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किसान आंदोलन में पाकिस्तान परस्त Anti Nationals... उन्हें खाद-पानी देते हमारे नेता

सत्ता खासकर पीएम मोदी विरोध की आग में राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए विपक्ष वह भी करने को तैयार है, जिससे भारत विरोधी ताकतों को बल मिले.

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Nihar Saxena
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यह फोटी पर्याप्त है बताने के लिए कि किसान आंदोलन पर भारत विरोधी हावी.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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अगर पैटर्न पर निगाह डाली जाए तो नागरिकता संशोधन कानून और कृषि कानूनों के खिलाफ देश-विदेश में मोदी सरकार विरोधी माहौल एक खतरनाक संकेत देता है. दिल्ली की सीमा पर डटे किसानों को कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों का समर्थन. भारत बंद के आह्वान के बीच विदेशी राष्ट्रों की आंदोलन के समर्थन में गुहार और पीएम नरेंद्र मोदी को नसीहत. कई देशों में किसान आंदोलन की आड़ में भारत विरोधी नारे. यह बताता है कि सत्ता खासकर पीएम मोदी विरोध की आग में राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए विपक्ष वह भी करने को तैयार है, जिससे भारत विरोधी ताकतों को बल मिले.

कनाडा खालिस्तान समर्थकों का गढ़
सबसे पहले बात करते हैं कनाडा की. प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने मानवाधिकारों का हवाला दे किसान आंदोलन को समर्थन दिया. यहां तक की कनाडाई उच्चायुक्त को भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से तलब करने और डिमार्शे देने और द्विपक्षीय संबंधों पर दूरगामी असर पड़ने की चेतावनी के बावजूद ट्रूडो अपने बयान पर अडिग रहे. माना जा सकता है कि कनाडा में भारतीय मूल के सिख नेताओं के दबाव में ट्रूडो को यह स्टैंड लेना पड़ा. यह अलग बात है कि यही ट्रूडो किसानों की एमएसपी समेत तमाम सब्सिडी देने के खिलाफ रहे हैं. 

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जस्टिन ट्रूडो का दोगलापन
ट्रूडो की हकीकत अगर समझनी है तो इस पर गौर करें. भाजपा के विदेश मामलों के प्रभारी विजय चौथाइवाले ने ट्वीट किया, 'वह (कनाडा) भारत के किसानों को बचाने के लिए लागू आयात पांबदियों का विरोध करता है. डल्ब्यूटीओ में भारत की कृषि नीतियो कनाडा ने सवाल उठाए और यह इस हकीकत के सबूत हैं भारत के किसानों और कृषि उत्पादकों की वास्तविक बेहतरी को लेकर कनाडा की चिंता कितनी कम है.'  

ब्रिटेन में भी भारत विरोधी ताकतें सक्रिय
यहां यह भूलने की रत्ती भर भी जरूरत नहीं है कि कनाडा खालिस्तान समर्थकों का गढ़ है. संदेह पैदा होने की यही बड़ी वजह है कि कहीं पाकिस्तान की शह पर खालिस्तान के पक्षधर किसान आंदोलन की आड़ में पंजाब के किसानों की भावनाओं के साथ तो नहीं खेल रहे हैं. कनाडा के बाद बारी आती है ब्रिटेन की, जहां भी बड़ी संख्या में सिख रहते हैं. वहां भी किसान आंदोलन के समर्थन में रैलियां निकाली गईं. कनाडा की ही तर्ज पर लंदन में भी खालिस्तान समर्थकों की संख्या अच्छी-खासी है. रिफ्रेंडम 2020 भी यही से जोर पकड़ा था. सीएए के खिलाफ भी लंदन में जमकर तमाशा हुआ था.

