Advertisment

Independence Day: 18 वर्ष की किशोर वय में फांसी के फंदे पर झूलने वाला क्रांतिकारी खुदीराम बोस

Independence Day: खुदीराम बोस ने क्लब में आते-जाते किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंकने का निर्णय किया. उस योजना के मुताबिक दोनों ने किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम से हमला भी किया.लेकिन दुर्भाग्य से वे किंग्सफोर्ड की बग्घी की बजाय दूसरे बग्घी पर हमला कर बैठे.

author-image
Pradeep Singh
एडिट
New Update
khudiram Bose

क्रांतिकारी खुदीराम बोस( Photo Credit : News Nation)

Advertisment

Independence Day: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास कुर्बानियों का इतिहास है.देश की आजादी के लिए शहीद होने वालों में खुदीराम बोस का नाम अद्वितीय है.फांसी के फंदे को चूमने के समय खुदीराम बोस की उम्र महज 18 वर्ष कुछ माह थी. जिस उम्र में बच्चे पढ़ते और खेलते-कूदने में लगे रहते हैं उस उम्र में खुदीराम बोस की आंखों में आजादी का सपना पल रहा था.देश की जनता पर अंग्रेजों के काले कानून के नीचे पिस रहे थे तो ब्रिटिश अधिकारी जनता पर बेइंतहा जुल्म ढा रहे थे. ऐसे ही एक ब्रिटिश अधिकारी किंग्सफोर्ड  था.जो कलकत्ता में चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट था।

20 वीं सदी की शुरूआत में देश भर में अंग्रेजी राज के खिलाफ आंदोलन तीव्र से तीव्रतर होता जा रहा था.अंग्रेजों की चाल से जनता परेशान हो गयी थी.जनता हर कुर्बानी देने को तैयार थी बशर्ते देश को आजादी मिले.ऐसे समय में ही अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन किया.बंगाल विभाजन के विरोध में देश के हर कोने में विरोध-प्रदर्शन होने लगा था.चूंकि यह बंगाल का मामला था तो बंगाल में इसके विरोध में अधिकांश जनता सड़कों पर थी।

यह भी पढ़ें : शहीद मदनलाल ढींगरा : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की चिनगारी को अग्नि में बदल दिया

बंगाल विभाजन के विरोध में धरना-प्रदर्शन करने वालों के बीच ब्रिटिश अफसर किंग्सफोर्ड का खौंफ था.वह कलकत्ता में चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात था.वह बहुत ही सख्त और बेरहम अधिकारी के तौर पर जाना जाता था.वह ब्रिटिश राज के खिलाफ खड़े होने वाले लोगों पर बहुत जुल्म ढाता था.उसके यातना देने के तरीके बेहद बर्बर थे, जो आखिरकार किसी क्रांतिकारी की जान लेने पर ही खत्म होते थे.बंगाल विभाजन के बाद उभरे जनाक्रोश के दौरान लाखों लोग सड़कों पर उतर गए और तब बहुत सारे भारतीयों को मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड ने क्रूर सजाएं सुनाईं.

विभाजन के जनाक्रोश को बर्बर तरीके से दबाने और जनता पर अमानवीय जुल्म ढाने के एवज में किंग्सफोर्ड को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने ईनाम के रूप में मुजफ्फरपुर जिले में सत्र न्यायाधीश बना दिया.सरकार के इस कदम से जनता के बीच काफी आक्रोश फैल गया था.इसीलिए युगांतर क्रांतिकारी दल ने किंग्सफोर्ड मुजफ्फरपुर में मार डालने की योजना बनाई.किंग्फोर्ड को मारने की योजना युगांतर क्रांतिकारी दल के नेता वीरेंद्र कुमार घोष की देखरेख में होना था और इस काम की जिम्मेदारी खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी को दी गई।

जन्म और क्रांतिकारी गतिविधियां

खुदीराम बोस का जन्म बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में  3 दिसंबर 1889 को हुआ था.खुदीराम बोस का जन्म कई बहनों के जन्म के बाद हुआ था.इसलिए परिवार में उनको बहुत प्यार मिलता था.लेकिन बहुत कम उम्र में ही अनके सिर से पिता त्रैलोक्य नाथ बोस और मां का साया उठ गया.माता-पिता के निधन के बाद उनकी बड़ी बहन ने मां-पिता की भूमिका निभाई और खुदीराम का लालन-पालन किया था.खुदीराम ने अपनी स्कूली जिंदगी में ही राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था.तब वे प्रतिरोध जुलूसों में शामिल होकर ब्रिटिश सत्ता के साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे, अपने उत्साह से सबको चकित कर देते थे.आजादी के प्रति उनकी दीवानगी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने नौंवीं कक्षा की पढ़ाई भी बीच में ही छोड़ दी और अंग्रेजों के खिलाफ मैदान में कूद पड़े.

