बीते एक महीने से लद्दाख (Ladakh) में भारत-चीन सीमा की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर जारी गतिरोध को दूर करने के लिए दोनों देशों के शीर्ष सैन्य कमांडरों के बीच बातचीत हो रही है. मीडिया में चल रहे कयासों के बीच भारतीय सेना ने दो-टूक कहा है कि उचित माध्यमों से गतिरोध दूर करने के प्रयास जारी हैं. हालांकि इस बातचीत के बीच में छह साल पहले सामने आए ऐसे ही गतिरोध की यादें भी ताजा हो आई हैं, जिसे समाप्त करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहम भूमिका निभाई थी. यह विवाद इसलिए भी उल्लेखनीय है कि गतिरोध के सामने आने के समय चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के दौरे पर आए थे.
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छह साल पहले चुमार में घुसे थे चीनी सैनिक
जानकार बताते हैं कि सीमा पर गतिरोध के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनयिक स्तर पर ही पूरे मसले को सुलझा लिया था. छह साल पहले बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में विवाद की शुरुआत हुई. 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत दौरे पर थे. पीएम मोदी ने उनके स्वागत के लिए कई भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया था. इसमें से एक था साबरमती नदी के किनारे रिवर फ्रंट पर झूले में बैठकर वार्तालाप. बताते हैं कि जब दोनों नेता झूले पर बैठकर द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा कर रहे थे, ठीक उसी वक्त लद्दाख बॉर्डर पर चुमार इलाके में चीन के सैनिक अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे.
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10 किमी तक दोनों देशों में थी सेना तैनात
बताते हैं कि 2014 में सितंबर के दूसरे हफ्ते में चीन के सैनिकों ने चुमार में रोड बनाने की कोशिश की. पीएलए के सैनिक 30आर वाले इलाके को काट कर सड़क बनाना चाहते थे. सड़क निर्माण के लिए चीन के सैनिक कई तरह के उपकरण और औजार लेकर पहुंचे थे. भारत की तरफ से उन्हें रोकने की कोशिशें की गईं. इस बीच चीन के सैनिक बड़ी संख्या में यहां पहुंच गए और हाथापाई की नौबत आ गई. जिनपिंग का भारत दौरा शुरू होते ही एलएसी के दोनों तरफ करीब 10 किलोमीटर तक दोनों देशों के सैनिकों के बीच तनातनी बढ़ गई. दावा किया जाता है कि उस समय चीन के 1500 सैनिकों के सामने भारत ने ढाई हज़ार सैनिकों को तैनात कर दिया था. 800 सैनिक तो आमने-सामने खड़े थे.
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सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण है चुमार
भारत-चीन सीमा की वास्तविक नियंत्रण रेखा के अन्य इलाकों की तरह लद्दाख के चुमार में भी खतरनाक पहाड़ हैं. इनकी ऊंचाई 16-18 हज़ार फीट के आसपास है. यहां तापमान बेहद कम होता है. साथ ही यहां खतरनाक बर्फीली हवाएं चलती हैं. ये ऐसा इलाका है जहां भारत की सड़क एलएसी तक है. यहीं पर एक नाले जैसी छोटी नदी भी है. नक्शे पर इस इलाके को 30आर का नाम दिया गया है. दरअसल यहां करीब 30 मीटर की चढ़ाई है. नाले के उस पार चीन की सड़क है. उनके सैनिक यहां तक तो गाड़ी में पहुंच जाते हैं लेकिन इसके बाद चढ़ाई के चलते इन्हें एलएसी तक पहुंचने के लिए पैदल चलना पड़ता है. कई बार वह यहां तक आने के लिए घोड़ों का भी इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में भारतीय सैनिक को उन्हें चेतावनी देकर वापस भेजने में काफी समय मिल जाता है. 2013 और 2014 के दौरान इस क्षेत्र में चीनी सैनिकों ने काफी बार ऐसा करने की कोशिश की है.
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चीनी शर्तों को नहीं माना था भारत
भारतीय सैनिकों की आपत्ति और भौगोलिक स्थितियों से जुड़ी चुनौतियों के कारण चीन को जब लगा कि वह वहां सड़क नहीं बना सकता है, तब बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की कोशिश की गई. चीन ने उस वक्त भारत के सामने मुख्य तौर पर दो मांगे रखी थी- चुमार में भारत के सैनिकों के लिए बन रहे घरों का निर्माण बंद हो, साथ ही देमचोक में बन रहे वॉटर चैनल को बंद किया जाए. बाद में राजनयिक स्तर पर मामले को सुलझाया गया. उन दिनों बीजिंग में अशोक कांता भारत के राजदूत थे. चीन 30आर पर सड़क न बनाने की बात मान गया. दो हफ्ते के अंदर भारत और चीन ने अपने सैनिकों को वापस बुला लिया. साथ ही चुमार में भारत के सैनिकों के लिए बन रहे घरों का निर्माण भी बंद नहीं हुआ. ऐसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनयिक कौशल के चलते हो सका था. ऐसे में इस बार भी उम्मीद की जा रही है कि पीएम मोदी की कूटनीति के आगे ड्रैगन को अपने पैर वापस खींचने ही पड़ेंगे.
HIGHLIGHTS
- छह साल पहले शी जिनपिंग के दौर के वक्त लद्दाख में हुआ था सीमा गतिरोध.
- चुमार की एलएसी पर भारत-चीन की सेना आ गई थीं आमने-सामने.
- उस वक्त पीएम नरेंद्र मोदी के राजनयिक कौशल से पैर खींचे थे ड्रैगन ने.