बीसवीं सदी के 40 के दशक में अपने अस्तित्व में आने से पहले ही भारत को अपना शत्रु मान चुका पाकिस्तान अब कहीं जाकर राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को अमली जामा पहना पाया है. सात साल के गहन मंथन और दर्जनों बैठक के बाद इसका प्रारूप तय किया गया है. पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान ने राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को नागरिक केंद्रित करार दिया है, जिसमें नागरिकों की सुरक्षा एवं गरिमा सुनिश्चित करना सर्वोपरि है. इस राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के मूलभूत तत्वों में आर्थिक सुरक्षा को सबसे ज्यादा तवज्जो दी गई है. कहा गया है कि राष्ट्र की आर्थिक सुरक्षा से ही राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाएगी. मंत्रिमंडल की स्वीकृति मिलने के बावजूद नागरिकों की बात करने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के बिंदुओं को आम नहीं किया गया है. 110 पन्नों की इस रिपोर्ट का एक बड़ा हिस्सा गोपनीय ही रखा गया है. सिर्फ एक छोटे हिस्से को ही वजीर-ए-आजम इमरान खान ने आम किया है. इससे यह साफ हो गया है कि आर्थिक स्तर पर खोखले हो चुके पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति भी खोखली है. इसकी वजह आर्थिक पहलू है, जो पाकिस्तान को कंगाली के द्वार तक ले आई है.
मजबूत सेना के साथ समन्वय पूरी तरह से स्पष्ट नहीं
पाकिस्तान को लेकर एक बात और कही जाती है. वह यह है कि देशों के पास उनकी एक सेना होती है, लेकिन पाकिस्तानी सेना के पास एक देश है. इसी वजह से आर्थिक सुरक्षा को सर्वोपरि रखने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को लेकर पहला संशय खड़ा होता है. पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम युसूफ का कहना है कि नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में आमजन की सुरक्षा मूलबिंदु में हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पूरी तरह से सार्वजनिक नहीं होने से अभी यह भी पता नहीं चल सका है कि राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर इमरान सरकार और पाकिस्तान सेना के बीच किस तरह का समन्वय होगा. अगर दस्तावेज जारी होने में और विलंब होता है तो साफ होगा कि सेना और निर्वाचित सरकार में विभिन्न मसलों पर अड़ंगा कायम है. ऐसे में यदि आर्थिक सुरक्षा के मसले पर निर्वाचित सरकार के साथ है, तो भी यह संशय बरकरार रहेगा कि क्या वह वास्तव में पाकिस्तान की दशा-दिशा बदलने की इच्छुक है. विशेषकर विद्यमान स्थितियों में जहां सेना और सरकार में संसाधनों को लेकर खींचतान रहती है. यानी यक्ष प्रश्न यही खड़ा होता है कि क्या पाकिस्तानी सेना आर्थिक संसाधनों को लेकर निर्वाचित सरकार को अंतिम निर्णय का अधिकार देगी? वजह यह है कि यदि ऐसा होता है, तो पाकिस्तान सेना की संसाधनों पर पकड़ ढीली होगी.
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आसान नहीं मिलेट्री कॉर्पोरेशन तोड़ना
हालिया व्यवस्था में पाकिस्तान सेना का ही देश के समग्र राजस्व पर पहला दावा रहता है. पाकिस्तानी सेना ने कभी भी रक्षा पर खर्च हो रही रकम को पूरी तौर पर सामने नहीं आने दिया है. इसके साथ ही पाकिस्तानी सेना ने ही कभी भी अपने अधिकारियों या हितग्राहियों के रियल एस्टेट व्यवसाय और अन्य पहलुओं का कभी ऑडिट होने दिया है. शायद ही कभी पाकिस्तानी सेना ने रक्षा को छोड़ किसी अन्य क्षेत्र को संसाधनों का बहुतायत में इस्तेमाल करने दिया हो. तुर्रा यह है कि आंतरिक और बाहरी, यहां भारत पढ़ें, खतरों का भय दिखाकर रक्षा क्षेत्र में हो रहे विशालकाय खर्च को सही ठहराने की कोशिश की है. सामरिक जानकार भी मानते हैं कि जनरल जिया के दौर से भी पहले पाकिस्तानी सेना राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सभी क्षेत्रों पर नियंत्रण रखते हैं. ऐसे में अगर राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पाकिस्तान के तंत्र और प्रशासन में आमूल-चूल बदलाव लाना चाहती है, तो उसे सेना पर हो रहे अंधाधुंध खर्चों में पारदर्शिता लानी होगी और पाकिस्तानी विद्वान आयशा सिद्दिका के शब्दों में मिलेट्री कॉर्पोरेशन को तोड़ना होगा. जाहिर है यह आसान काम नहीं होगा.
