अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) की ही डेमोक्रेटिक साथी तुलसी गेबार्ड ने अपनी वेबसाइट पर कुछ दिन पहले बेलौस अंदाज में लिखा था कि बाइडन की नीति हथियार लॉबी को बढ़ावा देकर उसे मजबूत बनाने की है. इस कड़ी में ही बाइडन ने यूक्रेन (Ukraine) की आड़ लेकर रूस (Russia) को उकसाना जारी रखा. सिर्फ तुलसी गेबार्ड ही नहीं एशिया टाइम्स ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया में एक बार फिर हथियारों की होड़ शुरू होगी. अब इस बात पर अलाइड मार्केट रिसर्च की एक रिपोर्ट ने मुहर लगाई है. रिपोर्ट कहती है कि परंपरागत हथियारों से इतर अगले एक दशक में विध्वंसक परमाणु मिसाइलों और बमों के बाजार में वैश्विक स्तर पर 73 फीसदी की तेजी देखी जा सकती है. हथिय़ारों और परमाणु मिसाइलों (Nuclear War) की इस होड़ से अमेरिका, चीन समेत यूरोप के कई देशों को सीधे सीधे फायदा पहुंचेगा.
उत्तर कोरिया जैसे देश वैश्विक शांति के लिए बड़ा खतरा
जाहिर है हथियारों की इस होड़ को और खतरनाक बनाने जा रही परमाणु अस्त्रों की क्षमता से लैस होना. उत्तर कोरिया पहले ही लंबी दूरी की और परमाणु वॉरहेड ले जाने में सक्षम मिसाइलों का लगातार परीक्षण कर रहा है. यही नहीं, वह चोरी-छिपे परमाणु तकनीक उन देशों को भी दे सकता है, जो फिलहाल अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं. इस आशंका को और भयावह बनाती है पोर्टलैंड की रिसर्च फर्म अलाइड मार्केट रिसर्च के मुताबिक फिलवक्त न्यूक्लियर परमाणु मिसाइलों और बमों का बाजार 73 अरब डॉलर के आसपास का है. 2030 तक इसमें 72.6 फीसदी की बढ़ोतरी होने के आसार हैं. यही नहीं, इसमें 2030 तक वार्षिक स्तर 5.4 फीसदी की चक्रवृद्धि दर से इजाफा हो सकता है.
यह भी पढ़ेंः Pakistan को अस्थिरता में ढकेल Imran Khan ने कहा- India विरोधी नहीं हूं
2020 में हथियारों पर 2 हजार अरब डॉलर खर्च
परमाणु हथियारों से इतर परंपरागत हथियारों की बात करें तो अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की रिपोर्ट बताती हैं कि शीतयुद्ध काल के बाद धीमी पड़ी हथियारों की होड़ फिर से बढ़ने लगी है. 2020 में कोरोना संक्रमण काल की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में भले ही 4.4 फीसद की गिरावट दर्ज की गई, लेकिन हथियारों की खरीद पर कुल 2,000 अरब डालर की राशि खर्च हुई. यह राशि 2019 के मुकाबले 2.6 फीसद ज्यादा थी. हिंद प्रशांत क्षेत्र के देश ही नहीं अमेरिका, यूरोपीय देश व खाड़ी देशों में हथियारों व सैन्य साज-ओ-सामान की मांग बढ़ने के संकेत मिलने लगे हैं. यूक्रेन पर रूसी हमले ने इसमें इजाफा करने का काम किया है.
एशियाई देशों में भी बढ़ेगी होड़
आंकड़े बताते हैं कि 2010 से 2020 के बीच हथियारों पर सबसे ज्यादा खर्च एशियाई देशों में बढ़ा है. इसमें चीन सबसे आगे है. हाल ही में जापान ने भी कहा है कि वह अपनी जीडीपी का दो फीसदी हिस्सा सैन्य आधुनिकीकरण पर खर्च करेगा. फिलीपींस, वियतनाम जैसे देश नए मिसाइल सिस्टम व टैंक खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं. कुछ ऐसी ही स्थिति खाड़ी देशों की है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन ने हथियारों की होड़ को बढ़ावा देने का काम किया है. यूक्रेन घटनाक्रम के बाद इसमें और तेजी ही आएगी. चीन एनपीटी संधि से बंधे होने के बावजूद चोरी-छिपी पाकिस्तान और उत्तर कोरिया को नाभिकीय हथियारों की तकनीक मुहैया करा चुका है. सामरिक जानकार बताते हैं कि चीन का इरादा 2027 तक 700 परमाणु हथियारों और 2030 तक 1000 परमाणु हथियारों को हासिल करने का है. इसके साथ ही चीन ने अंतरिक्ष में अलग होड़ फैला रखी है. बीते दिनों हाइपरसोनिक मिसाइल के परीक्षण से उसने अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि वह सैन्य क्षेत्र में अपने को अजेय बनाने के किसी भी प्रयास से तौबा करने वाला नहीं है.
यह भी पढ़ेंः Pakistan के सियासी भूचाल के बीच NSA मोईद युसूफ का इस्तीफा
अमेरिकी रक्षा कंपनियों के शेयर चढ़े
गौरतलब है कि अमेरिकी कंपनी रेथियान स्टिंगर मिसाइल बनाती है, तो यही कंपनी लॉकहीड मॉर्टिन के साथ मिलकर जेवलिन एंटी टैंक मिसाइल बनाती है. यही साज-ओ-सामान अमेरिका और अन्य नाटो देशों ने बड़े पैमाने पर यूक्रेन को दिया है. इसके बाद लॉकहीड और रेथियान के शेयर क्रमश: 16 प्रतिशत और 3 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं. हथियारों की बिक्री में अमेरिकी कंपनियां सबसे आगे हैं. 2016 से 2020 के बीच दुनिया में कुल बिके हथियारों में से 37 फीसदी अमेरिकी थे. इसके बाद रूस का 20 फीसदी, फ्रांस 8 फीसदी, जर्मनी 6 और चीन 5 फीसदी था. तुर्की रूस की चेतावनी को नजरअंदाज कर यूक्रेन को हमलावर ड्रोन विमान दे रहा है. इसके अलावा इजरायल का रक्षा उद्योग भी जमकर कमाई कर रहा है. यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद जर्मनी और डेनमार्क ने भी अपना रक्षा बजट बढ़ाने की घोषणा कर दी है.
रूस को झटका तो चीन को भी मिल रहा फायदा
हालांकि इन सबके बीच रूस को इन हमलों से झटका लगा है. अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के प्रतिबंध से रूस का रक्षा उद्योग भारी नुकसान उठा सकता है. भारत भी स्वदेसी तकनीक को बढ़ावा देकर रूस से लगातार हथियारों की खरीद कम कर रहा है. अमेरिका भी भारत पर इसके लिए परोक्ष दबाव बना रहा है. ऐसे में रूस के लिए अब हथियारों के लिए कच्चा माल तलाश करना बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसके अलावा चीन भी अब खाड़ी देशों में हथियारों की बिक्री बढ़ा सकता है. हाल ही में चीन को यूएई से एक बड़ा ऑर्डर मिला है. इस लिहाज से रूस-यूक्रेन युद्ध से उसे भी फायदा हो रहा है.
HIGHLIGHTS
- अगले एक दशक में परमाणु मिसाइलों-बमों के बाजार में 73 फीसद इजाफा
- परंपरागत हथियारों की होड़ फिर से शुरू हो चुकी है, फायदा उठा रहा अमेरिका
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन, भारत के बीच हर हाल में रक्षा खर्च बढ़ना है तय