निर्भया मामले (Nirbhaya Case) में अगर चारों दोषी अभी भी फांसी के फंदे से दूर हैं, तो इसके पीछे कहीं न कहीं 'स्टेट' जिम्मेदार है. देश की कानून प्रक्रिया में व्याप्त पेंच-ओ-खम का सीधा-सीधा फायदा निर्भया के गुनाहगार उठा रहे हैं तो केंद्र या दिल्ली सरकार (Arvind Kejriwal) की 'गंभीरता' भी इस मामले में उठते सवालों से परे नहीं है. अगर ये 'लापरवाही' नहीं होती तो फास्ट ट्रैक कोर्ट (fast Track Court) ने जो फैसला महज नौ महीने में सुना दिया था, उस पर अमल करने में सात साल का वक्त नहीं लगता. परोक्ष तौर पर दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को कठघरे में खड़ी करती यह टिप्पणी निर्भया केस की वकील सीमा समृद्धि की हैं, जिन्होंने न्यूज स्टेट से बातचीत करते हुए कई ऐसे प्वाइंट उठाए जो हमारी व्यवस्था की 'लाचारगी' ही सामने लाते हैं.
यह भी पढ़ेंः मोदी सरकार ने नहीं पी चिदंबरम ने बदले की भावना से काम किया थाः नितिन गडकरी
सुप्रीम कोर्ट में दो साल तक केस मेंशन तक नहीं हुआ
एडवोकेट सीमा समृद्धि ने बताया कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले की सेशन कोर्ट में चुनौती दी गई. वहां भी फांसी की सजा बरकरार रखी गई. फिर मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां से 3 मार्च 2014 को सजा यथावत रखने का निर्णय आ गया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां 2016 तक उसे सुनवाई के लिए ही नहीं लगाया गया. सीमा बताती हैं कि बतौर प्राइवेट प्रैक्टिशनर सर्वोच्च अदालत की ध्यान इस केस की ओर आकृष्ट कराने पर सुनवाई शुरू हुई और फिर से निर्भया के गुनाहगारों की फांसी की सजा 9 मार्च 2018 को बरकरार रखी गई. इसके बाद भी बचाव पक्ष के वकील और सरकार के रवैये से फांसी की सजा मुकर्रर नहीं हो पा रही है.
यह भी पढ़ेंः हैदराबाद की घटना की धधक कम हुई नहीं कि मुंबई से आ गई मासूम से हैवानियत की खबर
दिसंबर 2018 में निर्भया के मां-बाप की पहल पर जागा प्रशासन
सीमा का कहना है कि 9 जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी की बाद दोषियो की रिव्यु पिटीशन पर सुनवाई करते हुए चारों की फांसी की सजा एक बार फिर बरकरार रखी थी. इसके बाद तिहाड़ प्रशासन की दोषियों से पूछने की जिम्मेदारी थी कि वह अगले विकल्प क्यूरेटिव पिटीशन को लगाना चाहते हैं या नहीं, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ. एक बार फिर करीब 6 महीने बाद 13 दिसंबर 2018 को कोर्ट के फैसले के एग्जीक्यूशन के लिए निर्भया के मां बाप ने पटियाला कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इसके बाद कोर्ट के स्टेटस रिपोर्ट मांगने पर तिहाड़ प्रशासन जागा और फिर दोषियों को नोटिस देकर तिहाड़ प्रशासन ने जल्द अपने अधिकार का इस्तेमाल करने को कहा.
यह भी पढ़ेंः RBI कल फिर ले सकता है ब्याज दरों में कटौती का फैसला, आम आदमी पर होगा बड़ा असर
तिहाड़ जेल प्रशासन भी सोता रहा
सीमा का कहना है कि इस मामले में तिहाड़ जेल प्रशासन भी कम नहीं है. दोषियों को उनके अधिकारों के बारे में बता कर उनके अगले कदम का जिम्मा जेल प्रशासन का होता है. निर्भया के अभिभावकों की जल्द सुनवाई की अर्जी पर तिहाड़ प्रशासन जागता है और पता चलता है कि अब एक आरोपी पवन शर्मा क्यूरेटिव पिटीशन फाइल करना चाहता है. यह बात सामने तब आ रही है जब क्यूरेटिव पिटीशन का खारिज होना तय है. इसके साथ ही ऐसी भी चर्चा है कि शेष तीनों आरोपी भी राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करने जा रहे हैं. अगर समय रहते यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाती, तो निर्भया के गुनाहगार अब तक फांसी के फंदे पर झूल चुके होते.
यह भी पढ़ेंः जानें मोदी कैबिनेट के 6 बड़े फैसले, निजी डेटा सुरक्षा बिल और समाजिक सुरक्षा कोड बिल पर मुहर
13 दिसंबर को फिर होनी है सुनवाई
कानूनी प्रावधानों की बात करें तो डेथ वारंट अदालत से जारी होता है, जबकि फांसी की सजा का ऐलान सरकार करती है. पाटियाला कोर्ट में प्राइवेट काउंसलर अर्जी देने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बीते दिनों जवाब दाखिल करते हैं. अब इस मामले में 13 दिसंबर को फिर से सुनवाई होनी है. उसके फैसले के आधार पर तय हो सकेगा कि निर्भया के गुनाहगारों को फांसी कब तक हो सकेगी. चूंकि एक दया याचिका राष्ट्रपति के समझ भी विचाराधीन है, तो वहां से भी उस पर फैसले का इंतजार किया जा रहा है. हालांकि सीमा समृद्धि सोशल मीडिया के जरिये राष्ट्रपति भवन से दया याचिका पर जल्द फैसला लेना की गुहार लगाती आ रही हैं.
HIGHLIGHTS
- निर्भया केस की वकील सीमा समृद्धि ने की खास बातचीत.
- व्यवस्था की 'लाचारगी' से हो रही फांसी में देर.
- 13 दिसंबर को फिर से होगी पाटियाला कोर्ट में सुनवाई.