प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ताधारी राजनीति में दो दशक पूरे किए हैं. शायद ही ऐसा अनोखा रिकॉर्ड पक्ष और विपक्ष के किसी भी नेता के नाम हो. प्रधानमंत्री मोदी किसी भी गैर-कांग्रेसी नेता के तौर पर सबसे ज्यादा शासन में रहने वाले प्रधानमंत्रियों में अव्वल हैं. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी रिकॉर्ड पीछे छोड़ दिया है. जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी में कुछ खूबियां ऐसी कूट-कूट कर भरी हैं कि वह ना तो सत्ता के सिंहासन से आज तक कभी उतरे और ना ही अपने राजनीतक जीवन में कभी विपक्ष में बैठना पड़ा.
पिछले ढाई दशक से प्रधानमंत्री मोदीजी को मुझे बेहद नजदीक से देखने का अवसर मिला है. इसलिए मैं यह बात कह सकता हूं कि मोदीजी का अनुशासन, संयम, उनकी जीवटता, हर विषय की गहरी समझ वाला दिमाग और उनका जादुई लैपटॉप जिसमें ना जाने कितना ही डाटा मौजूद है, ये सब मोदीजी को भारत के ही नहीं, बल्कि विश्व के प्रथम पंक्ति के नेताओं में खड़ा करता है. प्रधानमंत्री मोदी अपने पूरे विधायकी और ससंदीय जीवन में अजेय रहे हैं. ये राजनीति में उनकी गहरी पैठ और 24x7 की राजनीति की नई परिपाटी को जन्म देने वाला है. उनके नेतृत्व में ही पार्टी ने चुनावों को किसी उत्सवों की तरह लड़ना शुरू किया. हार हो या जीत, पाटी को इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन ये लगे रहो मुन्नाभाई वाली राजनीति उनके राजनीतिक विरोधियों को मीलों पीछे छोड़ देती है.
प्रधानमंत्री मोदी रोज 18 घंटे काम करते है. ये भी अपने आप में रिकॉर्ड होगा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से प्रधानमंत्री के सफर तक उन्होंने एक दिन भी छुट्टी नहीं ली. 71 साल की उम्र में भी वह किसी युवा जैसी ऊर्जा और शक्ति रखते हैं. इससे यह भी स्थापित होता है कि प्रधानमंत्री मोदी कितना संयमित और अनुशासित जीवन जीते हैं. चाहे वह संयमित भोजन हो, व्यायाम हो या फिर उनकी दिनचर्या, यह लगभग एक समान रहता है और यही उनके ऊर्जावान होने का सबसे बड़ा कारण है. बातों-बातों में मैंने उनसे एक बार पूछा था कि आपको क्या खाना पसंद है, तो उनका जवाब बेहद सरल था- खिचड़ी. जब मैंने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि यह बड़ी आसानी से तैयार हो जाती है, दाल-चावल मिलाओ, कुकर में डालो और यह बन कर तैयार. कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने अपना इस प्रकार भोजन कई बार बनाया भी है.
