'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी'... इस कविता की हर लाइन के शब्द शरीर के अंदर एक क्रांति पैदा कर देती है. कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने इस ऐतिहासिक कविता को रचकर झांसी की रानी लक्ष्मी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है. इस कविता की हर लाइन वीरांगना लक्ष्मीबाई की हिम्मत और जज्बे को बयां करती है. अंग्रेजों को धूल चटाने वाली मर्दानी लक्ष्मीबाई का जन्म आज ही के दिन हुआ था. भारत की महान धरती पर अपनी गौरवगाथा लिखने वाली रानी लक्ष्मीबाई पर आज पूरा देश गौरवान्वित महसूस करता है. रानी लक्ष्मीबाई की जयंती के मौके पर आज हम एक बार फिर उनकी वीरता के किस्से को दोहराएंगे, जिससे नई पीढ़ियों के अंदर भी ये वीरगाथा समाहित हो सके.
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झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी के एक पुरोहित के घर में हुआ था. बचपन में उनका नाम मणिकर्णिका रखा गया था, लोग प्यार से इन्हें मनु कहकर पुकारते थे. मराठा ब्राह्मण से आने वाली मणिकर्णिका बचपन से ही शास्त्रों और शस्त ज्ञान की धनी थीं. इनके पिता मोरोपंत मराठा बाजीराव (द्वितीय) की सेवा करते थे और मां भागीरथीबाई बहुत बुद्धीमान और संस्कृत को जानने वाली थी. लेकिन मणिकर्णिका के जन्म के बाद 4 साल ही उन्हें मां का प्यार नहीं मिल पाया, 1832 में उनकी मृत्यु हो गई.
जब मणिकर्णिका से बनी मर्दानी रानी लक्ष्मीबाई
मई, 1842 में 14 साल की उम्र में मणिकर्णिका का विवाह झांसी के महाराज गंगाधर राव के साथ हो गया. विवाह के बाद उनका नाम मणिकर्णिका से लक्ष्मीबाई रख दिया गया. साल 1853 में उनके पति गंगाधर राव की मृत्यु हो गई जिसके बाद अंग्रेज़ों ने डलहौजी की कुख्यात हड़प नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स) के सहारे झांसी राज्य का ब्रिटिश हुकूमत में विलय कर लिया. अंग्रेज़ों ने लक्ष्मीबाई के गोद लिए बेटे दामोदर राव को गद्दी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया. बता दें कि रानी लक्ष्मीबाई ने बेटे को जन्म दिया था जो कि सिर्फ 4 महीने ही जीवित रह सका. जिसके बाद राजा गंगाधर राव ने अपने चचेरे भाई का बच्चा गोद लिया और उसे दामोदार राव नाम दिया गया.
महिला सेना बनाकर अंग्रेजों को चटाई धूल
झांसी की रानी ने मरते दम तक अंग्रेजों की आधीनता स्वीकार नहीं की. इतिहास में उनका नाम आज स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हैं. पति गंगाधर राव की मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई काफी टूट चुकी थी, जिसका फायदा अंग्रेजों ने उठाकर झांसी की सत्ता पर काबिज होना चाहा. लेकिन अंग्रेजों के मंसूबों पर उन्होंने पानी फेर दिया और झांसी पर हुए आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया. सन् 1857 तक झांसी दुश्मनों से घिर चुकी थी और फिर झांसी को दुश्मनों से बचाने का जिम्मा खुद रानी लक्ष्मीबाई ने अपने हाथों में लिया. उन्होंने अपनी महिला सेना तैयार की और इसका नाम दिया 'दुर्गा दल'. इस दुर्गा दल का प्रमुख उन्होंने अपनी हमशक्ल झलकारी बाई को बनाया. वो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थी.
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खूब लड़ी मर्दानी...
1858 में युद्ध के दौरान अंग्रेज़ी सेना ने पूरी झांसी को घेर लिया और पूरे राज्य पर कब्ज़ा कर लिया. लेकिन रानी लक्ष्मीबाई भागने में सफल रहीं. वहां से निकलर को तात्या टोपे से मिली. रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर के एक किले पर कब्ज़ा किया. लेकिन 18 जून 1858 को अंग्रेज़ों से लड़ते हुए 23 साल की उम्र में रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई.