लाला हरदयाल : 'गदर' और 'वन्दे मातरम' पत्रिका के माध्यम से जलाई क्रांति की ज्वाला

लाला हरदयाल का जन्म 14 अक्टूबर 1884 को दिल्ली में गुरुद्वारा शीशगंज के पीछे स्थित चीराखाना मुहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ. उर्दू तथा फारसी के पण्डित पिता गौरीदयाल माथुर दिल्ली के जिला न्यायालय में रीडर थे तो मां भोली रानी अत्यंत धार्मिक महिला थ

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Pradeep Singh
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लाला हरदयाल( Photo Credit : News Nation)

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Independence Day 2021:लाला हरदयाल स्वतन्त्रता संग्राम के उन अग्रणी क्रान्तिकारियों में थे जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लड़ाई में योगदान के लिये प्रेरित किया. अमेरिका में गदर पार्टी की स्थापना  करके प्रवासी भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना जागृत की. विदेश में रहकर वे ब्रिटिश हुकूमत के नाक में दम किये रहे. देश में होने वाले हर क्रांतिकारी गतिविधि में ब्रिटिश सरकार उनका हाथ मानती थी. उनके सरल जीवन और बौद्धिक कौशल ने प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए कनाडा और अमेरिका में रहने वाले कई प्रवासी भारतीयों को प्रेरित किया.

लाला हरदयाल का जन्म 14 अक्टूबर 1884 को दिल्ली में गुरुद्वारा शीशगंज के पीछे स्थित चीराखाना मुहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ. उर्दू तथा फारसी के पण्डित पिता गौरीदयाल माथुर दिल्ली के जिला न्यायालय में रीडर थे तो मां भोली रानी अत्यंत धार्मिक महिला थी. बालक हरदयाल के व्यक्तितिव निर्माण में मां का बहुत योगदान रहा. उन्होंने अपने बेटे को विद्याव्यसनी बना दिया. लाला हरदयाल की आरम्भिक शिक्षा कैम्ब्रिज मिशन स्कूल में हुई. दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कालेज से संस्कृत में स्नातक और पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर से संस्कृत में  एमए किया. इस परीक्षा में उन्हें इतने अंक प्राप्त हुए थे कि सरकार की ओर से 200 पौण्ड की छात्रवृत्ति दी गयी. हरदयाल  उस छात्रवृत्ति के सहारे आगे पढ़ने के लिये लन्दन चले गये और सन् 1905 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया.  

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लंदन जाने के पहले ही लाला हरदयाल के अंदर क्रांतिकारी बीज अंकुरित हो चुका था. वे मास्टर अमीरचन्द की गुप्त क्रान्तिकारी संस्था के सदस्य बन चुके थे. कुछ दिनों बाद ही वे स्वदेश वापस आ गये. भारत लौट कर सबसे पहले पुणे जाकर वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से मिले. लेकिन 1908 में देश भर में सरकारी दमन चला. लाला लाजपत राय की सलाह पर वे  पेरिस चले गये और वहीं रहकर जेनेवा से निकलने वाली मासिक पत्रिका वन्दे मातरम् का सम्पादन करने लगे. 

लाला हरदयाल ने पेरिस को अपना प्रचार-केन्द्र बनाना चाहा था किन्तु वहां पर इनके रहने खाने का प्रबन्ध प्रवासी भारतीय देशभक्त न कर सके. विवश होकर वे सन् 1910 में पहले अल्जीरिया गये. 1912 में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में हिन्दू दर्शन तथा संस्कृत के ऑनरेरी प्रोफेसर नियुक्त हुए. वहीं रहते हुए आपने गदर पत्रिका निकालनी प्रारम्भ की. 

लाला जी को सन 1927 में भारत लाने के सारे प्रयास जब असफल हो गये तो उन्होंने इंग्लैण्ड में ही रहने का मन बनाया और वहीं रहते हुए डॉक्ट्रिन्स ऑफ बोधिसत्व नामक शोधपूर्ण पुस्तक लिखी जिस पर उन्हें लंदन विश्वविद्यालय ने पीएचडी की उपाधि प्रदान की. तत्कालीन ब्रिटिश भारत की सरकार ने उन्हें सन 1938 में हिन्दुस्तान लौटने की अनुमति दे दी. अनुमति मिलते ही उन्होंने स्वदेश लौटकर जीवन को देशोत्थान में लगाने का निश्चय किया. दुर्भाग्य से लाला जी के शरीर में अवस्थित उस महान आत्मा ने फिलाडेल्फिया में 4 मार्च 1938 को उनका निधन हो गया. 

 

HIGHLIGHTS

  • लाला हरदयाल 1912 में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में नियुक्त हुए थे संस्कृत के ऑनरेरी प्रोफेसर
  • जेनेवा से निकलने वाली मासिक पत्रिका वन्दे मातरम् का हरदयाल ने किया था सम्पादन
  • 4 मार्च 1938 को फिलाडेल्फिया में लाला हरदयाल का हुआ था निधन  
independence-day 75th-independence-day independence-day-2021 Lala Hardayal 15 august 2021
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