जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) से अनुच्छेद 370 हटने के बाद परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद राजनीतिक लिहाज से सूबे में एक नई सुबह दस्तक दे रही है. परिसीमन (Delimitation) आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है. अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 7 सीटें बढ़ जाएंगी और कुल 90 सीटें हो सकती है. परिसीमन रिपोर्ट के बाद केंद्र शासित प्रदेश में निकट भविष्य में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) का रास्ता साफ हो गया है. परिसीमन रिपोर्ट के लागू होने पर विधानसभा सीटें बढ़ने के साथ ही जम्मू-कश्मीर की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का प्रभाव और बढ़ जाएगा. रिपोर्ट में विस्थापित कश्मीरी पंडितों और सुरक्षित सीटों की भी सिफारिश की गई है. मोदी सरकार के वादे के मुताबिक केंद्रशासित राज्य को जल्द ही विधानसभा मिलेगी, जल्द ही चुनाव भी होंगे और जल्द ही राज्य में निर्वाचित सरकार होगी.
1955 में हुआ था आखिरी बार परिसीमन
परिसीमन आयोग की फाइनल रिपोर्ट के मुताबिक विधानसभा की 7 सीटें बढ़ेंगी. पहली बार विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए भी 2 सीटें नॉमिनेटेड होंगी. साथ ही पहली बार 9 सीटें शेड्यूल्ड ट्राइब्स यानी एसटी के लिए रिजर्व होंगी. इसके साथ ही कुछ विधानसभा सीटों के नाम भी बदल दिए जाएंगे. यही परिसीमन होता है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'सीमा का निर्धारण'. इसका उद्देश्य जनसंख्या के आधार पर चुनाव क्षेत्रों का सही विभाजन करना होता है. जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 1995 में परिसीमन हुआ था. तब सूबे में कुल 12 जिले और 58 तहसीलें थीं, जबकि आज जिलों की संख्या बढ़कर 20 और तहसीलों की संख्या 270 हो चुकी है.
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5 संसदीय सीटें होंगी
मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 90 विधानसभा सीटें और पांच संसदीय सीटें होंगी. विधानसभा सीटों में से 43 जम्मू क्षेत्र में और 47 सीटें कश्मीर घाटी में होंगी. 90 विधानसभा सीटों में से सात सीटें अनुसूचित जाति और नौ सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होंगी. पांच संसदीय सीटें होंगी- बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग-रजौरी, उधमपुर और जम्मू. यह अलग बात है कि जम्मू-कश्मीर की कुछ पार्टियां परिसीमन आयोग की फाइनल रिपोर्ट का विरोध कर रही हैं. उन्होंने आयोग की सिफ़ारिशों को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने इसे राज्य के लोगों को शक्तिहीन करने की कोशिश और संविधान का उल्लंघन करार दिया है.
2020 में गठित हुआ था परिसीमन आयोग
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में विधानसभा सीटें बढ़ाने के बाद परिसीमन ज़रूरी हो गया था. इससे पहले जम्मू-कश्मीर में 111 सीटें थीं यानी 46 कश्मीर में, 37 जम्मू में और चार लद्दाख में. इसके अलावा 24 सीटें पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (पीएके) में थीं. जब लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया तब यहां सिर्फ़ 107 सीटें रह गईं. पुनर्गठन अधिनियम में इन सीटों को बढ़ाकर 114 कर दिया गया है. इनमें 90 सीटें जम्मू-कश्मीर के लिए और 24 पीएके के लिए हैं. परिसीमन आयोग का गठन 6 मार्च 2020 को किया गया. सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले इस आयोग में देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्र और देश के उप चुनाव आयुक्त चंद्र भूषण कुमार सदस्य हैं.
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परिसीमन पर इसलिए है विवाद
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन पर विपक्ष का बड़ा आरोप यह है कि सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर में परिसीमन किया जा रहा है, जबकि पूरे देश के लिए यह 2026 तक स्थगित है. 2019 में धारा 370 हटने से पहले केंद्र सरकार राज्य की संसदीय सीटों का परिसीमन करती थी और राज्य सरकार विधानसभा सीटों का परिसीमन करती थी, लेकिन अब जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद दोनों ही ज़िम्मेदारियां केंद्र सरकार के पास हैं. जम्मू-कश्मीर में आख़िरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था. इसके बाद राज्य सरकार ने इसे 2026 के लिए स्थगित कर दिया था. इसे जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई लेकिन दोनों ने स्थगन को बरकरार रखा. जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि परिसीमन पुनर्गठन अधिनियम के तहत किया जाता है जो कि अभी विचाराधीन है.
