हाल ही में भारत की राजधानाी दिल्ली में हुई जी 20 की मीटिंग में बाकी मसलों के अलावा जिस फैसले ने पूरी दुनिया को चौंकाया था वो था भारत और मिडिल ईस्ट के जरिए यूरोप तक पहंचने का एक नया कॉरिडोर बनाने का फैसला हुआ. अमेरिका के साथ पार्टनरशिप में बनने वाले इस कॉरिडोर में सऊदी अरब यूएई और इजरायल जैसे देश शामिल होंगे. इस कॉरिडोर को गेंम चेंजर बताया जा रहा है साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि ये चीन के बेल्ट एंट रोड इनिशियटिव यानी BRI का भारत और अमेरिका की ओर से एक जवाब होगा, लेकिन चीन से पहले इस कॉरिडोर को लेकर टर्की टेंशन में आ गया है और वो अब इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकॉनोमिक कॉरिडोर यानी IMEC को फ्लॉप करने के लिए एक अलग कॉरिडोर बनाने के मंसूबे पाल रहा है. टर्की भले ही अमेरिकी लीडरशिप वाले मिलिट्री गठबंधन नाटो का मेंबर हो लेकिन बड़े मसलों पर वो अक्सर अमेरिका से अलग राय रखता है और खास तौर के उसके प्रेजीडेंट एर्दोअन तो इस्लामिक देश होने के नाते पाकिस्तान के काफी करीब है और कश्मीर जैसे मसले पर इंटरनेशनल मंचों पर भारत के खिलाफ बयानबाजी भी करते रहते हैं तो टर्की को आखिकार IMEC खिलाफ क्य़ों है और इसे टक्कर देने का उसका प्लान क्या कामयाब होगा ये बात हम आपको तफ्सील से बताएंगे, लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि आखिरकार IMEC है क्या जिसने चीन और टर्की दोनों के परेशान कर दिया है.
इस प्रोजेक्ट में अमेरिका के साथ-साथ कई देश हैं शामिल
दरअसल IMEC एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसके जरिए भारत से यूरोप तक सामान पहंचाने के लिए एक अलग रास्ता तैयार किया जाएगा. इस प्रोजेक्ट में भारत, UAE, सऊदी अरब, जर्मनी, इटली,अमेरिका, फ्रांस, यूरोपीय यूनियन ,इजरायल और जॉर्डन जैसे देश शामिल होंगे. इस नए रास्ते या कॉरिडोर के जरिए भारत से जर्मनी तक कार्गो को पहुंचाने में 40 फीसदी वक्त की बचत होगी. फिलहाल भारत का सामान शिपिंग के जिए जर्मनी तक 36 दिन में पहुंचता है लेकिन इस कॉरिडोर के बनने के बाद ये दूरी 22 दिन में तय हो जाएगी.
IMEC एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसमें इंन्फ्रास्ट्रक्चर का भी विकास होगा और जिससे भारत की यूरोप तक पहंचना आसान हो जाएगी. ये ठीक उसी तरह है जैस चीन अपने BRI प्रोजेक्ट के जरिए कई देशों में निवेश कर रहा है. IMEC प्रोजेक्ट मे कुल 6,000 किलोमीटर का गलियारा तैयार किया जाएगा. इसमें 3,500 किमी समुद्री मार्ग और 2500 किमी जमीनी मार्ग होगा. इस प्रोजेक्ट के तहत पहले भारत के मुंबई पोर्ट से कार्गो समुद्री मार्ग से खाड़ी के देशों तक जाएगा. वहां से रेल नेटवर्क के जरिए इजरायल के हाइफा पोर्ट तक पहुंच कर फिर से समुद्री मार्ग के जरिए ग्रीस के जरिए यूरोप में एंट्री लेगा. इस कॉरिडोर में रेलवे लाइन के साथ-साथ हाई-स्पीड डेटा केबल, हाइड्रोजन पाइपलाइनऔर इलेक्ट्रिसिटी केबल भी होगी.
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टर्की को अपनी अहमियत कम होने का डर
जाहिर है ये कॉरिडोर अपने आप में एक मेगा प्रोजेक्ट है और इसके लिए खाड़ी के देशों में रेलवे का बड़ा नेटवर्क भी बैठाना होगा. अब आते हैं उस सवाल पर कि भारत की अहमियत बढ़ाने वाले इस प्रोजेक्ट से टर्की को क्या परेशानी है. दरअसल टर्की एक ऐसा देश है जो कई सौ सालों से अपनी लोकेशन के चलते काफी फायदा उठाता रहा है. टर्की का भूगोल कुछ ऐसा है कि वो यूरोप और पश्चिन एशिया के बीच में स्थित है यानी यूरोप और मिडिल-ईस्ट के बीच के आवागमन में टर्की की अहम भूमिका है या अगर दूसरे शब्दों में कहें तो भारत और फिर मिडिल ईस्ट की तरफ से यूरोप जाने का रास्ता टर्की से ही होकर गुजरता है. अब अगर IMEC का प्रोजेक्ट तैयाार हो जाता है तो भूमध्य सागर के इलाके में टर्की की अहमियत कम हो जाएगी जबकि टर्की खुद के इस इलाके का सिकंदर समझता है. टर्की का मानना है कि ये व्यापारिक प्रोजेक्ट आगे चलकर नहीं जियो पोलिटिकल फ्रंट बन जाएगा. इस इलाके के ग्रीस और साइप्रस जैसे देशों के साथ टर्की का ताल्लुक दुश्मनी भरे हैं. इस प्रोजेक्ट को टक्कर देने के लिए अब टर्की के प्रेजीडेंट एर्दोअन एक नया कॉरिडोर बनाना चाहते हैं. लेकिन ये इतना आसान नहीं है. टर्की की योजना इराक के रास्ते एक 1,200 किमी का क़ॉरिडोर बनाने की है. इसमें हाइ स्पीड रेल नेटवर्क और सड़क मार्ग का निर्माण होगा. इसमें करीब 17 अरब डॉलर का खर्च आएगा.
टर्की को इन देशों से है उम्मीद
टर्की के आर्थिक हालात फिलहाल ठीक नहीं हैं लिहाजा उसे इस प्रोजेक्ट्स के लिए पार्टनर्स की तलाश होगी, लेकिन गृह युद्ध जैसे हालात से जूझ रहे इराक जैसे देश से गुजरने वाले इस प्रोजेक्ट में पैसा लगाना किसी भी देश के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है. अपनी जेब तंग होने के चलते टर्की इस प्रोजेक्ट के लिए के लिए यूएई और कतर जैसे रईस देशों की मदद चाहता है लेकिन ये देश तभी मदद करेंगे जब उन्हें मुनाफा होने की उम्मीद होगी. यानी भारत को यूरोप से जोड़ने वाले कॉरिडोर के प्रोजेक्ट की टक्कर का प्रोजेक्ट तैयार करने की टर्की की योजना के रास्ते में कई रुकावटें हैं. हालांकि अभी तक चीन ने इस नए प्रोजेक्ट के खिलाफ अपने पत्ते नहीं खोले हैं . एक संभावना ये भी है कि मिडिल ईस्ट में पहले से ही प्रोजेक्ट बीआरआई को चला रहा चीन आगे चलकर टर्की से हाथ मिला ले लेकिन फिलहाल ये दूर की कौड़ी नजर आ रहा है.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau