Independence Day 2021: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल नेताओं, क्रांतिकारियों और आंदोलनकारियों के त्याग, समर्पण, संघर्ष और उनकी मेधा के कई किस्से हैं. लेकिन रासबिहारी बोस एक क्रांतिकारी, संगठनकर्ता और विचारक के रूप में विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का एक पूरा कालखंड उनसे प्रभावित रहा है. बंगाल से लेकर समूचे भारत में ब्रिटिश राज के विरुद्ध भारत की आज़ादी के लिए गदर एवं आजाद हिन्द फौज के संगठन को मजबूत बनाया. देश में रहकर तो उन्होंने कई क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, विदेश में रहकर भी वह भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के प्रयास में आजीवन लगे रहे.
रासबिहारी बोस का जन्म 25 मई 1886 को बंगाल में बर्धमान जिले के सुबालदह गांव में हुआ था. इनकी आरम्भिक शिक्षा चन्दननगर में हुई, जहां उनके पिता विनोद बिहारी बोस नियुक्त थे. रासबिहारी बोस बचपन से ही देश की स्वतन्त्रता के स्वप्न देखा करते थे और क्रान्तिकारी गतिविधियों में उनकी गहरी दिलचस्पी थी. शिक्षा समाप्त करने के बाद जीविकोपार्जन के लिए कुछ दिनों तक देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान में क्लर्क के रूप में काम किया.
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देहरादून में नौकरी करने के दौरान ही उनका क्रान्तिकारी जतिन मुखर्जी की अगुआई वाले युगान्तर नामक क्रान्तिकारी संगठन के अमरेन्द्र चटर्जी से परिचय हुआ और वह बंगाल के क्रान्तिकारियों के साथ जुड़ गये. बाद में वह अरबिंदो घोष के राजनीतिक शिष्य रहे यतीन्द्रनाथ बनर्जी उर्फ निरालम्ब स्वामी के सम्पर्क में आने पर संयुक्त प्रान्त, (वर्तमान उत्तर प्रदेश) और पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी क्रान्तिकारियों के निकट आये.
दिल्ली में तत्कालीन वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाने, गदर की साजिश रचने और बाद में जापान जाकर इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौज की स्थापना करने में रासबिहारी बोस की महत्वपूर्ण भूमिका रही. यद्यपि देश को स्वतन्त्र कराने के लिये किये गये उनके ये प्रयास सफल नहीं हो पाये.
प्रथम विश्व युद्ध को दौरान युगान्तर के कई नेताओं का मानना था कि यूरोप में युद्ध होने के कारण चूंकि अभी अधिकतर सैनिक देश से बाहर गये हुये हैं, अत: शेष बचे सैनिकों को आसानी से हराया जा सकता है लेकिन दुर्भाग्य से उनका यह प्रयास भी असफल रहा और कई क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. ब्रिटिश खुफिया पुलिस ने रासबिहारी बोस को भी पकड़ने की कोशिश की लेकिन वह उनके हत्थे नहीं चढ़े और भागकर विदेश से हथियारों की आपूर्ति के लिये जून 1915 में राजा पीएन टैगोर के छद्म नाम से जापान के शहर शंघाई में पहुंचे और वहां रहकर भारत देश की आजादी के लिये काम करने लगे.
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इस प्रकार उन्होंने कई वर्ष निर्वासन में बिताये. जापान में भी रासबिहारी बोस चुप नहीं बैठे और वहां के अपने जापानी क्रान्तिकारी मित्रों के साथ मिलकर देश की स्वतन्त्रता के लिये निरन्तर प्रयास करते रहे. जापान में उन्होंने वहां न्यू एशिया नाम से एक समाचार-पत्र भी निकाला. उन्होंने जापानी भाषा भी सीखी और 16 पुस्तकें लिखीं. उन्होंने टोकियो में होटल खोलकर भारतीयों को संगठित किया तथा 'रामायण' का जापानी भाषा में अनुवाद किया.
भारत को ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्ति दिलाने की आशा लिये हुए 21 जनवरी 1945 को इनका निधन हो गया. उनके निधन से कुछ समय पहले जापानी सरकार ने उन्हें आर्डर ऑफ द राइजिंग सन के सम्मान से अलंकृत भी किया था.
HIGHLIGHTS
- इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौज की स्थापना करने में रासबिहारी बोस की रही महत्वपूर्ण भूमिका
- जापान सरकार ने रासबिहारी बोस को आर्डर ऑफ द राइजिंग सन के सम्मान से किया था अलंकृत
- रासबिहारी बोस ने वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की बनाई थी योजना