ओमीक्रॉन का नया वेरिएंट दुनिया के तमाम देशों में कहर बरपा रहा है. इसके पहले डेल्टा वेरिएंट ने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई थी. ऐसे में विशेषज्ञों के लिए वायरस का बार-बार रूप बदलना चिंता का विषय बन चुका है. मेडिकल साइंस की भाषा में बात करें तो वायरस बाकी सभी जीवित चीजों की तरह विकसित होते हैं. कोरोना महामारी के दौरान भी यह बात देखने को मिली कि हर कुछ महीनों के अंतराल पर वेरिएंट ऑफ कंसर्न सामने आए. इस कड़ी में अच्छी बात यह सामने आ रही है कि भले ही कोरोना के ओमीक्रॉन जैसे घातक वेरिएंट और आ जाएं, लेकिन शरीर की इम्यूनिटी भी इनके साथ ही बदलाव कर लेगी और फिर ये कोरोना संक्रमण मौसमी फ्लू की तरह हो जाएगा.
स्पाइक प्रोटीन के म्यूटेशन पर होती है प्रसार क्षमता
जानकार कहते हैं कि कुछ वेरिएंट कोविड-19 के सार्स कॉव-2 के कम प्रभावी वेरिएंट से लड़कर उनसे ज़्यादा प्रभावी हो जाते हैं. इनकी प्रसार क्षमता का कारण स्पाइक प्रोटीन में होने वाला म्यूटेशन होता है. स्पाइक प्रोटीन एसीई-2 रिसेप्टर्स से मजबूती से बंधे रहते हैं. एसीई-2 रिसेप्टर्स हमारी कोशिकाओं की सतह पर पाए जाते हैं. शरीर में प्रवेश करने और बढ़ने के लिए वायरस इन्हीं रिसेप्टर्स से चिपकता है. जानकार कहते हैं कि म्यूटेशन की वजह से अल्फा वेरिएंट और फिर डेल्टा वेरिएंट दुनिया भर को अपनी जद में ले सके. वैज्ञानिकों का मानना है ओमीक्रॉन के साथ भी ऐसा ही होगा.
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वायरस हमेशा बढ़ नहीं सकता
जैव विज्ञानियों की मानें तो वायरस अनिश्चितकाल तक बढ़ नहीं सकता है. जैव रसायन नियम के मुताबिक वायरस अंततः एक स्पाइक प्रोटीन विकसित करता है जो एसीई-2 से मजबूती से बंध जाता है. वायरस के फैलने की क्षमता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि वायरस कोशिकाओं के बाहर कितनी अच्छी तरह से चिपकता है. दूसरे कारण भी वायरस के प्रसार को सीमित करते हैं. यह कारण हैं- जीनोम कितनी तेजी से रेप्लिकेट होता है, वायरस प्रोटीन टीएमपीआरएसएस-2 के ज़रिए कोशिका में कितनी तेजी से प्रवेश कर सकता है और एक संक्रमित व्यक्ति कितना वायरस प्रसारित कर सकता है. सैद्धांतिक रूप से इन सभी कारणों के आधार पर ही वायरस अपने चरम पर पहुंचता है.
एक दिन एंटीबॉडी कर देगी निष्प्रभावी
सार्स कॉव-2 के जो भी म्यूटेशन हो रहे हैं उनके अध्ययन से पता चलता है कि ऐसे बहुत सारे म्यूटेशन हैं, जिन्होंने स्पाइक प्रोटीन की उस क्षमता को बढ़ाया है, जिससे वे मानव कोशिकाओं से चपकते हैं. इस आधार पर यह क्षमता ओमीक्रॉन के पास नहीं है. इसके अलावा, वायरस के जीवन चक्र के अन्य पहलुओं में भी बदलाव हो सकते हैं, जैसे कि जीनोम रेप्लिकेशन. वैज्ञानिकों के मुताबिक किसी भी वायरस से संक्रमण के बाद शरीर का प्रतिरोधी तंत्र उसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है. यह एंटीबॉडी वायरस से चिपक जाती है और उसे बेअसर करती है. इसके साथ ही टी-सेल्स संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं. एंटीबॉडी प्रोटीन के टुकड़े होते हैं जो वायरस के खास मॉलिक्यूलर आकार से चिपके रहते हैं.
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मौसमी फ्लू जैसे हो जाएगा कोरोना संक्रमण
जैव विज्ञानी बताते हैं कि ओमीक्रॉन पिछली इम्यूनिटी वाले लोगों को संक्रमित करने में सफल रहा है. फिर चाहे यह इम्यूनिटी लोगों में वैक्सीन की वजह से रही या फिर वायरस के पिछले वेरिएंट से संक्रमित होने से. वह म्यूटेशन जो स्पाइक को एसीई-2 से मजबूती से जोड़ते हैं, वही एंटीबॉडी के वायरस से जुड़ने और इसे बेअसर करने की क्षमता को भी कम करते हैं. फाइजर के डेटा से पता चलता है कि टी-सेल्स को ओमीक्रॉन पर भी उसी तरह से काम करना चाहिए जैसा वे पिछले वेरिएंट पर करती रही हैं. दूसरे म्यूटेशन जो वायरस की प्रसार क्षमता बढ़ाते हैं, वे मौतें नहीं बढ़ा सकते. अपने चरम पर पहुंचा यह वायरस, तब फिर बेतरतीबी से म्यूटेट करेगा. खुद को बदलने में थोड़ा समय लेगा, जिससे वह इम्यून सिस्टम की पकड़ में न आ सके और इसके बाद फिर लहरें आती रहेंगी.
HIGHLIGHTS
- म्यूटेशन वायरस की बढ़ाते हैं प्रसार क्षमता
- ऐसे वेरिएंट मौतों की संख्या नहीं बढ़ा सकते
- कुछ समय बाद फ्लू जैसी कोरोना लहर आएंगी