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लंदन की रैली में भारत विरोधी नारे
हालांकि ब्रिटेन के मध्य लंदन में रविवार को भारतीय उच्चायोग के बाहर कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में किए गए प्रदर्शन के दौरान स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया. स्कॉटलैंड यार्ड ने भारतीय उच्चायोग के बाहर ब्रिटेन के अलग-अलग हिस्सों से प्रदर्शनकारियों के जमा होने से पहले चेतावनी दी थी. प्रदर्शन में मुख्य रूप से ब्रिटिश सिख शामिल थे जो तख्तियां पकड़े हुए थे, जिनपर 'किसानों के लिए न्याय' जैसे संदेश लिखे थे. यह अलग बात है कि इस प्रदर्शन में तख्तियां तो किसान समर्थक थीं, लेकिन कुछ जबान भारत विरोधी नारों से लपलपा रही थी.

भड़काऊ भाषणों से उत्तेजित करने की कोशिश
भारतीय उच्चायोग के एक प्रवक्ता ने दो टूक कहा कि यह जल्द स्पष्ट हो गया कि लोगों के जमवाड़े की अगुवाई भारत विरोधी अलगाववादी कर रहे थे जिन्होंने भारत में किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करने के नाम पर भारत विरोधी अपना एजेंडा चलाया. उन्होंने कहा कि प्रदर्शन भारत का आंतरिक मामला है और भारत सरकार प्रदर्शनकारियों से बात कर रही है. जदाहिर है भारत विरोधी ताकतों को बल हमारे अपने नेता भड़काऊ बयान जारी कर दे रहे हैं. 

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सीएए का भी समर्थन किया था इन्हीं संगठनों ने
कृषि कानून के खिलाफ आंदोलनरत किसानों को करीब 30 अधिक किसान यूनियन का समर्थन हासिल हैं, जो कमोबेश किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही है. किसान आंदोलन का संचालन संभाल रहीं किसान यूनियन पिछले साल शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ निर्मूल आशंकाओं वाले आंदोलन का समर्थन भी कर चुकी है, जिसे मुस्लिम विरोधी बताकर मुस्लिमों को भड़काया गया था. जिस तरह से कानून को रद्द करने को लेकर किसान यूनियन अड़ी हैं, वो बरबस सीएए आंदोलन की याद दिलाती हैं, जहां कमोबेश ऐसा ही सीन था.

भारत विरोधी ताकतों को खाद-पानी दे रहे हमारे नेता
यही वजह है कि ऐसा मानने के पर्याप्त कारण हैं कि किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन में असामाजिक तत्व घुस चुके हैं, जिसकी तस्दीक खालिस्तान के समर्थन में लग चुके नारे करते हैं. यह नारेबाजी निःसंदेह लोकतांत्रिक परिपाटी वाले देश में आंदोलन की महत्ता खत्म करती है. एक वजह यह भी है किसान यूनियन सरकार के साथ बातचीत में जैसा रवैया अपना रही है, वो आंदोलन को जल्द खत्म करने की दिशा में नहीं दिखता है. आंदोलन को छह महीने लंबा खींचने की तैयारी का खुलासा खुद कथित किसान कर चुके हैं, जिसमें दावा किया गया था कि वो घऱ से कई महीने का राशन लेकर आंदोलन में निकले हैं.

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पाकिस्तान की कश्मीर-खालिस्तान आतंकी नीति
ऐसी स्थिति में पाकिस्तान या भारत विरोधी ताकतों पर अंगुली उठाने की कई वजह है. सबसे पहले तो यही मान लें कि पाकिस्तान की दशकों पुरानी 'के-2' (कश्मीर-खालिस्तान) आतंकी नीति को इमरान सरकार की अगुवाई में पाकिस्तानी सेना और खुफिया नए सिरे से धार देने में जुटी हैं. गौर करें कि जब भारत में किसान रैलियों में खालिस्तान समर्थन में तख्तियां और नारे लग सकते हैं, तो कनाडा और लंदन में लगने में कौन रोक सकता है. दिक्कत तो यही है कि किसानों का समर्थन कर रहे नेता इस बात की अनदेखी कर रहे हैं. सोमवार को भी दिल्ली पुलिस ने खालिस्तान-इस्लामिक संगठनों से जुड़े पांच आतंकियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की है. क्या यह गिरफ्तारी नहीं बताती है कि किसान आंदोलन की आड़ में भारत विरोधी ताकते अपना उल्लू सीधा कर रही हैं...

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