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पाक-चीन को एक साथ घेरती मोदी सरकार, ये 5 मुस्लिम देश बन रहे दोस्त

मध्य एशिया के ये पांच देश मुस्लिम-बहुल हैं, लेकिन कट्टरपंथी नहीं हैं. इन पर सोवियत संघ का गहरा साम्यवादी प्रभाव है. इसलिए भारत के प्रति इन राष्ट्रों में एक आकर्षण है.

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Nihar Saxena
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PM Modi

बदलते घटनाक्रम में मोदी सरकार ने तेज की मध्य एशिया कूटनीति.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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चीन संग चल रहे सीमा विवाद और अफगानिस्तान में तालिबान शासन के बाद बढ़ते सामरिक खतरों के बीच मोदी सरकार ने भी अपनी कूटनीति बदल दी है. पाकिस्तान को घेरने और मध्य एशिया में मुस्लिम देशों के बीच अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए भारतीय कूटनीतिक प्रयासों को बड़ी सफलता मिली है. बीते दिनों मध्य एशिया के पांच राष्ट्र कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान के विदेश मंत्री एक साथ दिल्ली आए. उन्होंने विभिन्न मसलों पर मोदी सरकार से बातचीत की. इसके पहले पिछले माह ही इन देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी दिल्ली आए थे. इसके और पहले की बात करें तो इन देशों के साथ पहले भी दो बार भारत का संवाद हो चुका है.

गणतंत्र दिवस पर भी बुलाया गया राष्ट्राध्यक्षों को
इस कूटनीति को और धार देते हुए इन पांचों राष्ट्रों के सर्वोच्च नेता अब अगले साल गणतंत्र दिवस पर पहली बार एक साथ भारत आएंगे. बताते हैं कि 2015 में पहली बार भारत से कोई प्रधानमंत्री इन पांचों देशों के दौरे पर एक साथ गए थे. हालांकि इन देशों के साथ भारत के संबंध जितने मजबूत होने चाहिए थे, उतने नहीं हुए. उसकी वजह यह है कि लगभग 30 साल पहले तक ये राष्ट्र रूस के कब्जे में थे. तब इनके दूसरे देशों के साथ रिश्ते मॉस्को से संचालित होते थे. इनकी गिनती भारत के पड़ोसियों में नहीं होती थी, लेकिन आधुनिक-प्राचीन इतिहास गवाह है कि ये देश और भारत सदियों से एक-दूसरे के पड़ोसी रहे.

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भारत के प्रति गहरा आकर्षण रखते हैं ये देश
मध्य एशिया के ये पांच देश मुस्लिम-बहुल हैं, लेकिन कट्टरपंथी नहीं हैं. इन पर सोवियत संघ का गहरा साम्यवादी प्रभाव है. इसलिए भारत के प्रति इन राष्ट्रों में एक आकर्षण है. संभवतः यही वजह है कि पिछले सप्ताह पाकिस्तान में 57 इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी के सम्मेलन में कई मुस्लिम देशों के विदेश मंत्री गए, लेकिन इन पांचों मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्री इस्लामाबाद जाने की बजाय नई दिल्ली आए. इस सम्मेलन में अफगानिस्तान पर गहराई से विचार-विमर्श हुआ. भारत ने अफगान-संकट पर पिछले महीने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के सम्मेलन में पाकिस्तान और चीन को भी बुलाया था, लेकिन दोनों ने भारतीय पहल का बहिष्कार किया.

फिलवक्त चीन का निवेश है ज्यादा
अफगानिस्तान के सवाल पर इन पांचों देशों की भी वही राय है, जो संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने प्रस्ताव में रखी है. यानी काबुल की सरकार सर्वसमावेशी हो. वह आतंकी गतिविधियों और अफीम की तस्करी से मुक्त रहे और अफगान जनता की जरूरतों को पूरा किया जाए. इन देशों ने ईरान के चाहबहार बंदरगाह को विकसित करने पर भी जोर दिया ताकि भारत के साथ पांचों देशों को यातायात की सीधी सुविधा मिल जाए. भारत ने इन सभी राष्ट्रों के लिए एक बिलियन डॉलर का फंड भी बनाने की बात कही है ताकि उनके यहां कई सुविधाएं तैयार हो सकें. इस समय इन पांचों देशों के साथ भारत का व्यापार मुश्किल से दो बिलियन डॉलर है, जबकि चीन का व्यापार सौ बिलियन डॉलर का.

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प्राकृतिक खनिजों की खान है ये देश
भारत के लिए इन देशों के प्रति आकर्षण कई और कारणों से भी है. अगर आकार-प्रकार की बात करें तो मध्य एशिया का क्षेत्र भारत से सवा गुना बड़ा है. इसकी जनसंख्या 8 करोड़ भी नहीं है. साथ ही मध्य एशिया के इन राष्ट्रों में गैस, तेल, तांबा, लोहा, कोयला, यूरेनियम के भंडार अछूते पड़े हैं. ऐसे में यदि इन देशों में भारत अपने विशेषज्ञों को लगाए और निवेश करे तो यहां के लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिल सकता है. साथ ही सारा दक्षिण और मध्य एशिया अगले दस वर्षों में यूरोप से भी अधिक समृद्ध हो सकता है.

HIGHLIGHTS

  • कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान बन रहे दोस्त
  • एक समय इन देशों पर सोवियत संघ का था प्रभाव, फिलहाल चीन ने कर रखा है निवेश
  • मोदी सरकार इनसे संबंध बढ़ा पाकिस्तान और चीन दोनों को घेरने का कर रही है काम
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