Advertisment

ज्योतिरादित्य सिंधिया 53 साल बाद सपना साकार कर रहे दादी विजया राजे का !

जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में रहीं राजमाता के नाम से मशहूर विजयाराजे सिंधिया चाहती थीं कि उनका पूरा परिवार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में लौट आए. अब ज्‍योतिरादित्‍य उनके इस सपने को साकार करते नजर आ रहे हैं.

author-image
Nihar Saxena
New Update
भाजपा नेता विजयाराजे सिंधिया

विजय राजे सिंधिया का सपना पूरा होगा 53 साल बाद.( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

Advertisment

15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने तक ग्वालियर (Gwalior) रियासत पर सिंधिया राजघराने का शासन था. राज्य की बागडोर महाराजा जिवाजीराव सिंधिया के कंधों पर थी. आजादी के कुछ समय बाद ग्वालियर रियासत का भी भारत में विलय हो गया. इसके बाद जिवाजी राव को भारत सरकार ने नए राज्य मध्य भारत का राज्य प्रमुख बनाया. वह इस राज्य के 1956 में मध्य प्रदेश (MP) में विलय किए जाने तक इसी पोजिशन पर रहे. 1961 में जिवाजी राव के निधन के बाद राजमाता विजया राजे सिंधिया (Vijaya Raje Scindia) ने सिंधिया राजघराने की बागडोर संभाली. वह तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के कहने पर कांग्रेस में शामिल हुईं, लेकिन कुछ सालों बाद 1967 के चुनावों में ऐसी बातें हुईं, जब उनका कांग्रेस से मोहभंग होने लगा. अब मध्य प्रदेश की राजनीति के 'महाराज' यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) कांग्रेस पार्टी से बगावत कर अपनी दादी विजयाराजे सिंधिया के 'सपने' को साकार कर देंगे और बीजेपी में शामिल होंगे. जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में रहीं राजमाता के नाम से मशहूर विजयाराजे सिंधिया चाहती थीं कि उनका पूरा परिवार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में लौट आए. अब ज्‍योतिरादित्‍य उनके इस सपने को साकार करते नजर आ रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः मध्यप्रदेश दोहरा रहा इतिहास, सिंधिया परिवार के कारण दूसरी बार जा रही कांग्रेस सरकार!

विजया राजे का राजनीतिक सफर
ग्वालियर पर राज करने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की. वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं. सिर्फ 10 साल में ही उनका मोहभंग हो गया और 1967 में वह जनसंघ में चली गईं. विजयाराजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ यहां की तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा. खुद विजयाराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने.

यह भी पढ़ेंः मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने मानी हार, इस नंबर गेम के लिहाज से बीजेपी की सरकार बनना तय

माधवराव सिंधिया चले अलग राह
गुना पर सिंधिया परिवार का कब्जा लंबे समय तक रहा. माधवराव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद चुने गए थे, लेकिन वह बहुत दिन तक जनसंघ में नहीं रुके. 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयाराजे सिंधिया से अलग हो गए. 1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर केंद्रीय मंत्री भी बने.

यह भी पढ़ेंः सिंधिया को कांग्रेस छोड़ने के लिए मनाने में बड़ौदा राजघराने की भूमिका ! जानें पर्दे के पीछे का खेल

वसुंधरा राजे सिंधिया ने बीजेपी में जमाया सिक्का
दूसरी तरफ विजयाराजे सिंधिया की बेटियों वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया ने भी राजनीति में सक्रिय हुईं. 1984 में वसुंधरा राजे बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं. वह कई बार राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं. उनके बेटे दुष्यंत भी बीजेपी से ही राजस्थान की झालवाड़ सीट से सांसद हैं.

यह भी पढ़ेंः MP Political Crisis Live: होली समारोह के बीच मध्य प्रदेश में बिछ रही शह और मात की बिसात

बीजेपी सरकार में मंत्री रहीं यशोधरा राजे सिंधिया
वसुंधरा राजे सिंधिया की बहन यशोधरा 1977 में अमेरिका चली गईं. उनके तीन बच्चे हैं लेकिन राजनीति में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. 1994 में जब यशोधरा भारत लौटीं तो उन्होंने मां की इच्छा के मुताबिक, बीजेपी में शामिल हो गईं और 1998 में बीजेपी के ही टिकट पर चुनाव लड़ा. पांच बार विधायक रह चुकी यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री भी रही हैं.

यह भी पढ़ेंः ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पीएम मोदी से मुलाकात के बाद सोनिया गांधी को इस्तीफा दे कांग्रेस छोड़ी

'महाराज' ने संभाले रखी पिता की कांग्रेसी विरासत
इन सबसे इतर ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की विरासत संभालते रहे और कांग्रेस के मजबूत नेता बने रहे. 2001 में एक हादसे में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई. गुना सीट पर उपचुनाव हुए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए. 2002 में पहली जीत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी चुनाव नहीं हारे थे, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें करारा झटका लगा. कभी उनके ही सहयोगी रहे कृष्ण पाल सिंह यादव ने ही सिंधिया को हरा दिया.

यह भी पढ़ेंः पीएम मोदी और सिंधिया के बीच हुई बड़ी डील, जानें ज्योतिरादित्य को क्या मिलेगा

ज्योतिरादित्य सिंधिया को डबल झटका
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार तो बनाई लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम नहीं बन सके. इसके छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में हार सिंधिया के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हुई. सीएम ना बन पाने के बावजूद लगभग 23 विधायक ऐसे हैं, जिन्हें सिधिया के खेमे का माना जाता है. इसमें से छह को मंत्री भी बनाया गया. इन्हीं में से कुछ विधायकों ने कमलनाथ की सरकार को मुश्किल में डाल दिया है.

HIGHLIGHTS

  • विजयाराजे सिंधिया चाहती थीं कि पूरा परिवार बीजेपी में लौट आए.
  • 1967 के चुनावों में राजमाता का कांग्रेस से मोहभंग होने लगा.
  • 53 साल बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हो सकते हैं बीजेपी में.
BJP congress Jyotiraditya Scindia Vijayaraje scindia Madhav Raje Scindia
Advertisment
Advertisment