विधानसभा सीटों में बदलाव से बदले समीकरण
परिसीमन आयोग की सिफारिशों से इन बदलावों के बाद जम्मू की 44 फीसदी आबादी 48 फीसदी सीटों पर मतदान करेगी, जबकि कश्मीर में रहने वाले 56 फीसद लोग बची हुईं 52 फीसद सीटों पर मतदान करेंगे. पहले की व्यवस्था में कश्मीर के 56 प्रतिशत लोग 55.4 प्रतिशत सीटों पर और जम्मू के 43.8 प्रतिशत में 44.5 प्रतिशत सीटों पर मतदान करते थे. अब नए परिसीमन के तहत जम्मू की छह नई सीटों में से चार हिंदू बहुल हैं. चिनाब क्षेत्र की दो नई सीटों में, जिसमें डोडा और किश्तवाड़ ज़िले शामिल हैं, पाडर सीट पर मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं. कश्मीर में एक नई सीट पीपल्स कॉन्फ्रेंस के गढ़ कुपवाड़ा में है, जिसे बीजेपी के क़रीबी के तौर पर देखा जाता है. कश्मीरी पंडितों और पीएके से विस्थापित लोगों के लिए सीटों के आरक्षण से भी भाजपा को मदद मिलेगी.
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एक नजर में परिसीमन आयोग की सिफारिशें
- राज्य में 7 विधानसभा सीटें बढ़ी. अब 83 के बजाय 90 सीटें
- जम्मू की 6 सीटें बढ़ेंगी. एक सीट कश्मीर में. जम्मू की सीटें 37 से बढ़कर 43 हो जाएंगी. कश्मीर की सीटें 46 से बढ़कर 47 हो जाएंगी. दोनों डिवीजनों में सीटों का अंतर अब 9 से घटकर 4 रह जाएगा
- स्थानीय प्रतिनिधियों के मांग के अनुरूप 13 विधानसभा सीटों के नाम बदलेंगे. इनमें से सात सीटें जम्मू डिवीजन की हैं जबकि 6 सीटें कश्मीर की
- श्रीनगर जिले की सोनवार विधानसभा सीट अब लाल चौक सीट कहलाएगी, जूनिमार सीट को जैडीबल नाम से जाना जाएगा, तंगमार्ग अब गुलमर्ग विधानसभा सीट के नाम से जानी जाएगी
- आयोग के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 5 लोकसभा सीटें होंगी, बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग-राजौरी, ऊधमपुर और जम्मू
- हर लोकसभा सीट के तहत बराबर-बराबर विधानसभा सीटें आएंगी यानी 18-18
- पहले भी 5 लोकसभा सीटें थीं जिनमें 3 कश्मीर क्षेत्र में और 2 जम्मू क्षेत्र में थीं. अब दोनों इलाकों में एक तरह से ढाई-ढाई सीटों का बंटवारा होगा. इसके लिए अनंतनाग-रजौरी लोकसभा सीट में पहली बार 7 विधानसभा सीटें जम्मू डिवीजन की रखी गईं हैं जो रजौरी और पुंछ जिले की हैं. अनंतनाग-रजौरी लोकसभा क्षेत्र में 11 विधानसभा सीटें कश्मीर डिवीजन की होंगी जो अनंतनाग, कुलगाम और शोपियां जिले में स्थित होंगी
- विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए 2 सीटें नामांकित करने की सिफारिश. इसमें से एक महिला होगी, इन्हें वोटिंग का भी अधिकार होगा जैसे पुडुचेरी विधानसभा के नामित सदस्यों को होता है
- परिसीमन आयोग ने पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर यानी पीओजेके से विस्थापित लोगों को भी प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश की है. आयोग ने कहा है कि केंद्र पीओजेके से विस्थापित लोगों के लिए एक नॉमिनेटेड सीट पर विचार कर सकता है
- अनुसूचित जाति यानी शेड्यूल्ड कास्ट के लिए 7 सीटें आरक्षित
- पहली बार राज्य में एसटी के लिए 9 सीटें आरक्षित. 6 जम्मू क्षेत्र में और 3 कश्मीर में
- पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) के लिए आरक्षित 24 सीटें पहले की तरह खाली रहेंगी. तकनीकी तौर पर विधानसभा की कुल सीटें 90 नहीं, बल्कि 114 रहेंगी
HIGHLIGHTS
- जम्मू-कश्मीर में आख़िरी बार 1995 में परिसीमन हुआ था
- परिसीमन आयोग का गठन 6 मार्च 2020 को किया गया
- पहली बार राज्य में एसटी के लिए 9 सीटें आरक्षित की गईं