आखिर तीन दशकों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का अयोध्या में भव्य राम मंदिर (Ram Temple) का सपना पूरा हो रहा है. इस सपने की शुरुआत 30 साल पहले 1990 में शुरू हुई रथ यात्रा के साथ हुई थी. इस रथ यात्रा के रथी तो थे लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) और सारथी थे नरेंद्र मोदी. उस समय भले ही कथित धर्मनिरपेक्षता के नाम पर रथ यात्रा को रोक दिया गया है, लेकिन सारथी नरेंद्र मोदी ने हार नहीं मानी थी. उसी सपने को पूरा करने के अनवरत प्रयास का नतीजा है कि दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के साथ ही 5 अगस्त को तीन दशक पुराना सारथी अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे.
25 सितंबर गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई थी रथ यात्रा
25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से भगवान शिव का आशीर्वाद लेकर सारथी नरेंद्र मोदी अयोध्या के लिए चला था. एक लिहाज से आज 30 साल बाद वह यात्रा पूरी होने वाली है. उस वक्त रोक दी गई राम रथ यात्रा ने देश भर में राम मंदिर की ऐसी लौ जगाई जिसकी परिणति बीते साल सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हो गई, जिसमें अयोध्या की विवादित जमीन को श्रीराम की जन्मस्थली करार दे दिया गया. इसके साथ ही अरबों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो गया.
मंदिर की जिद और सारे प्रयास
भले ही रथी लालकृष्ण आडवाणी आज भारतीय जनता पार्टी के मार्गदर्शन मंडल में बैठे हों, लेकिन सारथी नरेंद्र मोदी उस सपने को अब मूर्त रूप देने जा रहा है. राम मंदिर के लिए नरेंद्र मोदी के मन में जिद ऐसी थी कि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद भी एक बार अयोध्या में रामलला के दर्शन करने की जिद नहीं की. यहां तक कि बतौर पीएम उम्मीदवार घोषित होने के बावजूद उन्होंने एक भी रैली अयोध्या में नहीं की. अब जब वह अयोध्या में कदम रखेंगे तो राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए.
गुजरात बीजेपी के संगठन महामंत्री थे मोदी
आज की पीढ़ी को उस रथ यात्रा के बारे में शायद ही पता हो. तो बताते चलें कि उस रथ यात्रा के रथी थे आज की भाजपा के भीष्म पितामह लालकृष्ण आडवाणी. सारथी थे, नरेंद्र मोदी जो आज देश के प्रधानमंत्री हैं, जो उस समय गुजरात भाजपा के संगठन महामंत्री हुआ करते थे. असल में राष्ट्रीय स्तर पर मोदी का अवतरण इसी रथ यात्रा के जरिए हुआ था. जानकारों के मुताबिक इस यात्रा के रणनीतिकार और शिल्पी नरेंद्र मोदी ही थी. यात्रा के मार्ग और कार्यक्रम को लेकर औपचारिक तौर पर सबसे पहले जानकारी भी मोदी ने ही 13 सितंबर 1990 को दी थी. कहा जाता था कि इस यात्रा की हर सूचना जिस एक शख्स के पास होती थी वे मोदी ही थे. कुछ जानकारियां तो आडवाणी को भी बाद में मिलती थी.
बीजेपी का ऐसे मुद्दा बना राम मंदिर
वास्तव में जून 1989 में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में भाजपा के अधिवेशन में राम मंदिर पहली बार पार्टी के एजेंडे में आया. इसके बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रस्ताव पारित कर अयोध्या में राम मंदिर बनाने का संकल्प लिया गया. इस दिशा में सोमनाथ से अयोध्या तक की आडवाणी की राम रथ यात्रा पहली बड़ी पहल थी. यात्रा की शुरुआत के लिए उस सोमनाथ को चुना गया, जहां के पवित्र शिव मंदिर को मुस्लिम आक्रांताओं ने बार-बार तोड़ा था. शुरुआत 25 सितंबर को हुई, जो दीनदयाल उपाध्याय का जन्मदिन भी है.
गुजरात के सीएम रहने के दौरान प्रयास करते रहे
जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने, तब भी अयोध्या मामले पर उनकी नजर बनी रही. जब 2010 में अयोध्या मामले में फैसला आया, तब भी पीएम मोदी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया था और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की थी. ये मोदी जी ही थे, जिन्होंने साउथ कोरिया कीप्रथम महिला को अयोध्या यात्रा के लिए प्रेरित किया. वास्तव में, मई 2015 में पीएम मोदी के साउथ कोरिया के दौरे के समय अयोध्या और कोरिया के बीच का विशेष संबंध चर्चा का विषय रहा था.
‘राम राज्य’ को आदर्श मानते हैं मोदी
दिसंबर 2013 में नरेंद्र मोदी जब वाराणसी पहुंचे. तो उन्होंने जनसभा को संबोधित करने के दौरान कहा कि किस प्रकार ‘राम राज्य’ ही उनका आदर्श है, और उसी रास्ते पर चलेंगे. 2014 में अयोध्या में एक चुनावी रैली के दौरान पीएम मोदी ने ‘जय श्रीराम’ का जयघोष किया. पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने भगवान राम का जयघोष किया था. पीएम मोदी ने महात्मा गांधी को याद करते हुए कहा था कि बापू के लिए ‘राम राज्य’ ही आदर्श शासन था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 13 जनवरी, 2019 को कन्याकुमारी में रामायण भारत दर्शन, माता सदनम और हनुमान की प्रतिमा का उद्घाटन भी किया. आज एक बार फिर अयोध्या में भव्य राम मंदिर के भूमि पूजन की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री मोदी पर है.