पाकिस्तान (Pakistan) के वजीर-ए-आजम इमरान खान (Imran Khan) की उलटी गिनती शुरू हो गई है. पहले पहल जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) पर भारत के लोकतांत्रिक कदम पर उनका सियापा अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने में न सिर्फ नाकामयाब रहा, बल्कि पाकिस्तान की आतंक परस्त नीति को वैश्विक जमात के आगे नंगा और कर गया. इसके बाद घरेलू मोर्चे पर महंगाई (Inflation) और अब कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर उनके ढुलमुल रवैये से पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) के हुक्मरान खासे नाराज हो गए हैं. रावलपिंडी सैन्य मुख्यालय सिर्फ कोरोना संकट थमने का इंतजार कर रहा है. इसके बाद इमरान खान नियाजी को अपने पूर्ववर्तियों का ही रास्ता अख्तियार करना पड़ा सकता है. यही नहीं, पाक सेना ने इसके लिए इमरान खान को जून तक की मोहलत दी है.
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विवादों में इमरान सरकार
पाकिस्तान में जैसे-जैसे कोरोना का कहर बढ़ता जा रहा है, इमरान खान सरकार विवादों में आती जा रही है. इमरान खान सरकार पर चीन और ईरान में हुई मौतों से न सीखने का आरोप लग रहा है. अब तक कोरोना संकट को बेहद हल्के अंदाज में ले रहे इमरान खान पर निर्णायक एक्शन लेने का दबाव बनता जा रहा है. इमरान दावा कर रहे हैं कि वह जनवरी से इस महामारी पर नजर बनाए हुए हैं, लेकिन उन्होंने 12 मार्च तक आपातकालीन सलाह बैठक नहीं की. पाकिस्तान में विपक्ष के शासन वाले सिंध प्रांत में इमरान खान सरकार ईरान से आने वाले तीर्थयात्रियों की जांच करने और उन्हें क्वारंटाइन करने में बुरी तरह से असफल रही. नतीजा यह रहा है कि सिंध में कोरोना बहुत तेजी से फैल गया. अगर सिंध की सरकार ने समय पर ईरान से लौटे लोगों की जांच और क्वारंटाइन करना नहीं शुरू किया होता तो अब तक प्रांत राजधानी कराची पाकिस्तान का वुहान बन गया होता.
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पाक सेना का सब्र टूटा
इस महासंकट के बीच इमरान खान केवल कोरी दिलासा दे रहे हैं कि हमें घबराना नहीं है. इमरान लॉकडाउन भी नहीं कर रहे हैं जिससे यह वायरस पाकिस्तान के अन्य प्रांतों में तेजी से पांव पसार रहा है. संकट की इस घड़ी में पाकिस्तान की सेना को भी समझ आ गया है कि इमरान सरकार कोरोना से जंग में कुछ नहीं कर पाएगी. इसी वजह से 23 मार्च को पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल बाबर इफ्तिखार ने घोषणा की कि प्रांतों की मांग पर पूरे देश में सेना की तैनाती की जाएगी. सेना का यह ऐलान इस बात का स्पष्ट संदेश था कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को लेकर सेना का सब्र टूट रहा है. सेना को लग रहा है कि संकट की इस घड़ी में जब देश को सबसे ज्यादा जरूरत है तब इमरान खान सही से 'कप्तानी' नहीं कर पा रहे हैं. यही नहीं 24 मार्च को कई टीवी चैनलों ने पीएम इमरान खान का जमकर मजाक उड़ाया था. उधर, आलोचनाओं के बीच सेना की मदद इमरान खान अपनी जिद पर अड़ गए हैं. उन्होंने सिंध की सरकार के लॉकडाउन के फैसले का विरोध किया है.
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तबलीगी जमात जैसे कट्टरपंथी हावी
नेतृत्व के इस संकट के बीच कट्टरपंथी मौलाना फायदा उठा रहे हैं. पिछले तबलीगी जमात का जलसा इसका उदाहरण है. तबलीगी जमात के इस जलसे की वजह से पूरे पाकिस्तान में कोरोना के सैकड़ों मरीज बढ़ गए. यह जमात के इस इज्तिमे को इमरान एक करीबी ने अनुमति दिलवाया था. डॉक्टरों को मास्क और अन्य सामान मुहैया कराने की बजाय इमरान दावा कर रहे हैं कि पाकिस्तान में युवा ज्यादा है और उनका देश इस महामारी से बच जाएगा. इमरान की इस अक्षमता के बाद खुद सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को 1 अप्रैल को केंद्र और प्रांतों की सरकारों के साथ बैठक करनी पड़ी. इससे इमरान खान सरकार की भौहें चढ़ गईं. अब इस पूरे महामारी को रोकने की कमान सेना के एक अधिकारी जनरल हमूद खान को दे दी गई है. माना जा रहा है कि इस महामारी के खात्मे के बाद इमरान खान सरकार का जाना तय हो सकता है. बताया जा रहा है कि सेना ने विपक्षी नेताओं से इमरान को हटाने को लेकर संपर्क करना शुरू कर दिया है. नवाज शरीफ को मेडिकल ग्राउंड पर विदेश जाने की अनुमति देने के बाद इन अटकलों को और ज्यादा बल मिला है.
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'इमरान खान के पास मात्र 3 महीने का वक्त'
पाकिस्तान के मशहूर ऊर्दू पत्रकार सुहैल वरैच का कहना है कि इमरान खान के पास मात्र जून महीने तक का समय है. अगर इमरान खान अपने प्रशासन को एकजुट करने और विपक्ष के साथ मतभेद को दूर करने में असफल रहते हैं तो देश में हिंसात्मक राजनीतिक बदलाव होगा. माना जा रहा है कि सेना ने इमरान को 3 महीने का समय दिया है और कहा है कि वह अब उनके पापों का बोझ नहीं उठाएगी. अगर इमरान खान की सत्ता जाती है तो वह एक और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री होंगे जो अपना कार्यकाल नहीं पूरा कर पाए.
HIGHLIGHTS
- पाकिस्तान सेना का इमरान खान से हुआ पूरी तरह मोहभंग.
- कोरोना संकट से रावलपिंडी मुख्यालय का सब्र पूरी तरह टूटा.
- जून के बाद पाकिस्तान सेना उठा सकती है बड़ा कदम.