Independence Day 2021:राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी: "मैं मरने नहीं अपितु भारत को स्वतन्त्र कराने के लिये पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं"  

आजादी के इस दीवाने ने हंसते-हंसते फांसी का फन्दा चूमने से पहले वंदे मातरम् की हुंकार भरते हुए कहा था- "मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतन्त्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हू."

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Pradeep Singh
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RN LAHIRI

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी( Photo Credit : News Nation)

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Independence Day 2021:17 दिसंबर, 1927 की सुबह उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिला जेल के अंदर का नजारा कुछ अद्भुत था. जेल के एक सबसे खतरनाक कैदी की हर गतिविधि पर प्रशासन की सख्त निगाह थी. क्योंकि उसी दिन उस कैदी को फांसी होनी थी. लेकिन कैद की पाबंदियों और अपने ऊपर पहरे से अनजान वह कैदी व्यायाम कर रहा था जिसे चंद समय बाद फांसी के फंदे पर झूल जाना है. गोण्डा जेल का यह कैदी और कोई नहीं काकोरी रेल कांड का आरोपी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी था. काकोरी रेल लूट कांड की योजना लाहिड़ी के प्रयासों से ही परवान चढ़ा था.

जेलर ने पूछा कि मरने के पहले व्यायाम का क्या लाभ है? लाहिड़ी ने उत्तर दिया-"जेलर साब! चूंकि मैं हिन्दू हूं और पुनर्जन्म में मेरी अटूट आस्था है, अतः अगले जन्म में मैं स्वस्थ शरीर के साथ ही पैदा होना चाहता हूं ताकि अपने अधूरे कार्यों को पूरा कर देश को स्वतन्त्र करा सकूं। इसीलिए मैं रोज सुबह व्यायाम करता हूँ। आज मेरे जीवन का सर्वाधिक गौरवशाली दिवस है तो यह क्रम मैं कैसे तोड़ सकता हूं?" 

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 29 जून 1901 के दिन पूर्वी बंगाल के पबना जिले के मोहनपुर गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम क्षिति मोहन लाहिड़ी और माता का नाम बसन्त कुमारी था. उनके जन्म के समय पिता क्रान्तिकारी क्षिति मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास की सलाखों के पीछे कैद थे. क्रांतिकारिता उन्हें विरासत में मिली थी. दिल में राष्ट्र-प्रेम की चिन्गारी लेकर मात्र नौ वर्ष की आयु में ही वे बंगाल से अपने मामा के घर वाराणसी पहुंचे. वाराणसी में ही उनकी शिक्षा दीक्षा सम्पन्न हुई. काकोरी काण्ड के दौरान लाहिड़ी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र थे.

राजेन्द्रनाथ काशी की धार्मिक नगरी में पढ़ाई करने गये थे किन्तु संयोगवश वहां उनकी मुलाकात क्रान्तिकारी शचींद्रनाथ सान्याल से हो गयी. राजेन्द्र की फौलादी दृढ़ता, देश-प्रेम और आजादी के प्रति दीवानगी के गुणों को पहचान कर शचीन दा ने उन्हें अपने साथ रखकर बनारस से निकलने वाली पत्रिका बंग वाणी के सम्पादन का दायित्व और अनुशीलन समिति की वाराणसी शाखा के सशस्त्र विभाग का प्रभार भी सौंप दिया.  

क्रान्तिकारियों द्वारा चलाये जा रहे स्वतन्त्रता-आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था को देखते हुए शाहजहांपुर में दल के प्रमुख राम प्रसाद 'बिस्मिल' के निवास पर हुई बैठक में राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी भी सम्मिलित हुए जिसमें सभी क्रान्तिकारियों ने एकमत से अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना को अन्तिम रूप दिया था. इस योजना में लाहिड़ी का अहम किरदार था क्योंकि उन्होंने ही अशफाक उल्ला खां के ट्रेन न लूटने के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप अशफाक ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया था.

आजादी के इस दीवाने ने हंसते-हंसते फांसी का फन्दा चूमने से पहले वंदे मातरम् की हुंकार भरते हुए कहा था- "मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतन्त्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हू."

HIGHLIGHTS

  • काकोरी कांड के राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी थे अहम किरदार
  • 17 दिसंबर,1927 को गोण्डा जेल में हुई थी लाहिड़ी को फांसी 
  • पिता क्रान्तिकारी क्षिति मोहन व बड़े भाई अनुशीलन दल के थे सदस्य

 

independence-day 75th-independence-day independence-day-2021 15 august 2021 Rajendranath Lahiri
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