रिहा कर दिया गया. हालांकि धार्मिक तौर इस अपमान का बदला लेने के लिए इल्मुद्दीन नाम के मुसलमान युवक ने महाशय राजपाल की हत्या कर दी. हत्या के आरोपी का मुकदमा कालांतर में पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा था. एक नजर डालते हैं कुछ चर्चित प्रतिबंधित किताबों पर.
यह भी पढ़ेंः अगर भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे पर Nuclear Attack करते हैं तो क्या होगा?
द ग्रेट सोल
पुलित्जर अवॉर्ड विजेता और न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादक रहे जोसेफ लेलिवेल्ड की किताब 'द ग्रेट सोल' प्रतिबंधित है. 'द ग्रेट सोल' में महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका में बिताए दिनों की कहानी है. दावा किया जाता है कि इस किताब में महात्मा गांधी के सेक्सुएल लाइफ पर कुछ सनसनीखेज खुलासा किया गया है. किताब में धर्म को लेकर बापू के विचारों को लेकर भी आपत्ति जताई गई थी. इस किताब को पहले गुजरात में बैन किया गया. कस्टम डिपार्टमेंट इस किताब को भारत लाने नहीं देता.
नाइन ऑवर्स टू रामा
नाइन ऑवर्स टू रामा को मशहूर इतिहासकार और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वोलपर्ट ने लिखा है. इस किताब में बापू के अंतिम दिन को काल्पनिक तरीके से लिखा गया है. किताब में बताया गया है कि किस तरह से नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रची थी. कहा जाता है कि इस किताब को इसलिए बैन किया गया क्योंकि इससे बापू के लिए खराब सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम का खुलासा होता था.
यह भी पढ़ेंः स्वामी चिन्मयानंद से 5 करोड़ रुपये मांग रही थी छात्रा, UP के DGP ने कहा
जिन्ना इंडिया पार्टिशन इंडिपेंडेंस
भारत पाकिस्तान के बंटवारे में मोहम्मद अली जिन्ना की भूमिका को लेकर ये किताब लिखी गई है. इसमें जिन्ना को बंटवारे का जिम्मेदार खलनायक के तौर पर पेश किया गया है. पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने 2009 में जिन्ना और भारत बंटवारे में उनकी भूमिका को लेकर लंबे लेख लिखे. जिन्ना को लेकर भारत में जैसी धारणा है, जसवंत सिंह ने उसके उलट जिन्ना को ज्यादा पॉजिटिव तरीके से प्रस्तुत किया. विवाद बढ़ने पर किताब को गुजरात में बैन कर दिया गया. हालांकि बाद में कोर्ट के आदेश पर बैन हटा लिया गया.
द प्राइस ऑफ पावर
इस किताब में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के साथ रिश्तों को लेकर सनसनीखेज खुलासा किया गया था. मोरराजी देसाई ने अपने ऊपर लगे आरोपों को मनगढंत और बेसिरपैर का बताया था. उन्होंने अमेरिका में इसके खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दायर किया था. हालांकि वो केस हार गए थे. भारत सरकार ने इस किताब पर कुछ वक्त के लिए पाबंदी लगाई थी.
यह भी पढ़ेंः भारत के नाम पर पाकिस्तान सेना काट रही मौज, 'नया पाकिस्तान' पर 6 लाख करोड़ का कर्ज
नेहरू: अ पॉलिटिकल बायोग्राफी
जवाहरलाल नेहरू पर लिखी इस किताब में उनकी राजनीतिक अक्षमता को लेकर सवाल उठाए गए हैं. नेहरू की नेतृत्व पर सवाल उठाने की वजह से इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने इस किताब पर बैन लगा दिया था. हालांकि अब ये किताब भारत में उपलब्ध है.
इसके अलावा धर्म को लेकर किए गए विवादित टिप्पणियों की वजह से भारत में कई किताबें बैन हुई हैं. इनमें 'द हिंदूजः एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री', सलमान रुश्दी की 'द सैटनिक वर्सेज', तसलीमा नसरीन की 'लज्जा', अब्रे मेनेन की लिखी किताब 'रामायणा' जैसी किताबें शामिल हैं. अश्लीलता की वजह से 'लेडी चैटर्ली लवर' को भी बैन किया गया था लेकिन अब ये किताब आसानी से मिल जाती है.
कब होती हैं किताबें प्रतिबंधित
कानून के तहत जिन किताबों से राष्ट्रीय एकता और अखंडता को खतरा पैदा होता है या किसी धर्म विशेष की भावनाएं आहत होती हैं, उन किताबों को सरकार प्रतिबंधित कर सकती है. सरकार कुछ अन्य कारणों से भी किसी किताब को प्रतिबंधित कर सकती हैं. मसलन हिंसा भड़काने वाली, जातीय भेदभाव को बढ़ावा देने वाली, कानून व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करने वाली और सरकार के खिलाफ विद्रोह को उकसाने वाली किताबों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. प्रतिबंधित किताबों को अपने पास रखना, बेचना या किसी को देना भी अपराध है. अश्लील किताबों को लेकर भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 292 में ऐसी किताबें रखने पर दो साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. सीआरपीसी की धारा 95 के तहत पुलिस के पास प्रतिबंधित किताबों को जब्त करने का भी अधिकार है. कानून के जानकार बताते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में ही किताब लिखना और बांटना भी आता है. इस अधिकार पर तभी अंकुश लगाया जा सकता है, जब कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने का अंदेशा होता हो. कानूनन किसी के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए कोई किताब या लेख नहीं लिखा जा सकता है. ऐसी स्थिति में भी आपत्ति दर्ज करवाने पर किताबें प्रतिबंधित हो सकती हैं.
HIGHLIGHTS
- 1924 में रंगीला रसूल पहली किताब थी, जिसे किया गया था प्रतिबंधित.
- आजाद भारत में सलमान रुश्दी की द सैटेनिक वर्सेज लोकप्रिय बैन किताब है.
- प्रतिबंधित किताब रखने पर हो सकती है दो साल की सजा और जुर्माना.