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संत रविदास जयंती पर मत्था टेकने की होड़, पंजाब-उत्तर प्रदेश चुनाव पर नजर

रविदास जयंती पर सोशल मीडिया और जमीनी समारोहों में भाग लेकर राजनीतिक दल भी अपनी चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. आइए, जानते हैं कि पंजाब और उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों के बीच संत रविदास जयंती मनाने की होड़ क्यों है?

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Keshav Kumar
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वाराणसी में संत रविदास का जन्म हुआ था( Photo Credit : News Nation)

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माघी पूर्णिमा और संत रविदास जयंती पर मंदिरों में राजनीतिक हस्तियों के जमावड़े की सुर्खियों ने विधानसभा चुनाव से इसके जुड़ाव पर काफी जोर दिया है. खासकर उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर संत रविदास जयंती पर सभी दलों ने अपनी भागीदारी दिखाई. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में करोल बाग स्थित श्री गुरु रविदास विश्राम धाम मंदिर पहुंचकर शीश नवाया. दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने रविदास जयंती को लेकर पहले ही सार्वजनिक छुट्टी का ऐलान किया. वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी वाराणसी जाकर रविदास मंदिर में होने वाले समारोह में हिस्सा लिया.

संत रविदास की जन्मस्थली वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है. साथ ही उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भी काफी अहम और चर्चित क्षेत्र है. फिलहाल उत्तर प्रदेश में पांच चरणों का मतदान होना बाकी है. वहीं, पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिए पहले घोषित मतदान की तारीख को रविदास जयंती की वजह से बदलकर आगे बढ़ाया जा चुका है. रविदास जयंती पर सोशल मीडिया और जमीनी समारोहों में भाग लेकर राजनीतिक दल भी अपनी चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. आइए, जानते हैं कि पंजाब और उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों के बीच संत रविदास जयंती मनाने की होड़ क्यों है?

पंजाब विधानसभा चुनाव -  

पंजाब में संत रविदास को मानने वालों की संख्या लाखों में है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक पंजाब में 31.9 फीसदी दलित आबादी है. इसमें से 19.4 फीसदी दलित सिख हैं और 12.4 फीसदी हिंदू दलित हैं. वहीं कुल दलित आबादी में से करीब 26.33 फीसदी मजहबी सिख, 20.7 फीसदी रविदासी और रामदासी, 10 फीसदी अधर्मी और 8.6 फीसदी वाल्मीकि समाज से आते हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक पंजाब की कुल 117 सीटों में से 98 विधानसभा क्षेत्रों में 49 फीसदी से 20 फीसदी तक दलित मतदाता हैं. राज्य में विधानसभा की 34 सीटें आरक्षित हैं. पंजाब के मालबा और दोआब- मांझा क्षेत्र में भी दलित वोटर्स चुनाव को काफी प्रभावित करते हैं. ऐसे में इन सीटों का महत्व सरकार बनाने के वक्त काफी बढ़ जाता है. यह सबसे बड़ा कारण है कि चुनाव से पहले सभी दल संत रविदास जयंती के सहारे दलित वोटरों को रिझाने में जुट गए हैं.

पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए एक साथ सभी 117 सीटों पर 20 फरवरी को मतदान होने वाला है. साल 2017 के चुनाव में 77 सीटें जीतकर कांग्रेस ने  सरकार बनाई थी. 20 सीटें हासिल करने के साथ आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर थी. इस बार आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के अलावा शिरोमणी अकाली दल-बसपा और बीजेपी- अमरिंदर-ढिंढसा गठबंधन भी मुकाबले में मानी जा रही है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव - 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वाराणसी में सीरगोवर्द्धन स्थित रविदास मंदिर में दर्शन करने पहुंचे. दर्शन और पूजन के बाद उन्होंने लंगर भी छका. सीएम योगी पहले भी वहां मत्था टेकने जा चुके हैं. कांग्रेस महासचिव और प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी और राहुल गांधी का भी वाराणसी के इस मंदिर में कार्यक्रम है. उत्तर प्रदेश की सियासत में भी संत रविदास मंदिर का बड़ा स्थान है. इस मामले पर पहले बसपा सुप्रीमो मायावती का भी खूब बयान आता था. दलित सियासत के केंद्र माने जाने वाले रविदास मंदिर पर कार्यक्रम में देश भर के अनुयायी पहुंचते हैं.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दो चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है. राजनीतिक जानकार इन चरणों में मतदान वाले इलाके को जाट प्रभाव लैंड और यादवों के असर वाला लैंड कहकर भी चिन्हित कर रहे हैं. इन दोनों चरणों को प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए मुश्किल टास्क कहा जा रहा था. अगले चरणों में मतदान होने वाले इलाकों में बड़े हिस्से को दलित प्रभाव वाला इलाका कहा जा रहा है.

उत्तर प्रदेश की विधानसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 86 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से 84 सीटें एससी और 2 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. प्रदेश में जातीय समीकरणों का जो आंकड़ा बताया जाता है उसमें पहले नंबर पर पिछड़ा वर्ग का है. दूसरे नंबर पर दलित और तीसरे पर सवर्ण और चौथे नंबर पर मुस्लिमों का होना बताया जाता है. आंकड़े के मुताबिक दलित वोटरों की संख्या करीब 21 से 22 फीसदी है.  दलित वोटों को इकट्ठा करने की मारामारी इस बार भी सामने आ रही है.

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संत रविदास के बारे में जानें - 

संवत 1443 में माघ पूर्णिमा के दिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी में संत रविदास का जन्म हुआ था. उन्होंने साधु-संतों की संगत में आध्यात्मिक ज्ञान पाकर कर्म को ही जीवन का मूल माना था. संत रविदास ने संवत 1540 में अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था. आत्मज्ञान, एकता, भाईचारे पर आधारित और जाति प्रथा जैसी कुरीतियों पर प्रहार करते उनके दोहे उनके अनुयायियों के लिए अमृत वचन बन गए. धीरे-धीरे उनके अनुयायी खुद को रविदासिया समुदाय का कहने लगे. उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और मुख्य रूप से पंजाब में इस समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं.

HIGHLIGHTS

  • पंजाब में संत रविदास को मानने वालों की संख्या लाखों में है
  • वाराणसी में सीरगोवर्द्धन स्थित रविदास मंदिर में दर्शन की होड़
  • संत रविदास ने आध्यात्मिक ज्ञान और कर्म को ही जीवन का मूल माना
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