आज कश्मीर से धारा-370 हट चुकी है और ज्यादातर मुस्लिम देश तटस्थ हैं. पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है. जम्मू-कश्मीर पर भारत के हालिया फैसले के खिलाफ पाकिस्तान को मुस्लिम देशों से समर्थन मिलने की बड़ी उम्मीद थी. लेकिन इनमें से ज्यादातर अब तक तटस्थ ही दिखे हैं. चीन के अलावा उसे किसी से समर्थन नहीं मिला.
इस्लामिक सहयोग संगठन (आईओसी) और ज्यादातर मुस्लिम देशों - यूएई, सऊदी अरब, ईरान, मलेशिया और तुर्की - ने जम्मू-कश्मीर के मसले पर जो प्रतिक्रिया दी है उससे पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है. इन देशों ने भारत और पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय बातचीत के जरिए सुलझाने का सुझाव दिया है. संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने तो कश्मीर को भारत का आंतरिक मुद्दा तक बता दिया है.
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पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक हुसैन हक्कानी अपनी एक टिप्पणी में लिखते हैं, ‘अन्य देश अपने हितों के बारे में पहले सोचते हैं, फिर पाकिस्तान के इन देशों से संबंध काफी कमजोर भी हैं...भारत का तुर्की के साथ सालाना व्यापार 8.6 अरब डॉलर का है जबकि पाकिस्तान का व्यापार महज एक अरब डॉलर ही है. इसी तरह मलेशिया के साथ भारत का व्यापार पाकिस्तान से 14 गुना अधिक है.’
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मुस्लिम देशों के इस रुख की बात करें तो इसकी पहली बड़ी वजह मध्यपूर्व के देशों के भारत के साथ मजबूत व्यापारिक रिश्ते. भारत की गिनती सऊदी अरब, क़तर, ईरान और यूएई के सबसे बड़े तेल और गैस के खरीदारों में होती है. भारत इन देशों में बड़ा निवेश कर रहा है और इन देशों की कंपनियां भी भारत में ऐसा ही कर रही हैं. हाल ही में दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी कही जाने वाली सऊदी अरब की अरामको ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के तेल और पेट्रोरसायन कारोबार में करीब 15 अरब डॉलर के निवेश का ऐलान किया है.
मोदी की सफलता
- 2015 में जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई की यात्रा पर गए थे तो दोनों देशों के बीच कई बड़े समझौते हुए थे.
- यूएई ने भारत में अपने निवेश को आधारभूत संरचना कोष के जरिए पांच लाख करोड़ रुपए तक करने की घोषणा की थी.
- दोनों देशों के बीच तय हुआ था कि वे अगले पांच साल में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर लगभग 100 अरब डॉलर तक ले जाएंगे. वर्तमान में यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार और चौथा सबसे बड़ा तेल-गैस आपूर्तिकर्ता देश है.
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- यूएई और सऊदी अरब दोनों मिलकर महाराष्ट्र में एक बड़ी रिफ़ाइनरी भी लगाने वाले हैं.
- इसमें 50 फीसदी साझेदारी उनकी होगी, बाक़ी आधी साझेदारी भारतीय कंपनियों की होगी.
- यूएई की योजना तो भारत के प्राइवेट सेक्टर में भी बड़ा निवेश करने की है.’
यह है वजह
- भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में कमी आने के बावजूद यह साढ़े छह से सात फीसदी की दर से आगे बढ़ सकती है
- इसके बावजूद यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था से नौ गुना है. दूसरी तरफ पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है
- पाकिस्तान की विकास दर 3.5 फीसदी से भी कम है.
नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद अरब देशों से संबंध प्रगाढ़ हुए
बीते सालों में इजरायल से बेहतर संबंधों की परवाह न करते हुए नरेंद्र मोदी ने न केवल फिलस्तीन, जॉर्डन और ओमान का दौरा किया, बल्कि संयुक्त राष्ट्र में फिलस्तीन के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों पर भी खुद को तटस्थ रखा. नरेंद्र मोदी के रूप में कोई भारतीय प्रधानमंत्री 34 साल बाद यूएई, 58 साल बाद फिलस्तीन, 30 साल बाद जॉर्डन और 10 साल बाद ओमान पहुंचा था.
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पाकिस्तान की हमेशा ये कोशिश रही कि सऊदी अरब और यूएई कभी भारत के क़रीब न आएं, लेकिन नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद हमने देखा कि लगभग 50 साल बाद सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस (मोहम्मद बिन सलमान) और फिर यूएई के क्राउन प्रिंस भी भारत आए. यह अपने आप में एक बड़ा बदलाव है.’
2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई पहुंचे थे तो वहां के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद और उनके पांचों भाई एयरपोर्ट पर मोदी के स्वागत के लिए आए थे.
इसके बाद जब यूएई के क्राउन प्रिंस और सऊदी के क्राउन प्रिंस बिन सलमान भारत आए तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें खुद लेने एयरपोर्ट पर पहुंचे थे.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो