अलीगढ़ मु्स्लिम यूनिवर्सिटी और भारतीय जनता पार्टी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एएमयू के स्थापना दिवस के शताब्दी समारोह में भागीदारी ने राजनीति को तेज कर दिया है. एएमयू से जुड़ा कट्टरपंथी धड़ा इसको लेकर मुखर है और हर तरीके से पीएम मोदी की भागीदारी का विरोध कर रहा है. स्थिति तो यहां तक आ गई कि ये तत्व सोशल मीडिया पर एएमयू के वाइस चांसलर तारिक मंसूर को 'सरकारी मुसलमान' करार देने से भी नहीं चूके. हालांकि बीजपी के लिए यह मौका राजनीतिक पेंच को और धुमावदार बनाने वाला है. खासकर यह देखते हुए दुनिया भर में चर्चा के केंद्र बनी जामिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हुई कथित पुलिस हिंसा पर वहां के वाइस चांसलर ने एफआईआर दर्ज कराने से इंकार कर दिया है. इससे कट्टरपंथियों में भारी बेचैनी है और वह एएमयू के बहाने एक बार फिर 'मुसलमानों के खून के छींटों' को आधार बनाकर नरेंद्र मोदी पर हमलावर हैं. यह तब है जब यूनिवर्सिटी वाइस चांसलर तारिक मंसूर सभी से शताब्दी कार्यक्रम को राजनीति से ऊपर रखने की अपील कर चुके हैं. यह अलग बात है कि बीते 55 सालों में पहली बार कोई प्रदानमंत्री एएमयू के किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेगा. बीजेपी इस मौके को 'सबका साथ सबका विश्वास औऱ सबका विकास' नारे को साकार बताने की पृष्ठभूमि तैयार कर रही है.
CAA विरोध पर हुआ था भयंकर बवाल
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यूं तो बीजेपी विरोध का गढ़ रही है. यह अलग बात हैं कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध उसे हिंदुत्वादी ताकतों के समक्ष ले आया. एएमयू के छात्र नेताओं ने नागरिकता संशोधन कानून को 'काला कानून' बता जमकर विरोध किया. इसके लिए पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की तीखी आलोचना की थी. यहां तक कि सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान छात्रों ने पीएम मोदी समेत केंद्र सरकार के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग कर खूब जमकर हंगामा किया. नतीजतन स्थिति अनियंत्रित हो गई और पुलिस को बल प्रयोग कर अराजक छात्रों को बताना पड़ा कि देश में क़ानून व्यवस्था भी कोई चीज होती है.
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बीजेपी झंडा विवाद
बात एएमयू के मोदी-बीजेपी विरोधियों की है तो अलीगढ़ के भाजपा विधायक सतीश गौतम का जिक्र आना भी जरूरी हो जाता है. सतीश गौतम यूनिवर्सिटी कैंपस और छात्रों को नीचा दिखाने से पीछे नहीं हटते. बरौली से भाजपा विधायक ठा. दलवीर सिंह के पौत्र की स्कार्पियो में लगा भाजपा का झंडा उतरवाने के मामले को सतीश गौतम ने दमकर तूल दिया था. एएमयू की प्राक्टोरियल टीम के खिलाफ बकायदा एफआईआर तक हो गई थी. इस एफआईआर को रद्द करने के लिए एएमयू के प्रोफेसर और छात्रों ने हाईकोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां से भी उन्हें नाउम्मीद ही होना पड़ा. हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था. सीएए आंदोलन पर आम लोगों की सोशल मीडिया पर लानत मलानतें झेल रहे एएमयू के छात्रों के लिए यह दूसरा बड़ा झटका था.
जिन्ना पोट्रेट विवाद में एएमयू की किरकिरी
हालिया दौर में इसके पहले जिन्ना पोट्रेट विवाद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पहले ही खूब किरकिरी करा चुकी थी. दो साल पहले पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का एक चित्र, जो विश्वविद्यालय के छात्र संघ हॉल में लटका हुआ था, विवाद का विषय बन गया था. यह विवाद स्थानीय विधायक के एक पत्र से शुरू हुआ था. अलीगढ़ के भाजपा विधायक सतीश गौतम ने एएणयू कुलपति को पत्र लिखकर पूछा था कि जिन्ना का चित्र लगाने की अनुमति क्यों दी गई? इस पर एएमयू के प्रवक्ता शफी किदवई ने जवाब दिया था कि जिन्ना विश्वविद्यालय के संस्थापक थे और उन्हें आजीवन छात्र संघ की सदस्यता दी गई थी. इस पर हिंदूवादी छात्रों ने सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यऩात को पत्र लिखकर जिन्ना का पोट्रेट हटा वीर सावरकर का पोट्रेट लगाने की मांग की थी. एएमयू के छात्र मन्नान वानी के आतंकी निकलने पर तो जिन्ना विवाद और गहरा गया था.
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कांग्रेस ने दिया जिन्ना विवाद के 'नायक' मशकूर को टिकट
दो साल पहले सामने आए जिन्ना विवाद को बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान खूब हवा मिली. कांग्रेस ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष मशकूर अहमद उस्मानी को टिकट दिया. उस्मानी, एएमयू में जिन्ना की तस्वीर को लेकर हुए विवाद के दौरान सुर्खियों में आए थे. दरभंगा की जाले विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार बनाए जाने पर बीजेपी ने कांग्रेस पर तीखे हमले बोले थे. बीजेपी का कहना था कांग्रेस को देश की एकता-अखंडता से कोई मतलब नहीं रहा. जिस जिन्ना के कारण देश का विभाजन हुआ उसका महिमांडन करने वाले शख्स को टिकट देकर कांग्रेस का असली चेहरा उजागर हो गया है. तब यह बात भी सामने आई थी कि उस्मानी ने जेडीयू से भी टिकट की प्राप्त करने की कोशिश की थी. हालांकि सत्ताधारी पार्टी की ओर से टिकट नहीं मिला. उलटे जेडीयू ने भी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस को घेरा.
लाल बहादुर शास्त्री हुए थे 55 साल पहले एएमयू कार्यक्रम में शामिल
गौरतलब है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना दिवस के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर मुख्य अतिथि शामिल हो रहे हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के 55 साल में ये पहला मौका है, जब कोई प्रधानमंत्री विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. कोरोना संक्रमण के कारण 22 दिसंबर को होने वाला यह शताब्दी समारोह वर्चुअल तरीके से आयोजित किया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले 55 वर्ष पूर्व 1964 में लाल बहादुर शास्त्री, प्रधानमंत्री रहते हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में शामिल हुए थे. यह शताब्दी समारोह 22 दिसंबर को आयोजित होगा. 1875 में सर सैयद अहमद ने मुहम्मद एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज को स्थापित किया था. एक दिसंबर 1920 को यह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में तब्दील हुआ. 17 दिसंबर 1920 को विश्वविद्यालय के रूप में उद्घाटन हुआ था.
राजनीति से ऊपर रखने की अपील बेअसर
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' भी शिरकत करेंगे. इसके अलावा विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों, प्रोफेसर्स एवं कर्मचारियों सहित कई शिक्षाविदों को भी शताब्दी समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा है कि प्रधानमंत्री की उपस्थिति से देश और दुनिया में फैले एएमयू समुदाय को एक महत्वपूर्ण संदेश मिलेगा. समारोह में भाग लेने के लिए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सहित विभिन्न प्रमुख हस्तियों को भी आमंत्रित किया गया है. विश्वविद्यालय के समुदाय, कर्मचारियों, सदस्यों, छात्रों और पूर्व छात्रों से आगामी कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी की अपील की गई है.