Independence Day 2021: देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने वाले लोगों में आपने महात्मा गांधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे कई लोगों का नाम सुना होगा. ढेर सारे नाम इतिहास में जगह पा गये हैं लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनका नाम चर्चित नहीं हुआ और इतिहास के पन्नों में उनका नाम भी दर्ज नहीं है फिर भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. ऐसा ही एक नाम है कल्पना दत्त. कल्पना दत्त ने बंगाल के क्रांतिकारियों से कंधा से कंधा मिलाकर देश के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई. अपना वेश बदलकर क्रांतिकारियों को गोला-बारूद सप्लाई करती थी. उन्होंने निशाना लगाने का भी प्रशिक्षण लिया.
कल्पना और उनके साथियों ने क्रांतिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन और जेल की दीवार को उड़ाने की योजना बनाई. परंतु इस योजना की किसी ने सूचना पुलिस को दे दी. कल्पना को पुरुष वेश में गिरफ्तार कर लिया गया, हालांकि अपराध साबित न हो पाने की वजह से उन्हें रिहा कर दिया गया. बाद में शंका की वजह से उनके घर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया.
कल्पना दत्त का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के चटगांव के श्रीपुर गांव में 27 जुलाई 1913 को हुआ. उनके पिता का नाम विनोद बिहारी दत्त था. मध्यवर्गीय परिवार में पढ़ाई-लिखाई का वातावरण था. घर में मशहूर क्रांतिकारियों की जीवनियां पढ़कर उनको अपना आदर्श मानने वाली कल्पना साइंस की पढ़ाई करने कलकत्ता के बैथ्यून कॉलेज पहुंची.
छात्र संघ की गतिविधियों में शामिल होने के दौरान उनकी मुलाकात बीना दास और प्रीतिलता वड्डेदार जैसी क्रांतिकारी महिलाओं से हुई. इन्हीं क्रांतिकारी गतिविधियों के दौरान कल्पना की मुलाकात मास्टर सूर्यसेन “मास्टर दा”से हुई और वह उनके संगठन “इंडियन रिपब्लिकन आर्मी” में शामिल हुईं और अंग्रेज़ों के खिलाफ मुहिम का हिस्सा बन गईं.
मास्टर सूर्यसेन के साथियों ने जब “चटगांव शास्त्रागार लूट” को अंजाम दिया, तब कल्पना पर अंग्रज़ों की निगरानी बढ़ गई. उनको अपनी पढ़ाई छोड़कर वापस गांव आना पड़ा लेकिन उन्होंने संगठन नहीं छोड़ा. इस दौरान संगठन के कई लोग गिरफ्तार हुए. कल्पना ने सगंठन के लोगों को आज़ाद कराने के लिए जेल के अदालत को उड़ाने की योजना बनाई.
सिंतबर 1931 को चटगांव के यूरोपियन क्लब पर हमले का फैसला किया. योजना को अंजाम देने के लिए कल्पना ने अपना हुलिया बदल रखा था. पुलिस को इस योजना के बारे में पता चल गया और कल्पना गिरफ्तार कर ली गई. अभियोग सिद्ध नहीं होने के कारण कल्पना को रिहा कर दिया गया मगर पुलिस की दबिश उनपर बढ़ गई.
कल्पना पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहीं और सूर्य सेन के साथ मिलकर दो साल तक भूमिगत होकर आंदोलन चलाती रहीं. बाद में सूर्य सेन को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके साथियों के साथ उनको फांसी की सज़ा सुनाई गई और कल्पना को उम्रकैद की सज़ा हुई. वर्ष 1937 में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने तब गांधी एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर के विशेष प्रयत्नों से कल्पना जेल से बाहर आ सकीं.
जेल से रिहा होने के बाद कल्पना का झुकाव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ हुआ. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की. 1943 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पूरन चंद जोशी के साथ विवाह किया.
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कल्पना सक्रिय राजनीति में भी सक्रिय हुईं और 1943 में बंगाल विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी का उम्मीवार बनाया गया मगर वह चुनाव जीतने में असफल रहीं. बाद में पार्टी से मतभेदों के चलते कल्पना दत्त ने पार्टी छोड़ दी.
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में हर वर्ग और समुदाय ने अपना योगदान दिया. इस क्रांतिकारी रास्ते पर जहां पुरुष क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ों से लोहा लिया, वहीं महिलाएं भी इसमें अपनी सक्रिय भागीदारी निभा रही थीं. इन महिला क्रांतिकारियों में एक नाम कल्पना दत्त का भी है, जिन्होंने अंग्रेज़ों से निडरता और साहस के साथ संघर्ष किया. उन्हें “वीर महिला”के खिताब से भी नवाज़ा गया. उनका निधन 8 फ़रवरी, 1995 को पश्चिम बंगाल के कोलकता शहर में हुआ.
HIGHLIGHTS
- चटगांव शास्त्रागार लूट कांड के बाद अंग्रज़ों ने बढ़ाई कल्पना पर निगरानी
- गांधी एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर के प्रयत्नों से जेल से बाहर आ सकीं कल्पना
- मास्टर सूर्यसेन के संगठन इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की सदस्य थीं कल्पना