वैसे उन्हें गुजराती खाने में खाखड़ा और कढ़ी भी पसंद है. देश हो या विदेश, वह नवरात्रि पर 9 दिनों का उपवास करना नहीं भूलते. वह केवल उन दिनों नींबू-पानी पर रहते हैं. एक बार खुद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनसे कहा था कि मोदीजी कम से कम 6 घंटे की नींद लिया कीजिए, लेकिन प्रधानमंत्री मोदीजी का मानना था कि उनका शरीर ऐसा है कि वह साढ़े 3-4 घंटे से ज्यादा नींद नहीं ले पाते और उनकी सतत् दिनचर्या समय पर शुरू हो जाती है. प्रधानमंत्री मोदी सुबह बहुत जल्दी उठने वालों में से हैं, यह उनके अनुशासन को दर्शाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने हर दिन नई चुनौतियों को झेला है. विरोधियों का दुष्प्रचार, विपक्षियों के कानूनी दांव-पेंच, लेकिन इन सबको भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कवच के तौर पर बखूबी इस्तेमाल किया. मोदीजी देश के शायद एकलौते राजनेता हैं जो अपने पर हो रहे तमाम दुष्प्रचारों को ना केवल झेलते रहे बल्कि एक नया विमर्श स्थापित कर भारतीय राजनीति में अपनी जगह को और पुख्ता कर लिया. चाहे वह सोनिया गांधी का 'मौत के सौदागर' वाला कमेंट हो या फिर मणिशंकर का 'एक चाय वाला प्रधानमंत्री नहीं बन सकता' वाला कथन हो. प्रधानमंत्री के नेतृत्व में उनके स्पिन डॉक्टरों ने इसे ऐसा घुमाया कि लोगों के मन में मोदी के लिए ना केवल सहानुभूति जागी, बल्कि वह देश की दक्षिणपंथी राजनीति का सबसे बड़ा स्थापित चेहरा भी बन गए. ऐसा कमाल विरले ही कर सकते हैं.
जहां तक मोदीजी की जन कल्याणकारी नीतियों का जिक्र किया जाए, तो ज्यादातर योजनाएं उनकी गरीबी के जीवन पर आधारित हैं. उन्होंने खुद बताया था तक उज्जवला योजना की शुरुआत के पीछे प्रेमचंद की प्रेरणादायक कहानी 'ईदगाह' का हामिद से है, जिसमें वह अपनी दादी की खुशी के लिए मेले से खिलौना या खाने का सामना छोड़ रोटी बनाने के लिए चिमटा लाता है. दरअसल वह अपनी दादी को हर दिन तपती आग पर रोटी बनाता देखता है और कई बार होता है जब उसकी दादी के हाथ जल जाते हैं. ऐसे ही सार्वजनिक शौचालय बनाने हों या स्वच्छ भारत अभियान या फिर बैंक अकाउंट खोलना या फिर आयुष्मान भारत योजना. कोई व्यक्ति ऐसी योजना तभी बना सकता है जब उसने इसका अनुभव किया हो.
प्रधानमंत्री मोदी इन्हीं योजनाओं को फाइन ट्यून करने के लिए लंबी-लंबी बैठकें भी करते हैं ताकि किसी भी जन कल्याणकारी योजना में कोई कमी ना रह जाए. मुझे याद है 26 जनवरी 2001 का वह दिन जब भूकंप आया था, तब तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी जी और पार्टी के वरिष्ठ नेता के तौर नरेंद्र मोदी, हम सब एक ही प्लेन से गुजरात पहुंचे थे. भूकंप के कारण संचार व्यवस्था पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो चुकी थी, लेकिन इसके बावजूद गुजरात के कोने-कोने में क्या-क्या घटना घटी उसकी पल पल की जानकारी नरेंद्र मोदी के पास इकट्ठा थी. मुख्यमंत्री बनने के बाद कच्छ का जो पुनर्निर्माण हुआ है वह ना केवल देखने लायक है, बल्कि अपने आप में एक मिसाल भी है.
हिंदी की वर्णमाला में पहला शब्द पढ़ाया जाता है- अ. अ से ही होता है अनुशासन और यह सब तभी हासिल किया जा सकता है जब व्यक्ति बेहद अनुशासित जीवन जीए. प्रधानमंत्री मोदी उसके जीते-जागते उदाहरण हैं. आपको देश-विदेश में कुछ आलोचक भी मिल जाएंगे, लेकिन उनके चाहने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है. केंद्र में आने के बाद से प्रधानमंत्री मोदी ने जिस 24x7 का मंत्र बीजेपी को दिया है, आज कई राजनितिक दल उसके आस-पास भी नहीं हैं. प्रधानमंत्री के बारे में भारतीय राजनीति के परिपेक्ष्य में ये जरूर कहा जा सकता है कि आप उन्हें पसंद करें या नापंसद, लेकिन नजरअंदाज़ करना शायद आपके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी.
Source : Deepak Chaurasia