संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में चुनाव सुधार (संशोधन) विधेयक 2021 पारित किया गया. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बन जाएगा. विपक्षी दलों की ओर से कहा गया कि विधेयक को हड़बड़ी में पारित करार किया गया. विपक्ष विधेयक को संसद की स्थायी समिति में भेजने की मांग कर रहा था. विधेयक के ड्राफ्ट के मुताबिक मतदाता सूची में दोहराव और फर्जी मतदान रोकने के लिए मतदाता पहचान पत्र और सूची को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा. नये प्रावधानों के मुताबिक अब आधार कार्ड और वोटर आईडी लिंक होने से चुनाव कानून संशोधन विधेयक 2021 के मतदाता सूची तैयार करने वाले अधिकारियों को अब आधार कार्ड मांगने का अधिकार होगा.
आधार नंबर को वोटर आईडी कार्ड से जोड़ने के दुरुपयोग की आशंकाओं के जवाब में सरकार कहना है कि आधार कार्ड लिंकिंग की सुविधा इसलिए दी जा रही है ताकि लोग अलग-अलग स्थानों पर मतदाता सूची में न रहें. बायोमीट्रिक डिटेल मिलने से वे एक ही जगह पर वोटर रह सकेंगे. वहीं वोटर लिस्ट में फर्जी नामों को शामिल करने जैसे कामों पर भी रोक लग सकेगी. फिलहाल, आधार को वोटर कार्ड से जोड़ना अनिवार्य नहीं वैकल्पिक रहेगा. यानी, आपको वोटर कार्ड को आधार से जुड़वाने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा. इस विधेयक के बारे में और विस्तार से जानते हैं.
खत्म हो जाएंगे फर्जी वोटिंग जैसे अपराध
चुनाव आयोग ने मतदाता सूची ज्यादा पारदर्शी बनाने और फर्जी वोटर हटाए जाने में मदद के लिए वोटर कार्ड को आधार से जोड़ने की सिफारिश की थी. उनकी दलील थी कि ऐसा होने से आदमी एक से ज्यादा वोटर कार्ड नहीं रख पाएगा. ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं कि जिसमें एक आदमी का दो जगहों पर वोटर लिस्ट में नाम दर्ज है, हालांकि यह अपराध है मगर ऐसे मामले लगातार सामने आते हैं. आधार कार्ड से लिंक होते ही एक वोटर का नाम एक ही जगह वोटर लिस्ट में हो सकेगा और वह एक जगह ही अपना वोट दे सकेगा.
निजता को खतरे की आशंका पर सरकार की दलील
इस विधेयक का विरोध आम आदमी की निजता को खतरे से जुड़ी आशंका को लेकर की जा रही है. सरकार ने इस बारे में कहा है कि आधार और वोटर कार्ड जोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार के फैसले को ध्यान में रखा जाएगा. सरकार चुनाव आयोग को और ज्यादा अधिकार देने के लिए कदम उठाएगी. 2015 में चुनाव आयोग की तरफ से आधार डेटा के सहारे मतदाता सूची से फर्जी नाम हटाने और दोहराव खत्म करने के लिए एक पायलट प्रॉजेक्ट NERPAP शुरू किया था. सुप्रीम कोर्ट ने तब इस पहल पर रोक लगा दी थी. कोर्ट की ओर से कई मामलों में कहा गया कि पते के सबूत के रूप आधार कार्ड का इस्तेमाल तो किया जा सकता है, लेकिन इसे नागरिकता का प्रमाण नहीं करार दिया जा सकता.
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कट ऑफ डेट्स यानी अब वोटर बनने के 4 मौके
चुनाव आयोग पात्र लोगों को मतदाता के रूप में रजिस्टर्ड कराने के लिए कई कटऑफ डेट्स की वकालत करता रहा है. नया कानून देश के युवाओं को हर साल चार अलग-अलग तारीखों पर खुद को वोटर के तौर पर रजिस्टर करने की इजाजत भी देगा. यानी, वोटर बनने के लिए अब साल में चार तारीखों को कटऑफ माना जाएगा. अब तक हर साल पहली जनवरी या उससे पहले 18 साल के होने वाले युवाओं को ही वोटर के तौर पर रजिस्टर किए जाने की इजाजत है. इसके चलते वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने में कई लोग पीछे रह जाते थे. उन्हें अगले साल तक इंतजार करना पड़ता था.
HIGHLIGHTS
- फिलहाल, आधार को वोटर कार्ड से जोड़ना अनिवार्य नहीं वैकल्पिक रहेगा
- सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार के फैसले को ध्यान में रखा जाएगा
- हर साल चार अलग तारीखों पर बतौर वोटर पर रजिस्टर करवाने का प्रावधान