भारत को लेकर बदलना होगा नजरिया
अगर राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का ही संदर्भ लें तो यह सवाल पाकिस्तान को खुद से ही करना होगा. और वह यह है कि क्या वह अपनी आवाम की आर्थिक-मानवीय सुरक्षा को वरीयता देते हुए सामान्य स्थिति और देश के वास्तविक विकास के लिए भारत के प्रति अपनी नीति को पूरी तरह से बदलेगा? द्वि राष्ट्र सिद्धांत का परिणाम होने की वजह से पाकिस्तान ने अपनी अलग पहचान को बेहद निर्ममता से लागू किया हुआ है. यही वजह है कि 75 साल बाद भी पाकिस्तान दूर-दूर तक भारत से कहीं पीछे है. ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के तहत सकारात्मक पहचान के लिए पाकिस्तान को भारत विरोध नीति का परित्याग करना होगा और भारत के खिलाफ दुष्प्रचार की नकारात्मक सोच का परित्याग करना होगा. इसके लिए उसे सबसे पहले अपनी कश्मीर नीति का परित्याग करना होगा. इसके कारण ही पाकिस्तान दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ सामान्य रिश्ते नहीं रख सका है. अगर संबंध सामान्य होते तो भारत की वजह से उसे अब तक आर्थिक मोर्चे पर जबर्दस्त फायदा हो चुका होता. फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
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भारत के लिए क्या कहा गया सुरक्षा नीति में
पाकिस्तान की पहली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में किसी अन्य देश की तुलना में भारत का नाम कम से कम 16 बार लिया गया है. अपरोक्ष रूप से और भी कहीं ज्यादा. इमरान खान ने राष्ट्रीय सुरक्षा नीति जारी करते हुए कहा, ‘हमारे सशस्त्र बल हमारे गौरव हैं और देश को एकजुट रखने वाली गोंद है. क्षेत्र में खतरे और हाइब्रिड युद्ध के बढ़ते खतरे के मद्देनजर उन्हें अधिक समर्थन, सहयोग और महत्व मिलना जारी रहेगा.’ यानी पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ अपना छद्म युद्ध चलाती रहेगी. फिर भी कहा गया है कि आतंकवाद ने राष्ट्रीय सुरक्षा औऱ संप्रभुत्ता को काफी हद तक प्रभावित किया है. इस पर जोर दिया गया है कि पाकिस्तान अपनी धरती का इस्तेमाल किसी तरह की आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं होने देगा. इसके साथ ही सुरक्षा नीति में भारत में केसरिया शासन के उद्य को क्षेत्रीय संप्रभुत्ता के लिए खतरा बताया गया है. पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मुईद युसूफ ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर को द्विपक्षीय संबंध के केंद्र में रखा गया है’. जब उनसे पूछा गया कि इससे भारत को क्या संदेश जाता है तो उन्होंने कहा, ‘यह भारत को कहता है कि सही कार्य करिए और हमारे लोगों की बेहतरी के लिए क्षेत्रीय संपर्क से जुड़िए. यह भारत को यह भी कहता है कि अगर आप सही कार्य नहीं करेंगे तो इससे पूरे क्षेत्र को नुकसान होगा और उसमें भी सबसे अधिक भारत का नुकसान होगा.’
जाहिर है पाकिस्तान की आर्थिक नीतियों और तंत्र पर पाकिस्तानी सेना का कब्जा होने से ही राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर सबसे पहला संशय जाता है. फिर भारत के प्रति उसकी सोच उसे जनहित नीतियों को अमली-जामा पहनाने से रोकेगी. और भी अन्य पहलू हैं, जो दस्तावेज सामने आने के बाद ही साफ हो सकेंगे. इसी के मद्देनजर खोखले हो चुके पाकिस्तान की पहली बार बनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को भी खोखला ही माना जा रहा है, जो शेष विश्व को एक और धोखा देने का ही प्रयास ज्यादा लग रहा है.
HIGHLIGHTS
- सात साल के गहन मंथन और दर्जनों बैठक के बाद इसका प्रारूप तय
- आधे से ज्यादा हिस्सा गोपनीय, जारी पन्नों में सेना ही सबकुछ
- जम्मू-कश्मीर का दर्जनों बार नाम ले शांति के लिए बताया अहम