यह भी पढ़ें : क्या है दिल्ली षडयंत्र केस, मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज से इसका क्या है नाता ?

खुदीराम बोस ने डर को कभी अपने पास फटकने नहीं दिया, 28 फरवरी 1906 को वे सोनार बांग्ला नाम का एक इश्तिहार बांटते हुए पकड़े गए.लेकिन उसके बाद वह पुलिस को चकमा देकर भाग निकले.16 मई 1906 को पुलिस ने उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस बार उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया. इसके पीछे वजह शायद यह रही होगी कि इतनी कम उम्र का बच्चा किसी बहकावे में आकर ऐसा कर रहा होगा.लेकिन यह ब्रिटिश पुलिस के आकलन की चूक थी.अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ उनका जुनून बढ़ता गया और 6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर आंदोलनकारियों के जिस छोटे से समूह ने बम विस्फोट की घटना को अंजाम दिया, उसमें खुदीराम प्रमुख थे।

किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंकने की योजना

खुदीराम और प्रफुल्ल, दोनों ने किंग्सफोर्ड की दिनचर्या और गतिविधियों से संबंधित सूचना एकत्र करना शुरू किया.इस क्रम में खुदीराम किंग्सफोर्ड की कोठी के आर-पास घूमने लगे.लेकिन सीआईडी अधिकारियों को उनके ऊपर शक नहीं हुआ.एक दिन वे किंग्सफोर्ड की कोठी के पास ही पर्चा बांटते हुए पकड़े गये लेकिन अधिकारियों ने उन्हें डांट कर भगा दिया. कुछ दिनों में ही योजना को अंजाम देने के लिए उनके पास पुख्ता सूचना उपलब्ध हो गये. खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को पता चल गया था कि किंग्सफोर्ड रोज शाम को क्लब में जाता है.क्रांतिकारियों ने कोठी की बजाय क्लब में आने-जाने के समय किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंकने का निर्णय किया. उस योजना के मुताबिक दोनों ने किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम से हमला भी किया. लेकिन संयोग से क्रांतिकारियों ने किंग्सफोर्ड की बग्घी की बजाय दूसरे बग्घी पर हमला कर बैठे. इस हमले में दो अंग्रेज महिलाएं मारी गईं.

खुदीराम और प्रफुल्ल हमले को सफल मान कर वहां से भाग निकले.लेकिन जब बाद में उन्हें पता चला कि उनके हमले में किंग्सफोर्ड नहीं, दो महिलाएं मारी गईं, तो दोनों को इसका बहुत अफसोस हुआ.लेकिन फिर भी उन्हें भागना था और वे बचते-बढ़ते चले जा रहे थे.प्यास लगने पर एक दुकान वाले से खुदीराम बोस ने पानी मांगा, जहां मौजूद पुलिस को उनपर शक हुआ और खुदीराम को गिरफ्तार कर लिया गया.लेकिन प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली.

11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को हुई फांसी 

बम विस्फोट और उसमें दो यूरोपीय महिलाओं के मारे जाने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के भीतर जैसी हलचल मची थी, उसमें गिरफ्तारी के बाद फैसला भी लगभग तय था.खुदीराम ने अपने बचाव में साफ तौर पर कहा कि उन्होंने किंग्सफोर्ड को सजा देने के लिए ही बम फेंका था.जाहिर है, ब्रिटिश राज के खिलाफ ऐसे सिर उठाने वालों के प्रति अंग्रेजी राज का रुख स्पष्ट था, लिहाजा खुदीराम के लिए फांसी की सजा तय हुई.11 अगस्त 1908 को जब खुदीराम को फांसी के तख्ते पर चढ़ाया गया, तब उनके माथे पर कोई शिकन नहीं थी, बल्कि चेहरे पर मुस्कान थी. 

HIGHLIGHTS

  • 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को हुई फांसी
  • खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड बग्घी पर फेंका बम  
  • बग्घी में सवार दो अंग्रेज महिलाएं की हुई मौत
independence-day independence-day-2021 Kingsford assassination attempts Khudiram Bose Prafulla chaki
Advertisment
Advertisment